ऐतिहासिक धरोहर… मां बोर्राहासिनी और केवटीन देउल महादेव मंदिर, जिसकी हर ईंट में है आस्था और विश्वास की डोरी

कमलेश यादव : छत्तीसगढ़ प्राचीन मंदिरों की भूमि है, जो राज्य की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत को दर्शाते हैं। ये मंदिर न केवल धार्मिक महत्व रखते हैं, बल्कि पर्यटन और इतिहास प्रेमियों को भी आकर्षित करते हैं।सारंगढ़ बिलाईगढ़ जिले के सरिया नगर पंचायत के पास स्थित ग्राम पुजेरीपाली और पंचधार ऐतिहासिक धरोहरों के लिए प्रसिद्ध हैं। इन गांवों में महादेव और मां बोर्राहासिनी (बोर्रासेनी) के मंदिरों के अलावा अन्य प्राचीन अवशेष भी पाए गए हैं।

 

1. मां बोर्राहासिनी मंदिर और पुरातत्व की खोज
मां बोर्राहासिनी मंदिर परिसर में अनेक खंडित और पूर्ण मूर्तियां हैं। 1875 से पुरातत्व सर्वेक्षण का कार्य यहां समय-समय पर किया गया है।
पौराणिक मान्यता: मां बोर्रासेनी, नाथलदाई और चंद्रहासिनी को बहन माना जाता है, जिनकी विशेष पूजा दशहरे पर सारंगढ़ के राजा द्वारा की जाती थी।
रानी का झूला: एक पत्थर का मंदिर, जिसे रानी का झूला कहा जाता है, चार स्तंभों पर आधारित है। ये स्तंभ संभवतः किसी बड़े मंदिर मंडप के अवशेष हैं।
चोर पत्थर की कथा: जनश्रुति है कि एक जोगी ने मूर्ति के अंदर छिपे खजाने को निकालने का प्रयास किया, लेकिन वह पत्थर में बदल गया।

2. स्वर्ण वर्षा की कहानी
कहावतों के अनुसार, पुजेरीपाली क्षेत्र में अतीत में स्वर्ण वर्षा हुई थी। यहां के लोग खुदाई के दौरान खेतों में स्वर्ण के टुकड़े मिलने की पुष्टि करते हैं।

3. केवटिन देऊल महादेव मंदिर
यह मंदिर अपनी अनोखी कहानी और वास्तुशिल्प के लिए प्रसिद्ध है।
निर्माण कथा: जनश्रुति है कि इस मंदिर का निर्माण ब्रह्म मुहूर्त में केवट जाति की महिला के उठने से अधूरा रह गया।
मंदिर की संरचना: यह पूर्वमुखी है और इसमें गर्भगृह, अंतराल, और मुख-मंडप हैं। पंच-रथ शैली में निर्मित इस मंदिर पर ओडिशा शैली का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है।

4. गोपाल मंदिर
मां बोर्राहासिनी मंदिर परिसर में गोपाल मंदिर स्थित है।
शिलालेख: इस मंदिर का नाम गोपालदेव के नाम पर रखा गया है।
मूर्ति कला: इसमें कृष्ण से जुड़े केशी-वध और पूतना-वध जैसे दृश्य उकेरे गए हैं।
विनाश: समय के साथ मंदिर का अधिकांश भाग नष्ट हो गया है।

5. पुरातत्व खोज का इतिहास
जे.डी. बेगलर (1875): उन्होंने पंचधार के महादेव मंदिर और गोपाल मंदिर का वर्णन किया।
अलेक्जेंडर कनिंघम (1881-82): उन्होंने पुजेरीपाली में 120 मंदिर होने की बात सुनी, लेकिन केवल तीन मंदिर पाए।
डीआर भंडारकर (1903-04) और एएच लॉन्गहर्स्ट (1909-10) ने यहां की ईंट निर्मित मंदिरों का वर्णन किया।

सारांश
पुजेरीपाली और पंचधार क्षेत्र अपने ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व के कारण पुरातत्वविदों और शोधकर्ताओं के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल है। यहां की मूर्तियां, मंदिरों की संरचना, और उनसे जुड़ी जनश्रुतियां हमारी सांस्कृतिक धरोहर की अमूल्य झलक प्रस्तुत करती हैं।


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