
पंडवानी गायिका रेणु साहू जब मंच पर हाथ में तंबूरा लेकर कहानी प्रस्तुत करती हैं, तो तंबूरा कभी भीम की गदा बन जाता है तो कभी अर्जुन का धनुष…ओजस्वी स्वर,चेहरे में तेज और भावनाओं के साथ पंडवानी गायन उन्हें औरों से अलग बनाता है
कमलेश यादव :इंद्रधनुषीय लोक संस्कृति की छटा बिखेरता “छत्तीसगढ़” राज्य।यहां की सांस्कृतिक धरोहरों में से एक “पंडवानी” जिसका अर्थ है पांडववाणी अर्थात पांडवकथा,यानी महाभारत की कथा। यह अपने आप में एक ऐसी गौरव गाथा है जो सीधे लोगों की दिलों में जगह बना लेती हैं।आज हम बात करेंगे कापालिक शैली की पंडवानी गायिका रेणु साहू जी के बारे में,जब वह मंच पर हाथ में तंबूरा लेकर कहानी प्रस्तुत करती हैं तो तंबूरा कभी भीम की गदा बन जाता है तो कभी अर्जुन का धनुष।ओजस्वी स्वर,चेहरे में तेज और भावनाओं के साथ पंडवानी गायन उन्हें औरों से अलग बनाता है।
स्मृतियां
प्राकृतिक सौंदर्य,सादगी और बेहद सरल जीवनशैली वाला एक छोटा सा गांव खोपली, दुर्ग जिले में उतई के पास स्थित है।इसी गांव में 20 फरवरी 1993 की वह सुनहरी सुबह थी जब रेणु का जन्म हुआ। बचपन से ही पंडवानी के प्रति मन मे एक खिंचाव पैदा हो गया था।ऐसा कहा जाता है कि व्यक्ति जिस उद्देश्य के लिए धरती पर पैदा हुआ है,उसकी ओर वह स्वत: ही आकर्षित हो जाता है।पढ़ाई के साथ-साथ वह अपनी मां श्रीमती देवी साहू से पंडवानी सीखने की जिद करने लगीं।अब बच्ची की जिद के आगे मां भी बेबस हो गई. तब उन्होंने अपने परिचित सत्संगी स्वर्गीय बावला यादव जी को अपनी बेटी की जिद के बारे में बताया।यादव जी ने पंडवानी के प्रसिद्ध गुरुजी स्व. गुलाबदास मानिकपुरी से रेणु का परिचय कराया।
गुरुजी प्रेरणास्रोत
पंडवानी की बारीकियों का ज्ञान उन्हें गुरुजी स्वर्गीय गुलाब दास मानिकपुरी जी से मिला।रेणु लगन के साथ लगातार अभ्यास करती रहीं और परिणाम स्वरूप वह पंडवानी गायन में पारंगत हो गईं। उन्होंने अपने जीवन का पहला कार्यक्रम परसाही नामक गाँव में दिया।माँ सरस्वती एवं गुरुदेव की कृपा से पंडवानी की प्रस्तुति से दर्शक मंत्रमुग्ध हो गये . अब तक वह देश के अलग-अलग जगहों पर 1000 से ज्यादा प्रोग्राम कर चुकी हैं.
एक परिचय पंडवानी से
पंडवानी की उत्पत्ति महाभारत कथा से जुड़ी है।पंडवानी गायन का मूल उद्देश्य महाभारत कथा के प्रमुख घटनाओं को गीतों के माध्यम से सुनाना और संवादों को प्रस्तुत करना है।पंडवानी गायन की विशेषता इसमें उपयोग किए जाने वाले मुखपृष्ठों की है, जो पांडवों और कौरवों के चरित्रों को दर्शाते हैं।”पंडवानी” छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक और प्राचीन धरोहर है जिसे मूल रूप में ही संजोकर रखने की आवश्यकता हैं।
पंडवानी वास्तव में हमें जीवन के उथल पुथल भरी मार्गो में कैसे चले उसकी शिक्षा देती हैं।आधुनिकता की चकाचौंध में कथा कहानियां लुप्त सी हो गई हैं।नवोदित पीढ़ियों को इसका वास्तविकता से परिचय कराने की जरूरत हैं।रेणु साहू जैसी पंडवानी गायिका इस विषम परिस्थितियों में भी इस विधा को सम्हालकर रखी हुई हैं।यदि आप भी रेणु जी के कार्यक्रम को अपने गांव या शहर में आमंत्रित करना चाहेंगे तो उनसे रुआबांधा भिलाई छत्तीसगढ़ में सम्पर्क किया जा सकता हैं।
(आपके पास भी सकारात्मक बदलाव की कहानियां है तो हमे satyadarshanlive@gmail में लिखे या 7587482923 में व्हाट्सएप कर सकते है…बनिए सामाजिक परिवर्तन का हिस्सा)