
मैनेजमेंट गुरु…हनुमान जी ने हर समस्याओं को परिस्थितियों के हिसाब से सुलझाया है…जहां बल का प्रयोग करना था वहां बल का प्रयोग किया और जहां विन्रमता की आवश्यकता थी वहां बुद्धि का पूर्ण उपयोग कर परेशानी को दूर किया
एक कुशल प्रबंधक व मानव संसाधन का बेहतर उपयोग करने वाले राम भक्त हनुमान जी में मैनेजमेंट की जबरदस्त क्षमता है। संपूर्ण रामचरित मानस में और हनुमानजी को समर्पित सुंदरकांड में ऐसी कई घटनाओं का जिक्र है जहां पर हनुमान जी ने बल और बुद्धि का बेहतरीन संतुलन पेश किया है। बल और बुद्धि का उपयोग करते हुए ही हनुमान जी ने माता सीता की खोज की थी। हनुमान जी ने हर समस्याओं को परिस्थितियों के हिसाब से सुलझाया है। जहां बल का प्रयोग करना था वहां बल का प्रयोग किया और जहां विन्रमता की आवश्यकता थी वहां बुद्धि का पूर्ण उपयोग कर परेशानी को दूर किया।
विश्राम लक्ष्य मिलने के बाद
हनुमान जी माता सीता की खोज में जब लंका की तरफ बढ़ रहे थे, तभी समुंद्र ने हनुमान जी से विश्राम करने का आग्रह किया और अपने भीतर रह रहे मैनाक पर्वत से कहा की तुम हनुमान जी को विश्राम करने दो। हनुमान जी विश्राम करने से मना करते हुए निमंत्रण का मान रखते हुए मैनाक पर्वत को छू कर आगे की ओर निकल पड़े। हनुमान जी की इस बात से हमे यह सीखने को मिलता है कि हमें जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए हमें रुकना नहीं चाहिए।
लक्ष्य हासिल करने के लिए कभी कभी झुकना भी पड़ता है
लंका की ओर बढ़ते समय हनुमान जी को बीच रास्ते में सुरसा नाम की नाग माता ने रोक लिया और उनको खाने की जिद करने लगी। हनुमान जी ने बहुत समझाया पर वो नहीं समझी यहां तक कि हनुमान जी ने वचन भी दे दिया, प्रभु श्री राम का काम करके आने दो, फिर खुद ही आकर आपका आहार बन जाऊंगा, लेकिन सुरसा नहीं मानी।
सुरसा ने हनुमान जी को खाने के लिए जैसे ही अपना शरीर बड़ा किया हनुमान जी अपना शरीर दुगना बड़ा लिया। फिर सुरसा ने अपना शरीर बड़ा लिया, तब हनुमानजी समझ गए कि मामला मुझे खाने का नहीं है, सिर्फ अहम का है। उन्होंने तत्काल सुरसा के बड़े स्वरुप के आगे खुद को छोटा कर लिया ओर उसके मुंह में से घूम कर निकल आए। सुरसा हनुमान जी के इस बुद्धि पराकर्म से काफी खुश हो गई और लंका का मार्ग प्रशस्त कर दिया।
हनुमान जी के इस उदाहरण से हमें सीख मिलती है कि जहां मामला अहम का हो, वहां बल नहीं, बुद्धि का इस्तेमाल करना चाहिए। बड़े लक्ष्य को पाने के लिए अगर कहीं झुकना भी पड़े, झुक जाना चाहिए।
काम को समय रहते कर लें
हनुमानजी जब लंका के द्वार पर पहुंचे, वहां लंकिनी नाम राक्षसी ने उनका रास्ता रोक लिया। हनुमान जी रात के समय में छोटा रूप लेकर लंका में प्रवेश कर रहे थे। यहां परिस्थिति ऐसी थी कि लंका में रात के समय ही चुपके से घुसा जा सकता था। समय कम था इसलिए उन्होंने लंकिनी से कोई वाद-विवाद नहीं किया ओर सीधे उस पर प्रहार कर दिया। लंकिनी ने हनुमान जी के लिए तुरंत रास्ता छोड़ दिया। इससे हमें सीख मिलती है कि जब मंजिल के एकदम करीब हो और समय का अभाव हो तो परिस्थितियों की मांग पर बल का प्रयोग करना ही बेहतर है।