
शख्सियत…संस्कारधानी के नरेंद्र तायवाड़े विगत 35 वर्षों से अखबारों में से अच्छी और सकारात्मक बातो का संकलन कर सैकड़ो डायरी में सहेजे हुए हैं…ईमेल व्हाट्सएप के दौर में पोस्टकार्ड के माध्यम से लोगो को किया जागरूक
कमलेश यादव: अखबार तो अधिकांश लोग पढ़ते होंगे पर आज हम ऐसी शख्सियत के बारे में आपको बताने जा रहे जिन्होंने पिछले 35 वर्षो से अखबारों में से अच्छी और सकारात्मक बातो का संकलन कर सैकड़ो डायरी में सहेजे हुए हैं।वे लेखन के क्षेत्र में भी सक्रिय हैं।नाम है,नरेंद्र तायवाड़े वे छत्तीसगढ़ के संस्कारधानी राजनांदगाँव से ताल्लुक रखते है।सरल ह्रदय और लोगो की मदद में आगे नरेंद्र तायवाड़े का जीवन काफी प्रेरणादायक है।
सत्यदर्शन लाइव को नरेंद्र तायवाड़े जी ने बताया कि संस्कारधानी राजनांदगाँव उनकी जन्मभूमि है यह मुझे हमेशा गौरवान्वित करती है।अपने शहर को तहसील से जिले में बदलने का सुख मैंने देखा हैं।इस शहर की धड़कने मुझसे जुड़ी हुई है और शब्दों के रूप में प्रस्फुटित होते रहती है।जिला सहकारी केंद्रीय बैंक में अपनी सेवाएं दी अब रिटायर्ड होकर अपनी सामाजिक जिम्मेवारी का निर्वहन कर रहा हूँ।
पत्र के माध्यम से सन्देश
जिंदगी में कई उतार-चढ़ाव देखते हुए उन्होंने प्रण लिया कि लोगो मे जीवन के प्रति आशावादी सोच को विकसित करने की जरूरत है।इसीलिए आज पोस्टकार्ड के माध्यम से अच्छी बातो को पहुचा रहे है।ईमेल व्हाट्सअप के जमाने मे पोस्टकार्ड के माध्यम से अपनी बातो को व्यक्त करते है।उन्होंने 2010 से पत्र लेखन मंच का भी निर्माण किया जो अनवरत आज भी जारी है।
बात उन दिनों की है जब मै शासकीय दिग्विजय कालेज में छात्र के रूप में अध्ययनरत था।1975 की दोपहर का समय और सबेरा संकेत अखबार में अपनी रचनाएं भेजी।उस दिन मेरी जिंदगी का सबसे खूबसूरत दिनों में से एक है जब मेरी रचनाएं प्रकाशित हुई।अब धीरे धीरे रचनाओं को अख़बारों में जगह मिलना शुरू हो गया।आज भी मैं नियमित पाठक होने के साथ विभिन्न अखबारों और पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं भेजते रहता हूँ।मैंने अपनी आंखों से अखबारों के माध्यम से सामाजिक परिवर्तन होते हुए देखा है।
मैंने अपनी जिंदगी में हर किसी से कुछ न कुछ सीखा है।रोजाना अपना चेहरा आईने में देखने के बाद ईश्वर को धन्यवाद देता हूँ कि उसने मुझे एक खूबसूरत उद्देश्य देकर इस दुनिया मे भेजा है।मैं यही कहना चाहूंगा कि शरीर एक मंदिर है इसकी देखरेख का दायित्व स्वयं के ऊपर है।रोजाना शारारिक व्यायाम के साथ पठन पाठन के साथ मन का भी व्यायाम हो जाता हैं।परिस्तिथियाँ समय के साथ बदलते रहती है बस हमारी मन की स्तिथियाँ कमजोर न हो।
वे हंसते हुए कहते है कि आज इतने बरसों बाद जब अपनी जिंदगी को देखता हूँ तो लगता है कि पहाड़ों से झरने की तरह उतरती,चट्टानों से टकराती,पत्थरों में अपना रास्ता ढूंढती,उमड़ती,बलखाती,अनगिनत भंवर बनाती,तेज चलती और अपने ही किनारों को काटती हुई ये नदी अब मैदानों में आकर शांत और गहरी हो गई है।