
दिल्ली से करीब 2000 किमी दूर,शहर की चकाचौंध से अनजान प्रकृति की छांव में…भारत की 15वीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाली भारत की पहली महिला राष्ट्रपति हैं
नई दिल्ली: जंगल पर आश्रित रहने वाली ओडिशा की संथाल जनजाति से ताल्लुक रखती हैं भारत की 15वीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू। 64 साल की मुर्मू आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाली भारत की पहली महिला राष्ट्रपति हैं। देश के सर्वोच्च पद पर पहुंचने वाली शांत, शालीन और थोड़ा सख्त स्वभाव वाली द्रौपदी का सफर मुश्किलों भरा रहा है। अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत से ही उन्होंने आदिवासी, गरीबों, वंचितों के उत्थान के लिए काम किया। कुछ ऐसा कि विपक्षी भी उनके मुरीद हो गए। राष्ट्रपति के लिए नामांकन के बाद मुर्मू ने कहा था, ‘देश में लगभग 10 करोड़ आदिवासी हैं और उनके 700 से ज्यादा समुदाय हैं। आज वे सभी खुश हैं।’ दिल्ली से करीब 2000 किमी दूर, शहर की चकाचौंध से अनजान प्रकृति की छांव में मुर्मू का बचपन बीता। आज जनजातीय समुदाय काफी खुश होगा। कुछ दिन पहले ही समुदाय के लोगों ने जीत की कामना करते हुए मिट्टी के दीये जलाए थे। आज उनके लिए दिवाली पहले आ गई है। अब उनकी प्रतिनिधि के रूप में द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रपति भवन पहुंच गई हैं। वह 25 जुलाई को शपथ लेंगी।
संथाल समुदाय से ताल्लुक रखने वाली द्रौपदी मुर्मू का जन्म 20 जून 1958 को ओडिशा के मयूरभंज जिले में हुआ था। उनके पिता और दादा प्रधान रहे। बेहद पिछड़े और दूरदराज के जिले की होने के कारण मुर्मू ने गरीबी और दूसरी समस्याओं से जुझते हुए भुवनेश्वर के रमादेवी महिला कॉलेज से कला में स्नातक किया।
द्रौपदी भुवनेश्वर पढ़ने गईं। उस समय अपने गांव उपरवाड़ा से भुवनेश्वर जाकर पढ़ाई करने वाली वह इकलौती लड़की थीं। वह पढ़ाई में अव्वल थीं। उन्हीं दिनों श्याम चरण मुर्मू से उनकी मुलाकात हुई। वह भी भुवनेश्वर के एक कॉलेज से पढ़ाई कर रहे थे। श्याम के परिजन 1980 में द्रौपदी के घर शादी का प्रस्ताव लेकर गए। श्याम के घरवाले तीन-चार दिन उपरवाड़ा गांव में ही टिके रहे। देर से ही सही,काफी मनाने पर घरवाले मान गए। द्रौपदी को मायके से तब एक गाय और बैल भी उपहार में मिला था।
शायद कम लोगों को पता होगा कि देश की नई राष्ट्रपति ने राजनीति में आने से पहले अपने करियर की शुरुआत एक क्लर्क के तौर पर की थी। उन्होंने 1979 से 1983 तक सिंचाई और बिजली विभाग में जूनियर असिस्टेंट के रूप में काम किया। 1994 से 1997 तक उन्होंने ऑनरेरी असिस्टेंट टीचर के रूप में भी कार्य किया। बाद में राज्य की मंत्री बनीं।
मुर्मू का निजी जीवन त्रासदियों से भरा रहा है। मुर्मू का विवाह श्याम चरण मुर्मू से हुआ था। उन्हें तीन संतानें हुईं- दो बेटे और एक बेटी। आज वह सर्वोच्च पद पर पहुंच गई हैं लेकिन परिवार की कमी जरूर खल रही होगी। उन्होंने अपने पति और दोनो बेटों को खो दिया है। 2009 में उनके पहले बेटे की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई। तीन साल बाद सड़क हादसे में दूसरे बेटे की भी जान चली गई। कार्डियक अरेस्ट से 2014 में पति का निधन हो गया। दुखों का पहाड़ टूट पड़ा लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। खुद को संभाला, बेटी को आगे बढ़ाया और आदिवासी समुदाय के लिए आज वह मिसाल बन चुकी हैं।
बेटी इतिश्री मुर्मू का विवाह हो चुका है और वह भुवनेश्वर में रहती हैं। इतिश्री कहती हैं, ‘दूसरी मां की तरह वह कभी-कभी स्ट्रिक्ट और कभी-कभी सॉफ्ट भी पेश आती हैं। वह दूसरी मांओं की तरह ही हैं। वह मेरी ही स्कूल में टीचर थीं तो डबल प्रेशर रहता था। वह सरप्राइज टेस्ट लेती थीं।’ इतिश्री कहती हैं कि जो भी मां के स्टूडेंट थे, वे मेरे फ्रेंड हैं और उन्हें सबके नाम याद हैं। उनके भीतर शुरू से अनुशासन रहा है।
साल 2015 में उन्हें झारखंड का राज्यपाल बनाया गया। वह राज्य की पहली महिला राज्यपाल बनने का गौरव भी रखती हैं। 2017 में गवर्नर के तौर पर मुर्मू ने झारखंड विधानसभा की ओर से पारित बिल को भाजपा की रघुवर दास सरकार को लौटा दिया था। Chhotanagpur Tenancy Act, 1908 और the Santhal Pargana Tenancy Act, 1949 में किए गए संशोधनों का विरोध हो रहा था। आदिवासी जनता भी इसके विरोध में सड़क पर आ गई थी। भाजपा से जुड़ाव होने के बाद भी सरकार के बिल को लौटाने का साहसिक फैसला लेने पर विपक्षी दलों ने भी मुर्मू की तारीफ की थी। तब आज के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने राज्यपाल की सराहना करते हुए कहा था कि उनके इस कदम ने साबित कर दिया कि आदिवासियों का हित सोचने वाली राज्यपाल राजभवन में हैं।