
ककसाड़ नृत्य…मैं अबूझमाड़ हूं,मेरी सभ्यता,और संस्कृति सदियों पुरानी है…यहां के आदिवासी प्रकृति के कोख में रहना पसंद करते है
कमलेश:मैं अबूझमाड़ हूं, मेरी सभ्यता और संस्कृति सदियों पुरानी है।यहां के रहने वाले आदिवासियों में आस्था विश्वास और परस्पर सहयोग की भावना भरी हुई है।अबूझमाड़ की भूमि रहस्यों से परिपूर्ण है।आच्छादित घने जंगलों के बीच प्यार के बीज पनपते हैं।यहां के आदिवासी प्रकृति के कोख में रहना पसंद करते है।प्रकृति की आँचल में इन्हें जीवन जीने के लिए पर्याप्त संसाधन मिल जाते है।मिट्टी खपरैल घास पूस के घर में आपसी प्यार से सभी रहते है। यहां के लोगों में जीवन के प्रति दृष्टिकोण मस्ती से भरा होता है।महिलाएं मेहनतकश होती है।खान पान रहन सहन बहुत ही सरल है।महिलाएं सही मायने में पति की सहचरी मानी जाती है।
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प्रकृति के आराधना के लिए ककसाड़ नृत्य किया जाता है।सही मायने में पेड़ पौधों पर्वतों से सीधे संवाद नृत्य के माध्यम से की जाती है।ककसाड़ का अर्थ:”-ककसाड़ “( जत्रा या पूजा यात्रा) शब्द व्यापक अर्थ में जनजातियों के द्वारा की जाने वाली लोक देवी और लोक देवताओं की आराधना है जो नृत्य प्रधान पर्व के रूप में मनाया जाता है।अबूझमाड़ इलाके के युवक- युवती,वृद्ध सभी एक नियत गांव में जुटते हैं और पूजा अर्चना करते हैं। इसमें युवक-युवतियों की प्रमुख भूमिका होती है।नृत्य में गाये जाने वाले गीतों,घुँघरुओं एवं वाद्ययंत्रों से निकलने वाले संगीत बहुत मधुर होते हैं।