
मातृत्व दिवस पर विशेष…मां सिर्फ़ शब्द नहीं,है स्वरूप ,मां में ही है ईश्वर का रूप
मां की ही करूं पूजा,
मां को ही करूं प्रणाम।
मां के ही चरणों में है चारों
धाम।
मां सिर्फ़ शब्द नहीं,
है स्वरूप
मां में ही है ईश्वर का रूप।
कौशल्या बन राम को जनाया,
यशोदा बन कृष्ण को खिलाया।
मां ने ही भरत को भी जन्म देकर,
दुनिया में भारत का नाम
अमर है कराया……!!
हमारे सोने के बाद है सोती,
हमारे जगने के पहले ही है जग जाती।
हमें चोट लगने पर खुद है रोती,
वात्सल्य रूपी मरहम से हर जख्म एक क्षण में है भर देती।
बच्चों के एक सवाल चार बार पूछने पर भी उतने ही प्यार से हर बार बताती……
ना कभी झल्लाती न कभी चिल्लाती…..?
निस्वार्थ ताउम्र अपना सर्वस्व हम पर लुटाती,
बच्चों को रोटी कम ना पड़े यह सोच…..
कई बार मां भूखे ही रह जाती।
मां को कोई सैलरी नहीं मिलती …??
क्योंकि मां कोई नौकरी नहीं करती ….??
फिर भी न जाने क्यों उसके हिस्से में कोई छुट्टी नहीं होती…?
हां मां तो अनपढ़ होती है न….!!
तभी तो दो रोटी मांगने पर
चार लाकर है देती…!!
पाल लेती है मां हर परिस्थिति में भी अपने सभी बच्चे,
पर बच्चों की बेरहमी तो देखो….
इन सभी से एक मां भी नहीं पाली जाती।
छोड़ आते हैं मां को वृद्धा आश्रम,
यह बोलकर की मां आते जाते रहेंगे हम….!
फिर भी मां देती है आशीर्वाद और बोलती है बेटा रखना अपना ख्याल ..!!
मैं रहूंगी यहां खुशहाल….!!
बेटे के जाते ही टूट जाती है वह शीशे की तरह और बिखर जाती है गगन के तारों की तरह …!
और लगती है सोचने क्या ……?
मेरे ही परवरिश में कोई कमी रह गई ….???
जो मेरा ही औलाद छोड़ गया मुझे इस तरह….??
फिर समेट लेती है बेटे की सभी यादों को अपने पलकों में,
और सोचती है इससे तो अच्छा
वह छोड़ गया होता मुझे सड़कों में,
उसके आते ही मैं कहीं छुप जाती
पर उसके कहीं आने-जाने पर मैं उसे भर नैन देख तो पाती!
भले ही उसके घर नहीं जाती….??
पर कहीं आते-जाते भर नैन उसे देख तो पाती।
कोई बात नहीं अगर वह मुझे खाने को रोटी नहीं देता….????
मैं चौक चौराहे में भी मांग कर खा लेती, पर भर नैन उसे देख तो पाती।
रहती है महफिल में भी अकेली,
थक जाती हैं उसके नैन,,,,
हो जाती है ओ बेचैन…..
कटते नहीं उसके दिन रैन।
हर सुबह उठती है वह नई आशा और विश्वास के साथ,
कि शायद आज आएगा बेटा और पकड़ लेगा हाथ ।
बोलेगा चलो मां घर बहुत आती है तुम्हारी याद।
नहीं रह सकते हम सब बिन तेरे,
आज से तू भी रहना साथ ही मेरे।
ऐसे ही गुजर जाते हैं ना जाने कितनी सुबहें और टूट जाती है मां की आस विश्वास।
नहीं आता बेटा लेने कभी भी ,
भले ही अनजान बन रहता है आसपास।
लोग कराते हैं पूजा-पाठ,
भागवत – पुराण।
चाह में स्वर्ग के सिंहासन की,
राजकुमारी कहती है कर लो वंदन मां के चरणों की।
मिल जाएगा तुम्हें स्वर्ग हो जाएगा बेड़ा पार।
क्योंकि मां के चरणों में ही है गीता, वेद और कुरान।
क्यूं करूं किसी से दिल्लगी….?
क्यूं करूं किसी की बंदगी….?
जब मां ही है मेरी जिंदगी।
जब मां ही है मेरी जिंदगी।
(यह रचना मौलिक एवं काल्पनिक है)
दिनांक – 08/05/2022
समय – 10:25 (सुबह)
🖊️🖊️राजकुमारी जायसवाल 🖊️🖊️
पी.आर.टी. हिंदी
डीएवी भटगांव
आप सभी को मातृत्व दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं और आशा एवं विश्वास रखती हूं कि आप सब अपनी मां को हमेशा खुश रखेंगे और आप उनके साथ रहेंगे।