
सत्यदर्शन साहित्य…आपकी लिखी चिट्ठी…हम एक ऐसे युग में रह रहे है,जहां हम महिलाओं की बात कर रहे हैं,पर जब हम पुरूष की बात करते हैं,तो हमारे विषय बहुत कम हो जाते हैं
प्रिय रवि,
तुम्हें ढेर सारा प्यार।आज तुम्हें ये खत लिख रही हूं।जानती हूं कि जितना कुछ कहूंगी,जो कुछ लिखूंगी तुम्हारे बड़प्पन के आगे सब छोटा पड़ जाएगा।फिर भी…रवि, उम्र में तुम मुझसे छोटे हो,पर दरअसल तुम कितने बड़े हो,इसका अंदाज मेरे सिवाय और कोई नहीं लगा सकता।मेरे लाख समझाने के बाद भी नही माने थे तुम।घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी।मां बीमार थी।मैंने कहा,’रवि मैं बड़ी हूँ तुमसे।मैं जिम्मेदारी उठा सकती हूं।तू कुछ मत सोच, बस पढ़ाई पर ध्यान दे।मुझे कोई न कोई छोटा मोटा जॉब मिल ही जाएगा।’मुझे आज भी याद है,मेरे ये शब्द सुनकर कैसे नाराज हो गए थे तुम,’नही दीदी’।तू बेकार की बातें मत कर।अपनी पढ़ाई कर।मैं नहीं चाहता कि तू अपना करियर खराब करे।लड़कियों के लिए पढ़ाई बहुत जरूरी है।और फिर मैं कोई पढ़ाई छोड़ थोड़ी ही रहा हूँ।बस थोड़ा सा ब्रेक ले रहा हूँ।’
रवि तुम नहीं माने।मानते भी कैसे ? तुमने ना चाहते हुए भी पढ़ाई छोड़ी और चौदह साल की छोटी – सी उम्र में किसी वयस्क आदमी की तरह सारी जिम्मेदारियां उठा लीं।इन बड़ी – बड़ी जिम्मेदारियों के बीच तुम अपना बचपन भुला बैठे।हम सबने तुम्हारे लिए कितने सपने देखे थे । तुमने ख़ुद अपने लिए कितने सपने देखे थे,पर परिस्थिति ने बीच रास्ते में ही उन सारे सपनों की दिशा बदल दी।तुमने एक दुकान पर नौकरी करनी शुरू कर दी।आज देखते – देखते दो साल हो गए इस बात को । तुमने कभी अपने अंदर के दर्द को किसी को नहीं बताया , बस यही दिखाया कि तुम ख़ुश हो । जिस उम्र में कॉपी – पेन को तुम्हारा साथी होना चाहिए था , उसमें तुमने परिवार की जिम्मेदारी पूरी तरह से अपने छोटे कंधों पर संभाल ली । अब मेरे बार – बार कहने पर तुमने काम के साथ में पढ़ाई शुरू की है । सुबह स्कूल , फिर दुकान , उसके बाद लौटने पर फिर देर रात तक पढ़ाई । सोचती हूं कि अब थोड़े सालों में मेरा विवाह हो जाएगा । तुम्हारा भी । फिर बच्चे और नई जिम्मेदारियां । इस सबके बीच तुम ख़ुद कहां रहे रवि ? तुम्हारे सपने … वे टूटने के लिए ही थे क्या ? हम एक ऐसे युग में रह रहे हैं , जहां हम अलग – अलग तरह से स्त्रियों की बात कर रहे हैं , पर जब हम पुरुष की बात करते हैं , तो हमारे विषय बहुत कम हो जाते हैं । उनकी हिंसा , उनकी विकृतियां , उनकी नकारात्मकता ही शेष रहती है … पर रवि जैसे इंसानों का क्या ? क्या पुरुष समाज पर इस दृष्टि से बात नहीं होनी चाहिए ?
कारवी
एक दौर था चिट्ठी अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम हुआ करता था।बदलते वक्त ने इसके स्वरूप को जरूर बदल दिया है।लेकिन आज भी कुछ चिट्ठियों की खुश्बू महकती है।हो सकता है कि आपकी लिखी कोई चिट्ठी जीवन ही बदल दे।कोई रिश्ते नए सिरे से जी उठे।अपने अनुभव और चिट्ठी लिख भेजिए हमें satyadarshanlive@gmail.com पर,या Facebookपर satyadarshanlive.com पर संपर्क करें | आप हमें किसी भी प्रेरणात्मक ख़बर और वीडियो 7587482923व्हाट्सएप में भेज सकते हैं