मुझे लगता है शिक्षा हर किसी को मिलनी चाहिए…अगर मेरे कुछ बदलाव से बच्चों का भविष्य बन सकता है तो मैं वह हर काम करूंगा…नवाचारी शिक्षक की प्रेरणादायी कहानी

नवाचारी शिक्षक गिरीश बावलिया का बचपन गरीबी में बीता। परिवार की आर्थिक हालत ठीक नहीं थी। कम उम्र में ही उन्हें मजदूरी करनी पड़ी, किराने की दुकानों पर काम किया, लेकिन कभी हौसला नहीं खोया। वे लगातार कोशिश करते रहे और सरकारी स्कूल से पढ़कर प्रिंसिपल बने। इसके बाद उन्होंने तय किया कि जिन मुश्किलों का सामना उन्हें करना पड़ा है, दूसरे बच्चों को नहीं करना पड़े।

फिर क्या था, गांव के सरकारी स्कूल की सूरत ही बदल डाली। जिस स्कूल की गंदगी और पढ़ाई देखकर बच्चे स्कूल नहीं आते थे, अब उस इलाके के प्राइवेट स्कूल के बच्चे भी अपना स्कूल छोड़कर उनके यहां दाखिला ले रहे हैं। क्योंकि उनका पढ़ाने तरीका अनोखा है। वे कबाड़ की चीजों से अलग-अलग मॉडल बनाकर बच्चों को खेल-खेल में साइंस पढ़ाते हैं। ताकि बच्चों का पढ़ाई में मन लगे।

कोरोना में बच्चे स्कूल नहीं आ सकते तो उन्होंने खुद के पैसे से ऑनलाइन क्लास की व्यवस्था शुरू कर दी। जो बच्चे ऑनलाइन क्लास जॉइन नहीं कर सकते उनके घर-घर जाकर वे पढ़ाते हैं। इतना ही नहीं वे स्कूल में झाड़ू-पोछा भी लगाते हैं और स्कूल का टॉयलेट भी खुद ही साफ करते हैं।

पहले न के बराबर बच्चे ही स्कूल आते थे
गिरीश के पढ़ाने का तरीका अनोखा है। वे नए-नए प्रयोग करते रहते हैं ताकि बच्चों का पढ़ाई में मन लगे।38 साल के गिरीश एक प्राइमरी स्कूल के प्रिंसिपल हैं। 2004 से वे बच्चों को पढ़ा रहे हैं। इसके पहले वे शिवराजपुर गांव के सरकारी स्कूल में टीचर रहे। 2018 में उन्होंने Head Teacher Aptitude Test (HTAT) एग्जाम पास किया। उसके बाद ‘वडोद प्राइमरी स्कूल’ के प्रिंसिपल बने।

गिरीश कहते हैं, “जब मैंने स्कूल ज्वॉइन किया यहां 230 बच्चे रजिस्टर्ड थे, लेकिन 120 के आस-पास बच्चे ही रेगुलर स्कूल आते थे। कई बच्चों ने स्कूल में रजिस्ट्रेशन तो करवाया था, लेकिन पढ़ाई कहीं और करते थे।

बच्चों की अटेंडेंस की समस्या को जानने के लिए मैं घर-घर जाकर उनके पेरेंट्स से मिला और बच्चों को स्कूल भेजने की अपील की। लोग अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में नहीं भेजना चाह रहे थे, उनकी शिकायत थी कि सरकारी स्कूल में न ही पढ़ाई होती है और न ही साफ-सफाई रहती है।

वे कहते हैं कि मैंने लोगों को भरोसा दिलाया कि मैं इन सब चीजों का ध्यान रखूंगा। उसके बाद मैंने स्कूल की सूरत बदलने की ठान ली। सुंदर बिल्डिंग बनाया गया और साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखा। बच्चों को नए-नए मॉडल से पढ़ाना शुरू किया। इसका फायदा यह हुआ कि कुछ ही समय बाद बच्चों की अटेंडेंस बढ़ने लगी।

प्रिंसिपल होकर टॉयलेट की साफ-सफाई करते हैं
गिरीश स्कूल दो घंटे पहले जाते हैं ताकि स्कूल की साफ-सफाई, गार्डनिंग या दूसरे जरूरी काम कर सकें।गिरीश बताते हैं कि मेरी पहल के बाद स्कूल में लड़कों की संख्या तो बढ़ गई, लेकिन अभी भी कम ही लड़कियां स्कूल आ रही थीं। उन्होंने लड़कियों के घर जाकर उनसे कारण जानने की कोशिश की। लड़कियों का कहना था कि स्कूल का टॉयलेट साफ नहीं रहता। इसलिए वो स्कूल ही नहीं जाती थीं।

मीडिया से बात करते हुए गिरीश कहते हैं, “ मैंने लड़कियों से कहा अगर टॉयलेट साफ मिले तो आप सब स्कूल आओगी? जिसका जवाब उन्होंने ‘हां’ दिया। फिर मैं बाजार से फिनायल और टॉयलेट ब्रश खरीद कर लाया। मैंने सफाई शुरू की तो स्कूल के दूसरे टीचर्स और बच्चे हैरान रह गए और मुझे ऐसा करने के लिए मना भी किए। मैंने उन्हें समझाया जिस तरह मैं अपने घर को साफ रखता हूं उसी तरह स्कूल की सफाई भी मेरे लिए जरूरी है। इसके बाद स्कूल में लड़कियों की संख्या भी बढ़ गई।

सरकारी स्कूल में सरकार स्वीपर की सुविधा मुहैया कराती है तो आप क्यों टॉयलेट साफ करते हैं? ऐसा पूछा जाने पर गिरीश का कहना है की सरकार स्वीपर के लिए बहुत कम वेतन देती है। कम पैसों की वजह से वो लोग हफ्ते में सिर्फ एक ही दिन आते हैं। जब स्कूल ओपन रहता है तो हर दिन टॉयलेट साफ करने की जरूरत होती है। ऐसे में कुछ दिन वो लोग सफाई करते हैं और कुछ दिन मैं करता हूं, जिससे सफाई मेंटेन रहती है।

कबाड़ से बनाते हैं साइंस के मॉडल
गिरीश ने बच्चों को पढ़ाने के लिए सोलर सिस्टम, रोबोट, तोप, सैटेलाइट, फाइटर प्लेन, पृथ्वी और परमाणु सहित कई मॉडल बनाए हैं।गिरीश बच्चों को मेले और प्रदर्शनियों में ले जाते हैं। इसके अलावा प्रोजेक्टर या वीडियो की मदद से भी बच्चों को पढ़ाते हैं। एक बार साइंस की क्लास में एक बच्चे ने उनसे मिसाइल के बारे में पूछा तो उन्होंने उसे फोटो और वीडियो की मदद से मिसाइल के बारे में समझने की कोशिश की, लेकिन उसे समझ नहीं आया। तब उन्होंने मिसाइल का मॉडल बनाने का सोचा।

गिरीश कहते हैं, “ सरकारी स्कूल का बजट बहुत कम होता है। हम मॉडल बनाने के लिए ज्यादा पैसे खर्च भी नहीं कर सकते इसलिए मैंने कबाड़ में फेंकी चीजों को मॉडल बनाने के लिए इस्तेमाल किया। मुझे मिसाइल का मॉडल बनाने के लिए पीवीसी पाइप की जरूरत थी। जो कबाड़ में बहुत ही कम रुपए में मिल गई। मैंने सबसे पहले मिसाइल का मॉडल बनाया। फिर सोलर सिस्टम, रोबोट, तोप, सैटेलाइट, फाइटर प्लेन, पृथ्वी और परमाणु सहित कई मॉडल बनाए।”

गिरीश कोई प्रोडक्ट बनाने से पहले उसे अच्छी तरह से समझ लेते हैं। फिर उसे कबाड़ की चीजों से तैयार करते हैं। उसके सारे पार्ट्स अलग-अलग करके स्कूल ले जाते हैं। वहां स्कूल के बड़े बच्चों से उनके पार्ट्स को ज्वॉइन करवा मॉडल तैयार करते हैं। इस तरह से बच्चे मॉडल की मदद से किसी टॉपिक को आसानी से समझ जाते हैं।

160 किलोग्राम का बनाया तोप का मॉडल
पिछले दो सालों में उन्होंने 15 मॉडल बनाए हैं जिसके लिए अलग-अलग चीजों का इस्तेमाल किया। इनमें से सबसे खास तोप का मॉडल है जो 160 किलोग्राम का है।पिछले दो सालों में उन्होंने 15 मॉडल बनाए हैं जिसके लिए अलग-अलग चीजों का इस्तेमाल किया। इनमें से सबसे खास तोप का मॉडल है जो 160 किलोग्राम का है। अपने सबसे मुश्किल मॉडल के बारे में गिरीश बताते हैं, “मुझे तोप बनाने में सबसे अधिक समय लगा था, वो थोड़ा मुश्किल भी था। तोप को मैंने सीमेंट से बनाया था जिसका वेट सबसे ज्यादा है। इसे बनाने में मुझे 15 दिन लगे थे।”

तोप बनाने के पीछे की कहानी के बारे में वे कहते हैं, “एक बार एक टीचर सोशल साइंस की क्लास ले रहे थे। तभी मैं भी उस क्लास में पहुंचा। एक लड़के ने मुझसे पूछा कि तोप क्या है? मैंने उसी समय क्लास के टीचर को कहा कि हमें बच्चों को एक तोप दिखानी चाहिए। गांव के करीब एक होटल में तोप का मॉडल था, हमने बच्चों को दिखाया भी, लेकिन बाद में मैंने खुद बच्चों के लिए तोप का मॉडल बनाया।”

गांव के स्कूल को बनाया आधुनिक स्कूल
गिरीश कहते हैं कि सरकारी स्कूल का बजट कम होता है। इसलिए मैं खुद के पैसों से ही कई तरह के मॉडल बनाता हूं।कोरोना में देश के कई स्कूलों की तरह गिरीश के स्कूल के बच्चों की पढ़ाई पर असर हो रहा था। इसको देखते हुए वे बच्चों के पेरेंट्स से मिले और 2 से 3 ग्रुप में बच्चों को घर जा कर उन्हें ट्यूशन देने लगे।

वे कहते हैं कि मैं नहीं चाहता था कि किसी हाल में बच्चों की पढ़ाई बंद हो। स्कूल में 301 बच्चे हैं तो सबके घर जाना मुमकिन नहीं था। सभी बच्चे पढ़ सके इसके लिए मैंने अपने स्कूल के बाकी टीचर्स को भी घर जा कर पढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया। सोशल डिस्टेंसिंग के लिहाज से कुछ समय बाद वह भी मुश्किल होने लगा, तो हमने पेरेंट्स को ऑनलाइन क्लास के लिए ट्रेनिंग दी। इस तरह हमने 301 में से 250 बच्चों को ऑनलाइन क्लास दिया। ओमिक्रॉन में भी हम यही कर रहे हैं।”

कहां से मिलती है प्रेरणा
स्कूल के बच्चे भी गिरीश के पढ़ाने के तरीके से काफी खुश रहते हैं और अच्छी संख्या में स्कूल आते हैं। हालांकि कोरोना के बाद वे ऑनलाइन पढ़ा रहे हैं।गिरीश अपने बचपन के अनुभव और पिता की दी हुई सिख को अमल कर अपने काम में आगे बढ़ रहे हैं। बचपन गरीबी में बीता, कॉलेज की फीस के लिए एक रिश्तेदार के दुकान पर काम भी किया। मेहनत करके आगे बढ़ते रहे और इस तरह आज वह एक स्कूल के अनोखे प्रिंसिपल बने।

गिरीश कहते हैं, “मुझे लगता है शिक्षा हर किसी को मिलनी चाहिए। जो लोग आर्थिक रूप से मजबूत नहीं उनके पास सरकारी स्कूल के अलावा कोई विकल्प नहीं है। अगर मेरे कुछ बदलाव से बच्चों का भविष्य बन सकता है तो मैं वह हर काम करूंगा। मेरे प्रेरणा मेरे पिता रहे हैं जिन्होंने मुझे ये सिखाया है कि कोई काम बड़ा या छोटा नहीं होता। काम तो सिर्फ काम होता है और जिसे पूरी लगन और मेहनत से करना चाहिए। मैं उनकी इन्हीं बातों को अपने जीवन में अमल करते आया हूं।


जवाब जरूर दे 

आप अपने सहर के वर्तमान बिधायक के कार्यों से कितना संतुष्ट है ?

View Results

Loading ... Loading ...


Related Articles