सत्यदर्शन काव्य…अलाव नहीं जलते,घरों से धुआं भी नहीं अब उठता

अलाव नहीं जलते
घरों से धुआं भी नहीं
अब उठता।
लोगों के दिल
जलते हैं जरूर अब
रोटियां पकती हैं हर घर में पर
धुआं सबके मनों से निकलता है।
आग जलती है
हर एक के दिल में
फिर भी कुछ लोग
ठण्ड से मर जाते हैं।
अब मेरा गांव शहर के
साथ चलता है,
आदमी दूसरे आदमी से
हर वक़्त जलता है।
एक के घर में सांप तो
दूसरे के घर
नेवला पलता है।

दिनेश चौहान


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