आखिर क्यों?जो व्यक्ति हमेशा जनहित में मदद के लिए खड़े रहता है जब उनकी बारी आती है तो लोग किनारे हो जाते है…कोरोना काल मे हजारो लोगो को निःशुल्क भोजन कराने वाले शख्सियत की जिंदगी की अनछुई कहानी…अपने कैंटीन की वहजूद बचाने इस दफ्तर से उस दफ्तर दौड़ना पड़ रहा है

कमलेश यादव:मानव सभ्यता सदियों पुरानी है उतनी ही पुरानी है यहां के वातावरण मे मदद की सँस्कृति, प्रकृति के संतुलन की जितनी तारीफ की जाए वह कम है। एक दूसरे की मदद की भावना से लोगो ने अब तक का जीवन जीया है। कभी कभी हमारे सामाजिक व्यवस्था में कुछ भूल हो जाती है जो व्यक्ति हमेशा जनहित में मदद के लिए खड़े रहता है जब उनकी बारी आती है तो लोग किनारे हो जाते है।वो कभी यह नही जताते की उन्हें किसी प्रकार से मदद की जरूरत है चुपचाप खामोशी से ईश्वर के हाथों में सब कुछ सौंपकर अपने कार्य मे लगे रहते है।आइये ऐसे तमाम समाज के सुपरहीरो के जीवन मे झांकने की कोशिश करते है।कोरोना काल के दर्द को हम सबने मिलकर झेला है या यूं कहें जिंदगी की सच्चाई का पाठ हमे पढ़ने को मिला है।आज हम बात करेंगे ऐसे कैंटीन की जिन्होंने कोरोना काल मे हजारो लोगो को निःशुल्क भोजन कराया है लेकिन आज उनका व्यापार बदहाली की स्थिति में आ गई है।कोई संवेदना जताने के लिए भी उनके पास नही जाता।छत्तीसगढ़ राज्य के राजनांदगांव जिले के जिला चिकित्सालय बसंतपुर में मां अन्नपूर्णा कैंटीन संचालित हो रही है।कैंटीन के संचालक मनोज झा और किशोर झा है इन्हें मानवता के सेवा कार्य के लिए पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह के द्वारा कोरोना योद्धा सम्मान भी मिला है।चूंकि वर्तमान में मेडिकल कालेज स्थान्तरित हो गई है इसलिए इन्हें काफी समस्याओं से गुजरना पड़ रहा है।

कैंटीन के संचालक किशोर झा कहते है मरीजों के परिजन हताश निराश परेशान रहते है सभी के सेवा करने से जो खुशी मिलती है उसे शब्दो मे बयां करना मुश्किल है।मैंने कोरोना काल मे कैंटीन के माध्यम से जरूरत मन्दो को निःशुल्क भोजन की सेवा मरीज और उसके परिजनों के लिए शुरू की थी।यह सेवा करवाने वाला ईश्वर है मैं तो निमित्त मात्र हु।आज कैंटीन संचालन से लेकर तमाम प्रकार की समस्याओं से मुझे जूझना पड़ रहा है।लोग तो नही आ रहे है लेकिन कैंटीन के वहजूद को बचाने के लिए इस दफ्तर से उस दफ्तर चक्कर लगाना पड़ रहा है।हम तो कम पढ़े लिखे लोग है सेवा करना जानते है दुख इस बात का लगता है जब बेआवाज के आवाज को कोई नही सुनता।सभी नजरअंदाज करना शुरू कर देते है।खैर मुझे अफसोस नही है लेकिन न्याय की आकांक्षा जरूर रखता हूं क्योकि मेरे परिवार की जिम्मेदारी मुझ पर ही है।

जो लोगो की मदद करता है ऐसे लोगो को जब मदद की आवश्यकता होती है तो हर व्यक्ति का नैतिक दायित्व बन जाता है कुछ सोचे ऐसे सुपरहीरो के बारे में ताकि मानवता की परिभाषा कभी धूमिल न हो पाए।सतयदर्शन लाइव ऐसे सुपरहीरो की आवाज शासन प्रशासन और दुनिया की सबसे बड़ी सत्ता “आवाम”तक इस बात को पहुँचाने की कोशिश कर रही है।ताकि मदद की सँस्कृति हमेशा हमेशा के लिए फले फुले।


जवाब जरूर दे 

आप अपने सहर के वर्तमान बिधायक के कार्यों से कितना संतुष्ट है ?

View Results

Loading ... Loading ...


Related Articles