मेरी पूरी दुनिया उजड़ गई थी पिता का साया भी उठ गया था लेकिन मैंने हार नही मानी…संकल्प से शुरू हुई शोषित वंचित पीड़ितों की मदद का सिलसिला…युवा धीरेंद्र साहू की प्रेरणादायी कहानी

कमलेश:साल 2006 वो रात आज भी मुझे याद है उस दिन समझ में आया अपनो को खोने का दर्द क्या होता है।रात के सन्नाटे में घर के दरवाजे को खटखटाया गया मेरे पिताजी बबला साहू समाजसेवी थे लोगो की दुख तकलीफ में साथ देना जैसे उनके स्वभाव में था।दरवाजे के सामने 30-40 की संख्या में हथियारबंद माओवादी उपस्थित थे।मेरे पिताजी के अच्छाइयों का मजाक उड़ाया गया और वह घटना घटी जिसे मैंने सपने में भी नही सोचा था।मेरे सर से पिताजी का साया उठ गया।जैसे पैरों तले जमीन खिसक गया हो।मेरे बालमन में क्रांति की बीज उबाल मार रही थी।मैने उस दिन संकल्प लिया कि मुझे जो दर्द मिला है ऐसे हजारो पीड़ितों के लिए कुछ करूँ।फिर सफर की शुरुआत हुई माओवादी पीड़ित लोगों की मदद का सिलसिला।यह दर्द भरी कहानी है धीरेंद्र साहू जी का जिन्होंने वंचित शोषित और न्याय के लिए गुहार लगाए लोगो की मदद को अपनी जिंदगी का मकसद बना लिया है।

सत्यदर्शन लाइव से बातचीत में धीरेंद्र साहू ने बताया कि,शासन की पुर्नवास नीतियों के तहत मेरी माँ कीर्ति साहू को नौकरी में रखा गया जिससे परिवार का जीवकोपार्जन चल रहा है।हमने अपने पुराने गांव से काफी समय पहले ही पलायन कर लिए थे।क्योकि जान का डर तो था कब कौन किस रूप में आकर मेरे परिवार को नुकसान पहुंचा दे।इसी दरमियान विजय गुप्ता जी से मुलाकात हुई उनका मकसद भी पीड़ित लोगों की मदद है साथ मे मिलकर हमने समस्त योजनाओं का सूक्ष्मता से अध्ययन और विश्लेषण किया है ताकि जरूरतमन्द लोगों तक मदद पहुंचाया जा सके।

निःस्वार्थ भाव से उनकी आवाज बनने की कोशिश की है जिनका आवाज ही नही है।पीड़ित परिवारों तक शासन की पुर्नवास योजनाओं की जानकारी पहुँचाने के लिए हमने हाल ही में जनसेवा संघ के नाम से एक संस्था का पंजीयन कराया है ताकि सभी कार्य पारदर्शिता के साथ मे हो।सैकड़ो लोग न्याय की तलाश में एक दफ्तर से दूसरे दफ्तर जाते तक परेशान हो जाते है।सभी की मदद हमारी पहली प्राथमिकता में है।ताकि सभी को न्याय तय समय सीमा में मिल सके।

ऐसा कोई भी कार्य नही है जिसमे रोड़ा न आये खासकर जब मार्ग अच्छाई और नेकी का हो।जरा कल्पना कीजिये ऐसे कितने लोग है जो माओवादी पीड़ित दंश को सालों से सह रहे है।अपने ही गांव शहर में पलायन कर चुके है।दुनिया केवल सलाह देती है लेकिन हमें शिकायत नही है किसी से क्योकि वक्त और हालात ने हमे जीना सीखा दिया है वह भी सम्मान के साथ मे।शासन की नीतियों और संविधान के ऊपर अटूट विश्वास है।उजड़ी हुई दुनिया फिर से जरूर रोशन होगी।


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