मां के नाम से बनेंगे बच्चों की सर्टिफिकेट…अकेली रहने वाली महिलाओं के बच्चों को अब केवल मां के नाम से ही कास्ट और इनकम सर्टिफिकेट जारी हो सकेंगे

“अकेली रहने वाली महिलाओं के बच्चों को अब केवल मां के नाम से ही कास्ट और इनकम सर्टिफिकेट जारी हो सकेंगे। राजस्थान राज्य सरकार ने ऐसे प्रमाणपत्र के लिए पिता के नाम की बाध्यता हटा दी है। इस तरह के सर्टिफिकेट के लिए अब तक पिता के नाम का ही कॉलम होता था। इस फैसले से पति से अलग रहने वाली या सिंगल मदर के बच्चों को एससी, एसटी, ओबीसी और ईडब्ल्यूएस सर्टिफिकेट जारी हो सकेंगे। इस संबंध में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग ने सर्कुलर जारी किया है।

राजस्थान देश में पहला राज्य, जहां यह सुविधा शुरू
राज्य के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग का दावा है कि राजस्थान देश का पहला राज्य है, जहां सिंगल मदर्स के बच्चों को उनकी मां की जाति के अनुसार कास्ट और इनकम सर्टिफिकेट जारी होंगे। जानकारी के मुताबिक देश के किसी दूसरे राज्य में ऐसी व्यवस्था नहीं है। राजस्थान सरकार की यह पहल अन्य राज्यों के लिए नजीर बनेगी। ऐसे फैसले से उन महिलाओं को फायदा होगा जो आर्थिक तौर पर कमजोर होती हैं। अब ये सर्टिफिकेट मिलने से सिंगल मदर्स के बच्चों को सरकारी सुविधाओं का लाभ मिलने में सहूलियत होगी।

भारत में कितनी हैं सिंगल मदर्स
संयुक्त राष्ट्र की 2019-2020 की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में अकेले रहने वाली मांओं की संख्या में 4.5 फीसदी (करीब 1.3 करोड़) है। महिला प्रधान परिवारों पर जनगणना के आंकड़े देश में मौजूदा सिंगल मदर्स की संख्या का मोटा अनुमान जाहिर करते हैं। लेकिन ये संख्या पूरी तस्वीर नहीं दिखाती है, क्योंकि ज्यादातर मामलों में सिंगल मदर्स अपने परिजनों के साथ रहती हैं। एक अनुमान के मुताबिक 3.2 करोड़ सिंगल मदर्स अपने परिजनों के साथ रहती हैं।

सिंगल मदर्स को क्यों होना पड़ता है बच्चों से अलग?
जूड एंथोनी जोसेफ ने मलयालम में ‘सारा’ नाम से एक दिलचस्प फिल्म बनाई है। यह फिल्म उस महिला के ईर्द-गिर्द घूमती है, जो बच्चा नहीं रखना चाहती हैं। वह अपने सपने को हासिल करने के लिए तमाम मोर्चों पर जूझती है। लेकिन दूसरी तरफ ऐसी सिंगल वुमन भी हैं जो चाहने के बावजूद अपने बच्चों के साथ रह नहीं पाती हैं। इसकी वजह आर्थिक स्थिति होती है। तलाक के दौरान ज्यादातर मामलों में सिंगल मदर्स अपने बच्चों को पिता के साथ जाने को इसलिए राजी हो जाती हैं क्योंकि वो आर्थिक तौर पर बच्चों का पालन करने की हालत में नहीं होती हैं।

लोग कहते हैं कि सिंगल वुमन बच्चों का पालन-पोषण करने में सक्षम नहीं होती हैं। ऐसी महिलाओं की छवि गुड मदर्स की नहीं होती है, भले ही वह बच्चे के लिए अपना सबकुछ गंवा दे। एक अन्य महिला एनालिस्ट कहती हैं कि एक महिला के लिए यह बताना बहुत मुश्किल है कि उसके बच्चे उसके साथ क्यों नहीं रहते हैं; लोगों के लिए कहना आसान है कि उसके बच्चों को छीन लिया गया बल्कि यह नहीं कहा जाता है कि ऐसी सिंगल महिलाएं आर्थिक मोर्चे पर कमजोर होने के चलते दिल पर पत्थर रखकर बच्चों को अपने से दूर जाने देती हैं।

बच्चे के पिता का नाम बताने की जरूरत नहीं
मद्रास हाईकोर्ट ने 2015 में सिंगल मदर्स के पक्ष में एक बड़ा फैसला दिया। फैसले के मुताबिक सिंगल मदर्स को अपने बच्चों के पिता के नाम उजागर करने की जरूरत नहीं होगी। मद्रास हाई कोर्ट के मदुरई बेंच ने कहा था कि जन्म के समय यह बाध्यता नहीं होगी कि मां बच्चे के पिता के नाम को सार्वजनिक तौर पर जाहिर करे।

बैंक अकाउंट के लिए मां होगी गार्जियन
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने सिंगल मदर्स को अपने बच्चे या नाबालिग संतान के लिए अभिभावक के तौर पर मान्यता दी हुई है। असल में अकेली रहने वाली कई महिलाओं ने शिकायत की थी कि उनके बच्चों के बैंक अकाउंट ओपनिंग के समय कई बैंक अभिभावक के तौर पर मां को नहीं मान रहे हैं। इसके बाद रिजर्व बैंक ने यह व्यवस्था दी कि सिंगल मदर्स को भी अभिभावक माना जाएगा।”


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