सत्यदर्शन विशेष…कर दिखाओ कुछ ऐसा कि दुनिया करना चाहे तुम्हारे जैसा…पर्यावरण संरक्षण के लिए अनोखी मुहिम वाली रक्षाबंधन…गांव के लोग प्रकृति के संरक्षक होते है पूरे साल भर उनकी रक्षा का दायित्व वे स्वयं लेते है इसके बदले प्रकृति भी उन्हें अपनी बेशकीमती संसाधन उपहार स्वरूप देती है

कमलेश कुमार:रक्षा बंधन का पर्व पूरे भारत मे उत्साह के साथ मनाया जा रहा है।भाई-बहन का यह पवित्र त्यौहार छोटे बड़े बुजुर्गों सभी उम्र के लोगों के लिए बेहद खास है।इस दिन रक्षा का वचन दिया जाता है।आज हम आपको ऐसे शख्सियत से मिलाने जा रहे है जिन्होंने इस पर्व को पर्यावरण संरक्षण के लिए समर्पित कर दिया है दिलचस्प बात यह हैं कि उनकी इस मुहिम में हजारो लोगो का साथ मिल रहा है।छत्तीसगढ़ खूबसूरत वादियों वाला राज्य जहा प्राकृतिक सौंदर्य सीधे दिल पर उतरती हैबालोद जिले से पर्यावरण के प्रति अटूट निष्ठा रखने वाले वीरेन्द्र सिंह जिन्होंने पिछले 10 वर्षों से पौधे में रक्षा सूत्र बांधकर पर्यावरण संरक्षण के लिए शपथ मुहिम का आगाज किया है।

स्कूलों में जागरूकता
सामाजिक बदलाव की पहली सीढ़ी होती है पाठशाला।वही से नेता,वैज्ञानिक देश के भविष्य गढ़ा जाता है।वीरेंद्र सिंह ने भी पढ़ने वाले विद्यार्थियों में पर्यावरण के प्रति अपार स्नेह लाने की कोशिश की है इसी कड़ी में शा. प्राथमिक शाला कच्चे दफाई में बच्चों ने आस पास के पौधे में रक्षा सूत्र बांधकर प्रकृति की रक्षा का संकल्प लिया है।कार्यक्रम में विशेष रूप से प्रधान पाठक श्रीमति सविता जंघेल,,केशरी ठाकुर, रितेश मंडावी, अपना बहुमूल्य योगदान दिये है।

ग्राम पंचायतों में भी सन्देश
भारत की आत्मा गांव में बसती है और वन क्षेत्र का काफी बड़ा भाग गांवों में ही है।गांव के लोग प्रकृति के संरक्षक होते है पूरे साल भर उनकी रक्षा का दायित्व वे स्वयं लेते है इसके बदले प्रकृति भी उन्हें अपनी बेशकीमती संसाधन उपहार स्वरूप देती है।ग्राम धोबे दण्ड के लोगो ने भी आँवला के वृक्षों में राखी बांधकर अपनी निष्ठा को प्रदर्शित किया है। गांव से ही वीरेंद्र सिंह,मौजी राम विश्वकर्मा,देवार यादव की उपस्थिति सराहनीय रहा है।

धरती पुत्र वीरेंद्र सिंह का संकल्प
वीरेंद्र सिंह बताते है कि,धीरे धीरे वन का क्षेत्रफल कम होते जा रहे है।देश ही नही विश्व के कई देशों में लाखों हेक्टेयर वन आग लगने से नष्ट हो रहे है जिसका परिणाम कही सूखा,कही बारिश,धरती गर्म हो रही,जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण का असंतुलन हो जाना ,लोगों की मृत्यु के बाद जलाने में देश मे लाखों टन लकड़ियों की जरूरत पड़ रही है ,मैं कुछ पेड़ो को बचा सकता हूं मरने के बाद जमीन में दफन कर दिया जाये ताकी खाद बनकर फिर किसी पौधे में हरियाली ला सकू।


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