
बुलंद हौसलों के आगे खुदा भी झुक जाता है…वो जब किसी चीज को करने की ठान लेता है,तो ऐसी कोई शक्ति नहीं है,जो उसे रोक सके…संघर्ष और गरीबी में बीता महिला हॉकी टीम की कप्तान रानी रामपाल का जीवन, आज खुद बन गई हैं करोड़ों लोगों के लिए प्रेरणा
“खुदी को कर बुलंद इतना कि हर तकदीर से पहले खुदा बंदे से खुद पूछे बता तेरी रजा क्या है” उर्दू के मशहूर शायर मोहम्मद इकबाल की ये पंक्तियां संदेश देती हैं कि व्यक्ति के बुलंद हौसलों के आगे खुदा भी झुक जाता है। वो जब किसी चीज को करने की ठान लेता है, तो ऐसी कोई शक्ति नहीं है, जो उसे रोक सके। इसी कड़ी में आज हम बात करेंगे भारत की महिला हॉकी टीम की कप्तान रानी रामपाल की। रानी के जीवन की संघर्ष की कहानी आज हम सब के लिए प्रेरणा है। टोक्यो ओलंपिक में भले ही सेमीफाइनल में पहुंचने के बाद भी हमारी महिला हॉकी टीम ने ब्रॉन्ज मेडल नहीं जीता हो, पर सेमीफाइनल में जगह बना कर उसने एक नया इतिहास जरूर लिखा है। गरीबी और आर्थिक बदहाली भरे जीवन से टोक्यो ओलंपिक में भारतीय महिला हॉकी टीम की कमान संभालने तक का उनका सफर वाकई सराहनीय है।”
“रानी रामपाल ने रातों रात इतनी बड़ी उपलब्धि हासिल नहीं की है। इसके लिए उन्होंने वर्षों मेहनत कर पसीना बहाया। रानी हरियाणा के शाहबाद मारकंडा की रहने वाली हैं। उनका परिवार बहुत गरीब था। दो समय की रोटी के लिए उनके परिवार को काफी संघर्ष करना पड़ता था। उनके पिता घोड़ा गाड़ी चलाने का काम करते थे।
वे दिन में मुश्किल से 100 रुपए तक कमा पाते थे। बड़ी मुश्किल से घरवालों ने रानी को स्कूल में एडमिशन करवाया। रानी जब 6 से 7 साल की हुईं, तो उन्हें मैदान में दूसरे बच्चों को देखने के बाद हॉकी खेलने का शौक हुआ। उन्होंने अपने पिता से हॉकी खेलने की इच्छा व्यक्त की, जिसपर उनके पिता राजी नहीं हुए। उस दौरान लड़कियों का हॉकी खेलना काफी बड़ी बात थी।
बहुत जिद करने के बाद उनका शाहबाद हॉकी एकेडमी में दाखिला करवाया गया। एक इंटरव्यू में रानी बताती हैं – “मेरे परिवार के पास कोचिंग के पैसे नहीं थे। इस कारण मैंने कई बार हॉकी छोड़ने के बारे में सोचा। इस कठिन परिस्थिति में मेरे कोच बलदेव सिंह और सीनियर खिलाड़ियों ने साथ दिया। उन लोगों ने मेरी काफी मदद की।” रानी रामपाल का जीवन हम सभी को प्रेरणा देता है कि बुलंद हौसलों के दम पर हम किसी भी स्थिति से लड़कर बाहर आ सकते हैं।”