
कलम,समय और समाज के जागरूक प्रहरी विश्वनाथ देवांगन “मुस्कुराता बस्तर” की प्रेरणादायी कहानी…सच्चा साहित्यकार किसी मजहब की बेड़ियों में नहीं जकड़ा रहता,इनकी रचनाओं के पात्र आज भी समाज में हरेक वर्ग में जिंदा हैं
कमलेश यादव: आधुनिकता की दौड़ में सोशल मीडिया ने हमारे जीवन के साथ-साथ साहित्य को भी बहुत प्रभावित किया है। इन सब के बीच मौलिक रचनाओं की अपनी एक विशेषता होती है।आज हम बात करेंगे साहित्य को धरातल पर उतारने वाले शख्सियत विश्वनाथ देवांगन”मुस्कुराता बस्तर” के बारे में, वे बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न साहित्यकार हैं। सच्चा साहित्यकार धर्म,मजहब के बेड़ियों में नही जकड़ा रहता।इनकी कविताओं के पात्र आज भी समाज मे हरेक वर्ग में जिंदा हैं। विश्वनाथ देवांगन के हृदय में गरीबो और पीड़ितों के लिए सहानुभूति का अथाह सागर है। जिसको उन्होंने अपनी रचनाओं में जनसाधारण की भावनाओ परिस्थितियों और उनकी समस्याओं का मार्मिक चित्रण किया है।
छत्तीसगढ़ की पावन धरती से विश्वनाथ देवांगन साहित्य के सूरज का उदयमान हुआ। आज का कोंडागांव आधुनिकता के शहरी शिकंजे में नजर आता है,पूरे देश की तरह। लेकिन अतीत का कोंडागांव ऐसा नहीं था। उसकी दशा और दिशा अलग रही। कोंडागांव से महज कुछ ही दूरी पर कोंडागांव की जीवनदायिनी नारंगी नदी के तट बसा खूबसूरत गांव भीरागांव(ब),चारों ओर बिखरी हरियाली,बाग-बगीचे,खेत-खलिहान और हर आंख में झलकता अपनापन। मुर्गे की बांग के साथ ही लोगो की दिनचर्या शुरू हो जाती है।नारंगी नदी के निर्मल जल स्नान करके दिनभर अपने दैनिक कार्यो में पसीना बहाते हैं। फिर सूखती नदी से आधुनिक बोरवेल्स भी आज आ गये हैं। अतीत की यादें आज भी याद हैं। गांव के सीधे-सादे किसान ढोलक और मंजीरे की थाप पर लालटेन की रोशनी में रोज रामायण की चौपाई,दोहे सुनाते और अर्थ समझाते,जो बैठकर ताली बजाते उन्ही छोटे बालक में से एक था विश्वनाथ देवांगन।
विश्वनाथ देवांगन बताते हैं कि,पिताजी के ऊपर गृहस्थी का बोझ था । विषम परिस्थतियों को झेलकर पढ़ाया लिखाया। जीवन में अनेक बाधाएं और आर्थिक अनिश्चितता रही है। इसके बावजूद हमने कभी हार नहीं मानी। शुरुआती दिनों में निर्माण कार्य में कुली,फिर कोंडागांव शहर में किराने की दूकान पर 20 रूपये प्रतिदिन,व एक प्राइवेट आफिस में पानी भरना, झाड़ू,पोछा,और उसी मालिक के लिए शहर में ठेला भी खींचा पर कोई सैलरी नहीं मिली,पर उस परिस्थिति से बहुत कुछ मिला। फिर जाब लगी,शुरूआती दिनों में पहली सैलरी 1250/- रूपये हुआ करती थी। पापा मजदूर थे,फिर राजमिस्त्री का काम करते थे। और अब खेती करते हैं। बचपन की बातें आज भी याद हैं, जो घर कर गई हैं,पापा कहते कि जो भी करो पर शेर की तरह सवा शेर बनकर।
विश्वनाथ देवांगन में बचपन से ही साहित्य की अलग अलग विधा पल्लवित हो रही थी।साहित्यिक यात्रा की कड़ी में अब तक हजार से भी अधिक रचनाएं लिखी हैं। जिनमें से तीन सौ से अधिक रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं। वे मानते है कि,साहित्य में जीवन दिखता है। हमारे आसपास घटने वाली घटनाएं साहित्य में और साहित्य जीवन में महत्वपूर्ण प्रभाव रखते हैं।आज भी मुझे वह दिन याद है जब मेरी पहली कविता “काश! मैं कवि होता ।” और पहली किताब भी “काश! मैं कवि होता (कविता संग्रह) के नाम से प्रकाशित हुआ। बस्तरिया को और बस्तर में जीवन को निकटता के साथ देखने की कोशिश है।
प्रेरणास्रोत–
स्वामी विवेकानंद,एपीजे अब्दुल कलाम,नागार्जुन,अटल बिहारी वाजपेई सभी के जीवन आदर्शों को जीने की कोशिश किया हूं। महान पुरुषों के पद चिन्हों पर चलकर मानवीय पक्ष के साथ सामाजिक,धार्मिक,राजनीतिक आर्थिक और ऐतिहासिक विषयों पर आधारित अनेक कहानियां कविताएं लिखी है।हमारे साहित्य के गौरवशाली विभूतियों ने साहित्य की यथार्थवादी परम्परा की नींव रखी है आगे गति देने का कार्य अपने कांधो पर रखकर खुद को गौरवान्वित महसूस करता हूं।
हल्बी,भतरी,छत्तीसगढी़,गोंडी,हिन्दी में रचनाएं। कविता,कहानी,लघुकथा,गीत,यात्रा वृतांत,संस्मरण,खोजी यात्रा,शोध पत्र,आलेख आदि। काश! मैं कवि होता! (हिन्दी) ककसाड़..आमचो मया परब (हल्बी) प्रकाशित साझा संग्रह(1)घरौंदा (साझा बाल साहित्य संग्रह)(2) काव्यांजलि (साझा काव्य संग्रह)(3) हाक दयसे उजर (साझा संकलन)(लगभग आधा दर्जन पुस्तकें प्रकाशनाधीन)। बस्तरिया का दशा और दिशा झकझोरता है।आम हो खास बस्तरिया आज भी व्यवसाय का हिस्सा बन कर रह गया है। उसकी कला और संस्कृति पर होते आघात लिखने को मजबूर करते हैं।
विश्वनाथ देवांगन की रचना- दृष्टि,विभिन्न साहित्य रूपों में अभिव्यक्त हुईं हैं ।उनकी कृतियाँ भारत के सर्वाधिक विशाल और विस्तृत वर्ग की कृतियाँ हैं। विश्वनाथ देवांगन मुस्कुराता बस्तर” सादे और सरल जीवन के मालिक हैं।उनका लेखन हल्बी,भतरी,छत्तीसगढी़,गोंडी,हिन्दी। साहित्य की एक ऐसी विरासत है जिसके बिना साहित्यिक विकास का अध्ययन अधूरा होगा। साथ उन्होने बस्तर सहित पूरे देश के नवोदित साहित्यकारों का मार्गदर्शन किया है। सत्यदर्शन की टीम उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करता है।