
अपनी मेहनत पर पूरा भरोसा…परीक्षा की तैयारी के लिए किताब तक नहीं खरीद पाई, लेकिन हौसला बनाए रखा और अखबार पढ़कर ही भारत की सबसे कठिन परीक्षा को पास कर बन गई आईएएस
‘सफलता का कोई शार्टकट नहीं होता’ ये बात तो आपने कई बार सुनी होगी, लेकिन इसे चरितार्थ किया है केरल की रहने वालीं एनीस कनमनी जॉय ने। बेहद गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वालीं एनीस लंबे समय तक गरीबी से लड़ीं, जीवन में कई बार असफलता से दो-चार हुईं, लेकिन कभी हिम्मत नहीं हारी। उन्हें अपनी मेहनत पर पूरा भरोसा था। गरीबी के कारण वह यूपीएससी की तैयारी के लिए किताब तक नहीं खरीद पाई, लेकिन हौसला बनाए रखा और अखबार पढ़कर ही भारत की सबसे कठिन परीक्षा को पास कर इतिहास रच दिया। आइए जानते हैं आईएएस एनीस के संघर्ष से सफलता के सफर के बारे में…
केरल के पिरवोम के छोटे से गांव पंपाकुड़ा की रहने वालीं एनीस कनमनी जॉय के पिता किसान हैं और मां खेतों में श्रमिक का काम करती हैं। घर में केवल खाने-पीने का इंतजाम हो जाना ही बहुत माना जाता था। ऐसे हालात में यूपीएससी के लिए कोचिंग या अच्छे नोट्स का इंतजाम कर पाना एनिस के लिए दूर की कौड़ी थी। इसके बावजूद उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी और इसे किस्मत का फैसला मानकर चुपचाप घर में नहीं बैठीं। उन्हें जहां से जो भी पढ़ने को मिला उन्होंने पढ़ा, अखबार पढ़-पढ़कर खुद को अपडेट रखा। इसी का नतीजा था कि वह अपने दूसरे ही प्रयास में देश की सबसे कठिन परीक्षा (यूपीएससी) में 65वां स्थान हासिल कर आईएएस बनने में सफल रहीं।
डॉक्टर बनने का था सपना
एनीस ने कक्षा 10वीं तक की पढ़ाई अपने गांव में ही रहकर की। इसके बाद 12वीं करने के लिए एर्नाकुलम चली गईं। एनीस बचपन से ही डॉक्टर बनना चाहती थीं, लेकिन उनका यह सपना पूरा नहीं हो सका। काफी मेहनत करने के बाद भी उनका चयन एमबीबीएस में नहीं हुआ। ऐसे में कोई दूसरा रास्ता नहीं दिखा तो उन्होंने जिसमें मान-सम्मान के साथ वह दूसरों के मदद के लिए भी कुछ कर सकें।
ट्रेन में मिले दो लोगों ने आईएएस की तैयारी के लिए किया प्रेरित
नर्स का काम शुरू करने के बाद एक बार एनीस ट्रेन से कहीं जा रहीं थीं। सफर के दौरान उन्हें ट्रेन में दो लोग मिले। कुछ देर बार एनीस और उन दो लोगों में पढ़ाई को लेकर बातचीत होने लगी। बातचीत के दौरान दोनों एनीस का रुझान और लगान भांप गए। जिसके बाद उन दो लोगों ने एनीस को आईएएस की परीक्षा की तैयारी करने की सलाह दी। दोनों ने उन्हें प्रेरित करते हुए कहा कि ये परीक्षा कठिन जरूर है, लेकिन इसमें उनके जैसे मेहनती लोग सफल हो सकते हैं। तब तक एनीस को यह नहीं मालूम था कि आईएएस की परीक्षा किसी भी सब्जेक्ट में ग्रेजुएट होने के बाद दी जा सकती है। इस जानकारी के बाद उन्होंने अपना फोकस यूपीएससी परीक्षा पर केंद्रित कर दिया।
गरीबी ऐसी की किताब खरीदने तक के नहीं थे पैसे
एनीस ने यूपीएससी की तैयारी करने का मन तो बना लिया था, लेकिन सबसे बड़ी परेशानी यह थी कि उनके पास किताबें, नोट्स और प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए अहम मैग्जीन्स खरीदने तक के पैसे नहीं थे। इसके बिना परीक्षा की तैयारी कैसे कि जाए यह सोच-सोचकर वह काफी परेशान थीं। कोई रास्ता नहीं सूझने पर एनीस ने तय किया कि वह अखबार के जरिये ही परीक्षा की तैयारी करेंगी। इसके बाद वह रोजाना बारीकी से अखबार पढ़ने लगीं। उनकी इस लगन का फल भी उन्हें दूसरे ही प्रयास में मिल गया।
अखबार ने तैयारी में की पूरी मदद
एनीस बताती हैं कि उन्होंने अखबारों के एडिट पेज और करेंट अफेयर पर अपना सबसे ज्यादा फोकस रखा। अखबार की मदद से उन्हें तमाम योजनाओं और सुविधाओं के साथ कई और जानकारियां भी मिलती रहीं। एनीस को पहले प्रयास में यूपीएससी में 580 रैंक मिली थी, जबकि दूसरी बार 2011 में उनकी 65वीं रैंक आई और वह आईएएस बन गईं। एनीस बताती हैं कि जब मुझे परीक्षा पास करने की खबर मिली तो उस वक्त मैं ट्रेन में थी। मुझे यकीन ही नहीं हुआ कि मैंने परीक्षा पास कर ली है, मैं भावुक होकर रोने लगी थी।
कोडागु जिले की डिप्टी कमिश्नर रहते हुए कोरोना के खिलाफ किया बेहतरीन काम
एनीस कनमनी जॉय की गिनती केरल के तेज-तर्रार और मेहनती आईएएस अफसरों में होती है। देश में चल रहे कोरोना संकट में भी वह शानदार काम कर रही हैं। केरल के कोडागु जिले कि डिप्टी कमिश्नर रहते हुए उन्होंने कोरोना के प्रति लोगों को भरपूर जागरूक किया, इसके साथ ही कई ऐसे फैसले लिए, जिसकी वजह से उनके जिले में कोरोना के बहुत ही कम केस मिले। एनीस की मेहनत का ही नतीजा था कि कोडागु देश के उन जिलों में शामिल हुआ जहां 28 दिन से कोविड-19 के एक भी केस सामने नहीं आए थे।