
विपरीत परिस्थितियों में भी एक अनजाने साहस से जीवन में रोशनी ढूंढने वाली सिंधु ताई…हजारों अनाथ बच्चों की माँ…सिंधुताई के परिवार के अनाथ बच्चों में से अनेकों बच्चे आज पढ़ लिखकर डॉक्टर, इंजीनियर, वकील इत्यादि ऊंचे ऊंचे पदों पर कार्यरत हैं…एक बच्चा तो सिंधु ताई के जीवन पर ही पी एच डी कर रहा है
रेलगाड़ी में भजन गाकर मिले भीख से हजारों अनाथ बच्चों का पेट भरने वाली सिंधु ताई
14 नवंबर 1948 को महाराष्ट्र के वर्धा में जन्मी चिंदी को मां बाप ने गरीबी के चलते चौथी कक्षा तक पढ़ाया और 10 साल की उम्र में 30 साल के व्यक्ति से उसकी शादी करके उसका बचपन छीन लिया। पति ने 9 महीने की गर्भवती चिंदी को घर से निकाल दिया। चिंदी से उसके अपनों ने उसका सब कुछ छीन लिया लेकिन विपरीत परिस्थितियों में भी एक अनजाने साहस से जीवन में रोशनी ढूंढने वाली चिंदी को अपने साथ हुए अन्याय के कारण ही अपने जीने का लक्ष्य मिल गया। अपने जैसे बेसहारा बच्चों के लिए चिंदी ने अपने पुराने नाम को त्याग कर सिंधु के रूप में मानो पुर्नजन्म लिया और सिंधु ताई ने बेसहारा, अनाथ, भाग्य के मारे बच्चों के लिए अपना आंचल फैला दिया। आज सिंधु ताई उर्फ माई के परिवार में 1000 से ज्यादा बच्चे हैं जिसमें 272 जमाई और 36 बहुएं हैं।
सिंधुताई के परिवार के अनाथ बच्चों में से अनेकों बच्चे आज पढ़ लिखकर डॉक्टर, इंजीनियर, वकील इत्यादि ऊंचे ऊंचे पदों पर कार्यरत हैं। एक बच्चा तो सिंधु ताई के जीवन पर ही पी एच डी कर रहा है। सिंधु ताई को बचपन से ही गरीबी, तकलीफ, मायूसी, अपमान, प्रताड़ना यह सब मिला। शादीशुदा जिंदगी इतनी भयावह थी कि वह मुड़ कर देखना और सोचना नहीं चाहती। सामाजिक व्यवस्था की वह बलि बनी जहां नारी को पैरों की जूती समझा जाता है। बदचलनी का इल्जाम लगाकर उन्हें घर से निकाल कर उनका संसार खत्म कर दिया गया। उनके पति ने उन्हें गाय के तबेले में फेंक दिया जहां सभी गायों ने गर्भवती मां का दर्द समझ कर उनकी मैया बनकर उन की जान बचाई। गाय के तबेले में अपनी बच्ची को जन्म देने वाली सिंधु ताई ने 16 बार पत्थर मारकर आवंल नाल को अपने ही हाथ से तोड़ कर अपनी बच्ची को जन्म दिया और वहीं से संकल्प लिया अपने जैसे बेसहारा बच्चों की मां बनने का। खुद के लिए नहीं औरों के लिए जीने का।
रेलगाड़ी में भजन गाकर भीख मांगी, जो खाना मिला वह अनाथ बच्चों के साथ मिल बांट कर खाया। ऐसे करते-करते ना जाने कितने अनाथ बच्चों की मां बन गई इन अनाथों से एक अलग सा रिश्ता बनता ही चला गया। तब कुछ लोगों ने मिलकर एक झोपड़ी का निर्माण किया और कब झोपड़ी से बड़े घर में इन बच्चों को लेकर अपना परिवार बना लिया पता ही नहीं चला। भजन गाकर इनके लिए खाना इकट्ठा करती और उनका पालन पोषण करने लगी। इन अनाथ बच्चों को पालने में कहीं अपनी बेटी की ममता आड़े न आ जाए इसलिए अपनी बच्ची को एक ट्रस्ट को दे दिया। आज उनकी बच्ची ममता एक बिटिया की मां है और सिंधु ताई हजारों बच्चों की मां है।
पहली बार सन 2009 में विश्व मराठी साहित्य सम्मेलन में अमेरिका में भाषण देने के लिए सिंधु ताई को बुलाया गया। भारत माता और जय महाराष्ट्र के उद्घोष के बीच सिंधु ताई ने अपने भाषण से वहां के लोगों का मन जीत लिया। सिंधुताई को देश विदेश में 500 से भी अधिक पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।
मराठी निर्देशक अनंत महादेवन ने जब एक अखबार में सिंधु ताई के परिवार और उनके जीवन के बारे में पढ़ा तो उन्हें उनकी कहानी इतनी मार्मिक लगी कि इस पर उन्होंने फिल्म बनाने की ठानी। अनंत महादेवन ने अपनी फिल्म में विशेष रुप से दर्शाया की जब उनका पति चिंदी से सिंधु ताई बनी अपनी पत्नी के पास आकर अपनी शरण में लेने की प्रार्थना करता है, तब सिंधु ताई उसे अपने पति के रुप में नहीं सबसे बड़े बेटे के रूप में स्वीकार करके मां की पराकाष्ठा को स्थापित करती हैं।
एक ऐसा समाज जहां एक संतान बड़ा होने पर अपने मां बाप को रखने में सक्षम नहीं एक ऐसा समाज जहां आज वृद्ध आश्रमों की संख्या लगातार बढ़ रही है, वहां सिंधु ताई का 1000 से ज्यादा बच्चों का यह परिवार अनमोल सीख देता है
आंसुओं को मरने का कारण मत बनाओ, आंसुओं का हाथ पकड़कर चलो।मरना नहीं जीना सीखो, जीवन की हर मुसीबत से लड़ते चलो।।