
मंजिलें और भी हैं…अब आदिवासी बच्चे भी सीख रहे हैं कंप्यूटर…गांव में रोजगार न होने से युवा शहरों की ओर पलायन कर जाते थे। इसे रोकने व रोजगार मुहैया करवाने के लिए ऐसी आईटी कंपनी खोली, जिसे आदिवासी युवा स्वयं ही संचालित करते हैं
यों तो मैं लंदन में नौकरी कर रहा था, पर हमेशा मेरे भीतर अपने देश में आकर यहां के लोगों के लिए कुछ करने के विचार चलते रहते थे। नौकरी करने का एक कारण यह भी था कि मैं खुद को आर्थिक रूप से सुदृढ़ बनाना चाहता था, ताकि लोगों की मदद कर सकूं। मेरा जन्म मध्य प्रदेश के इंदौर में हुआ, पर ज्यादातर समय मैं भोपाल में रहा हूं।
मेरे पिता सेना में अधिकारी थे, उन्हीं की प्रेरणा से मेरे अंदर देश के प्रति समर्पण की भावना का जन्म हुआ। इंटरनेशनल बिजनेस में परास्नातक की डिग्री लेने के बाद मैं इंग्लैंड चला गया, वहां मैं तकरीबन दस वर्षों तक रहा। मैं वहां ब्रिटिश सरकार के सोशल वेलफेयर बोर्ड, लंदन यानी कि वहां के समाज कल्याण मंत्रालय में काम करता था। वर्ष 2014 में मैं लंदन से भारत वापस आ गया। मैंने लंदन में नौकरी के दौरान समाज से जुड़े तमाम पहलुओं के बारे में जाना, वहां के क्रियाकलापों को समझा, सामाजिक विकास के लिए जरूरी बिंदुओं का ज्ञान प्राप्त किया। मैंने वहां की कार्य-प्रणाली को भी समझा, लोगों की समस्या को सरकार तक कैसे पहुंचाया जाए, इस बारे में भी जाना।
कॉलेज के समय में भी मैं आदिवासियों के लिए थोड़ा बहुत काम करता था। मैं जानता था, ये ईमानदार और मेहनती लोग होते हैं। इन्हें अगर कोई रास्ता दिखाने वाला मिल जाए, तो ये बहुत आगे बढ़ सकते हैं, तो भारत लौटने के बाद मैंने भोपाल की सबसे बड़ी आदिवासी पंचायत में काम करना शुरू किया। मैंने मध्य प्रदेश के आदिवासी गांव भानपुर केकड़िया को अपना ठिकाना बनाया। मैंने वहां के आदिवासियों, खासतौर से युवाओं को स्वावलंबी बनाने की पहल शुरू की।
मैंने सबसे पहले उन लोगों को शिक्षा से जोड़ने के प्रयास की शुरुआत सरकारी स्कूलों से की। गांव में रोजगार न होने से युवा शहरों की ओर पलायन कर जाते थे। इसे रोकने व रोजगार मुहैया करवाने के लिए ऐसी आईटी कंपनी खोली, जिसे आदिवासी युवा स्वयं ही संचालित करते हैं। मैंने अभेद्य नाम का एक संगठन भी बनाया है, जिसका मुख्य उद्देश्य आदिवासियों का जीवन स्तर सुधारना है।
इसके जरिये मैं आदिवासियों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ रहा हूं। इसके माध्यम से स्कूल भी संचालित किए जा रहे हैं। बच्चों को पढ़ाने के लिए बाहर के शिक्षकों को नियुक्त किया है। कुछ सहयोगियों ने इस स्कूल में बच्चों के लिए फर्नीचर, बैग, जूते, स्वेटर, कॉपी-किताबें मुहैया करवाई हैं। स्कूल में बच्चों को बेसिक तकनीकी ज्ञान के लिए कंप्यूटर लैब की भी व्यवस्था करवाई। ये बच्चे और युवा मुझसे ज्यादा अनुभवी हैं, मैं हर दिन इनसे सीखता हूं।
ये लोग सिर्फ विज्ञान और तकनीक से पीछे हैं, जिस पर हम ध्यान दे रहे हैं। जनसहयोग से बनी इस कंपनी का नाम ‘विलेज क्वेस्ट’ रखा गया है। इस कंपनी के माध्यम से बेसिक कंप्यूटर प्रशिक्षण केंद्र खोला गया है, जहां पर न केवल प्रशिक्षण दिया जाता है, बल्कि डेटा एंट्री जैसे काम दिलाकर रोजगार भी मुहैया कराया जा रहा है। यहां बच्चों को माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस, पेंटिंग, टाइपिंग जैसी कई चीजें सिखाई जाती हैं।
पानी की कमी को दूर करने के लिए मैं इस गांव में जल संरक्षण की योजना पर भी काम कर रहा हूं। सरकारी योजनाओं का लाभ इन लोगों तक पहुंचाने के लिए वहां पर युवाओं और गांव के वरिष्ठ लोगों को इकट्ठा कर एक समिति बनाई है। युवा योजनाओं की जानकारी लेकर वरिष्ठ लोगों तक पहुंचते हैं, जिसके बाद उनका लाभ गांव के प्रत्येक व्यक्ति तक पहुंचाया जाता है। गांव में काम करना मेरा शौक है, गांव और शहर के बीच का अंतर हमें खत्म करना है। हमारे कुछ मित्र और संस्थाएं इस काम में हमारी मदद करती हैं।
(विभिन्न साक्षात्कारों पर आधारित।)