आंगनवाड़ी कार्यकर्ता की प्रेरणादायक कहानी…रोज़ाना 18 किमी नाव चलाकर बच्चों तक पहुंचती हैं

कहते हैं न कि यदि किसी व्यक्ति में कुछ कर गुज़रने का जज़्बा हो तो उसके लिए कोई भी चुनौती बड़ी नहीं होती है। वह हर मुश्किल को धता बताकर उस पर पार पाने का हौसला रखता है। ऐसी ही ज़िंदादिली की अद्भुत मिसाल हैं रेलू वसावे। महाराष्ट्र के नंदूरबार में रहने वाली रेलू एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता हैं।

यह है रेलू का काम
27 वर्षीया रेलू वसावे महाराष्ट्र के नंदुरबार जिले के सुदूरवर्ती आदिवासी गांव चिमलखाड़ी में स्थित आंगनवाड़ी में कार्य करती हैं। रेलू वसावे 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों और गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य और उनके विकास पर काम करती हैं। वे उनके स्वास्थ्य और वज़न पर भी नज़र रखती हैं और साथ ही अनुसार पोषण सम्बंधी खुराक भी देती हैं।

कोराेना के कारण उठाया कदम
दरअसल, पूर्व में क्षेत्र की गर्भवती महिलाएं आंगनवाड़ी आया करती थीं, और स्वयं की तथा 6 वर्ष के कम उम्र के बच्चों के पोषण की जांच और खुराक आंगनवाड़ी से लिया करती थीं। किंतु काेरोना महामारी के डर के कारण क्षेत्र की गर्भवती महिलाएं आंगनवाड़ी तक नहीं पहुंच पाईं तो रेलू ने स्वयं उन लोगों महिलाओं और उनके नवजात शिशुओं तक पहुंचने की ठानी।

उधार की नाव से जाती हैं रेलू
इस काम के लिए एक स्थानीय मछुआरे से रेलू ने नाव उधार पर ले रखी है। सुबह 7:30 बजे रेलू आंगनवाड़ी पहुंचती हैं और दोपहर तक काम करती हैं। उसके बाद वे नाव से महिलाओं के घर पहुंचती हैं और वहां से देर शाम लौटती हैं। अक्सर वे अकेले ही सारा सामान लेकर नाव से जाती हैं। कभी-कभी उनकी रिश्तेदार संगीता, जो कि आंगनवाड़ी कार्यकर्ता हैं उनके साथ होती हैं। नाव से पहुंचने के बाद भी रेलू की परेशानियां कम नहीं होतीं और कई घरों तक पहुंचने के लिए उन्हें ऊंचे स्थानों पर चढ़ाई भी करनी पड़ती है।

रोज चलाती हैं 18 किमी नाव
दरअसल, रेलू के गांव तक पहुंचने के लिए सड़क मार्ग नहीं है और वहां तक नदी मार्ग से नाव द्वारा ही पहुंचा जा सकता है। ऐसे में महिलाओं के घर तक पहुंचने के लिए रेलू ने भी नाव का सहारा लिया और वे रोज़ाना 18 किमी नाव चलाकर अपने 25 नवजात और कुपोषित बच्चे तथा सात गर्भवती महिलाओं के पास पहुंचती हैं।

हाथ दुखते हैं लेकिन बच्चों का पोषण पहले
रेलू स्वयं दो बच्चों की मां हैं। वे अप्रैल माह से ही हफ़्ते में 5 दिन नाव से 18 किलोमीटर का सफर तय करती हैं।मीडिया से बात करते हुए रेलू ने बताया कि नाव चलाना आसान नहीं है। इसे चलाते हुए उनके हाथ दर्द करते हैं। लेकिन सबसे ज़रूरी यह है कि बच्चे और गर्भवती महिलाएं पौष्टिक भोजन खाएं और स्वस्थ रहें। वे तब तक इसी तरह लोगों के पास जाती रहेंगी, जब तक सारी स्थिति सामान्य नहीं हो जातीं।


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