शांति की अनोखी अपील…बस्तर में शांति स्थापना के लिए “नई शांति प्रक्रिया” संस्था ने महिलाओं को रियूजेबल सेनेटरी पैड देने की पहल की है

कमलेश यादव:-छत्तीसगढ़ के सुदूर वनांचलो कि अपनी एक अलग कहानी है यहां रहने वाले स्थानीय रहवासी सदियों से कई विषयों में संकोची जीवन जी रहे है।आज हम बात करेंगे आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र बस्तर की जिसे खुद प्रकृति ने बेशकीमती संसाधनों से नवाजा है।बीहड़ जंगलो के बीच माताएं बहनें मासिकधर्म के विषय मे संकोच व्यक्त करती है।बस्तर में शांति स्थापना के लिए सक्रिय संस्था नई शांति प्रक्रिया ने महिला नक्सलियों को रियूजेबल सेनेटरी पैड देने की पहल की है।नई शांति प्रक्रिया के संयोजक शुभ्रांशु चौधरी अपनी पूरी ऊर्जा अब आदिवासी महिलाओं और महिला नक्सलियों को मासिकधर्म के दौरान स्वच्छता के प्रति जागरूक करने में लगा दी है।

बस्तर में अधिकांश महिलाएं कम पढ़ी लिखी हैं और कभी स्कूल नहीं जा पाईं है।सरकारी आंकड़ों के अनुसार आज लगभग 50 फीसदी से अधिक ग्रामीण महिलाएं भी सैनिटरी पैड का इस्तेमाल कर रही हैं पर सैनिटरी पैड लगभग 90 % प्लास्टिक से बनते हैं और उन्हें मिट्टी में मिलने में 500 से 800 साल का समय लगेगा और शहर के साथ साथ अब गाँवों में भी सैनिटरी पैड को नष्ट करना अब एक बड़ी पर्यावरणीय समस्या बनती जा रही है।इसलिए कपड़े के बने, बार बार धोकर उपयोग किए जाने वाले रियूजेबल पैड इस्तेमाल करने की मुहिम से सभी महिलाओं को जोड़ा जा रहा है।

अगले साल से बांस के कपड़े के पैड
नई शांति प्रक्रिया नवाचारी प्रयोग करते हुए बस्तर में उपलब्ध स्थानीय संसाधनों से पैड का निर्माण करेंगे इसमे मुख्यतः फोकस बांस के ऊपर है क्योंकि बस्तर में कपास होता नहीं है । इस साल तो हम कपड़े का पैड देने की पहल कर रहे हैं पर हिंसा से विस्थापित आदिवासियों ने अब बांस से कपड़ा बनाने का प्रयोग शुरू किया है। अगली दीपावली तक नई शांति प्रक्रिया के तरफ से महिलाओं को बांस के कपड़े से बने रियूजेबल पैड देंगे।


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