निःस्वार्थ भाव से लोगों को मदद करना व्यक्ति की नेकी को दर्शाता है…उम्र 87 साल लेकिन रोज़ साइकिल चला कर ग़रीबों को उनके घर पर इलाज देने जाते हैं

अपने पूरे जीवन को दूसरों की सेवा में लगा देना इतना आसान नहीं है. निःस्वार्थ भाव से लोगों को मदद करना व्यक्ति की नेकी को दर्शाता है. ऐसा ही नाम रामचंद्र दांडेकर का है. महाराष्ट्र के सुशी (चंद्रपुर) निवासी रामचंद्र दांडेकर पिछले 60 वर्षों से राज्य के दूरदराज के हिस्सों में गरीब रोगियों की मदद करने के लिए ख़ुद उनके घर तक जाते हैं. हर दिन बिना रुके और थके 87 वर्षीय रामचंद्र लोगों की मदद करने का नेक काम कर रहे हैं. पेशे से होम्योपैथ रामचंद्र अधिकतर अपनी साइकिल से दूरदराज के आदिवासी गांवों में जाते हैं ताकी उन लोगों को इलाज दे सकें, जो चिकित्सा सुविधाओं का लाभ उठाने के लिए बड़े शहरों की यात्रा नहीं कर सकते.

मीडिया की ख़बर के अनुसार, दांडेकर ने होम्योपैथी में डिप्लोमा हासिल किया और एक वर्ष के लिए एक लेक्चरर के रूप में काम किया. इसके बाद उनके एक परिचित ने उन्हें एक शहर में शिक्षण कार्य करने के बजाय ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने का आग्रह किया. वो मान गए और तबसे गरीब और आदिवासी रोगियों की निस्वार्थ भाव से सेवा कर रहे हैं.

वे कहते है , “मैं 87 साल का हूं, लेकिन न थका हूं और न ही आराम करना चाहता हूं. मैं लोगों की सेवा करना चाहता हूं. ये मुझे अपार ऊर्जा देता है.” दवाओं और टेस्ट किट वाली दो थैलियों के साथ दांडेकर सुबह 6.30 बजे साइकिल से निकलते हैं और 12.30- 1.00 बजे तक लौट आते है. अगर आवश्यक हो, तो वो शाम को फिर से जाते हैं. वह पिछले 60 साल से यह काम कर रहे हैं.

दांडेकर ने कहा, “चंद्रपुर सुदूर और बहुत घना वन क्षेत्र है. यहां कई ऐसे इलाके हैं जहां कोई बस नहीं जा सकती. इसलिए, दूर-दराज के घरों तक पहुंचने और लोगों का इलाज करने के लिए साइकिल या पैदल चलना ही एकमात्र विकल्प है. महामारी के समय में बहुत से लोग अस्पतालों में जाने का जोखिम नहीं उठा सकते थे इसलिए, मैंने उन्हें घर पर इलाज देने का फ़ैसला किया.”

उन्होंने हजारों गरीब और आदिवासी रोगियों का इलाज किया है. ख़ास बात है कि फ़ीस का भुगतान अनिवार्य नहीं है, जिसका जितना सामर्थ्य है वो उतना दे देता है.


जवाब जरूर दे 

आप अपने सहर के वर्तमान बिधायक के कार्यों से कितना संतुष्ट है ?

View Results

Loading ... Loading ...


Related Articles