
पिता को पहले कबाड़ी वाला कहा जाता था अब उन्हें डॉक्टर के पिता के रूप में जाना जाएगा…कबाड़ के लिए घर-घर घूमते हैं पिता,बेटा अरविन्द बनेगा डॉक्टर
छात्र अरविन्द की कहानी उन लाखों मेडिकल विद्यार्थियों के लिए प्रेरणादायक हैं, जो संघर्ष व अभावों का सामना करते हुए कई बार लक्ष्य की राह छोड़ देते हैं। अरविन्द ने यह साबित कर दिया कि मजबूत इरादा रखें तो कोई भी लक्ष्य मुश्किल नहीं है। अभावों में पले-बढ़े और लगन से पढ़ाई करने वाले उत्तरप्रदेश के छात्र अरविन्द ने कोटा रहकर नीट परीक्षा में सफलता हासिल की है।
परिवार को गांव में सम्मान दिलाने पिता की शर्म को गर्व में बदलने का इरादा लिए ये छात्र दो साल पहले एलन कोटा आया था। यहां मेडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी की और अब मेडिकल कॉलेज में दाखिले की तैयारी है। डॉक्टर बनकर वो अपने माता-पिता का गौरव बनना चाहता है। अरविन्द ने नीट-2020 में 620 अंक प्राप्त किए। आल इंडिया 11603 एवं ओबीसी कैटेगिरी रैंक 4392 प्राप्त की है।
अरविन्द कुमार मूलत: उत्तरप्रदेश में कुशीनगर के बरडी गांव का निवासी है। अरविन्द के पिता भिखारी कुमार कबाड़ी का काम करते हैं। वे साइकिल रिक्शे पर गली-गली घूमकर कबाड़ खरीदते हैं और इसे बेचकर परिवार की आजीविका चलाते हैं। गांव में काम नहीं था, पारिवारिक परिस्थितियां विपरीत थी, ऐसे में पांचवी तक पढ़े-लिखे पिता भिखारी ने गांव से भी बहुत दूर जमशेदपुर टाटा नगर में जाकर यह काम किया। मां ललिता देवी निरक्षर है और घर का काम करती है। उनकी इच्छा थी कि अरविन्द डॉक्टर बने। इसके लिए उन्होंने खुद संघर्ष किया और बेटे को मेडिकल प्रवेश परीक्षा नीट की तैयारी करने कोटा भेजा। एलन में एडमिशन दिलवाया, पहले प्रयास में रैंक अच्छी नहीं आई तो फिर मेहनत की। दूसरे प्रयास में सफलता हासिल की।
गांव का पहला डॉक्टर होगा अरविन्द-
अरविन्द के अनुसार वह अपने गांव का पहला डॉक्टर होगा। उसने बताया कि छोटा भाई अमित कुमार शिक्षक भर्ती परीक्षा की तैयारी कर रहा है। एमबीबीएस करने के बाद आर्थोपेडिक सर्जन बनना चाहता हूं। मैं चाहता हूं कि परिवार को सम्मान मिले, पिता को पहले भिखारी कबाड़ी कहा जाता था अब उन्हें डॉक्टर के पिता के रूप में जाना जाएगा।