
हार जाना बुरा नहीं है लेकिन हार मान लेना बहुत बुरा है…30 बार असफ़लता का मुंह देखा लेकिन हार नहीं मानी और बन गए IPS अफ़सर
एक जीत से ना तो आपकी पूरी ज़िंदगी की कहानी बदलती है और ना एक हार से सब कुछ खत्म होता है. जीवन तो लड़ते रहने का ही नाम है. हर दिन कोई ना कोई नई समस्या हमारे सामने खड़ी हमें चुनौती दे रही होती है. अगर हम हार कर फिर से लड़ना ही ना सीखें, गिर कर संभलना ही ना सीखें तो ये ज़िंदगी एक कदम भी आगे कैसे बढ़ेगी.
हो सकता है आपको ये बातें किताबी लगें, बहुतों को ऐसा लगता है लेकिन आईपीएस ऑफिसर आदित्य को कभी ऐसा नहीं लगा. जब आप इनके बारे में जान लेंगे तो आप ऊपर लिखी बातों को किताबी नहीं मानेंगे. आइए आपको बताते हैं आईपीएस आदित्य के बारे में जिन्होंने अपनी असफलताओं को हरा कर प्राप्त कर ली सफलता:
पैर ज़मीन पर और सपने आसमान के!
राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले का एक छोटा सा गांव अजीतपुरा, यहीं के एक अध्यापक माता पिता के पुत्र हैं आदित्य. बचपन इसी गांव की मिट्टी में खेलते हुए बिता. प्रारंभिक शिक्षा भी यहीं के स्कूल से प्राप्त की. यहां वह 8वीं कक्षा तक पढ़े तथा इसके बाद आगे की पढ़ाई इन्होंने भदरा स्थित जिला मुख्यालय स्कूल से पूरी की.
12वीं के समय बहुत कुछ आदित्य के सामने ऐसा आया जो अच्छे से अच्छे विद्यार्थी का भी मनोबल तोड़ देता है. 2009 में राजस्थान बोर्ड से दी गई परीक्षा में उन्हें मात्र 67% अंक प्राप्त हुए. समाज में एक ये सोच बन चुकी है कि इंजीनियरिंग या फिर सिविल सर्विसेज की तैयारी करने वालों को पहले ही अंकों में तोल दिया जाता है.
जितने अंक आदित्य लेकर आए थे इतने में उन्हें तैयारी की सलाह कोई नहीं देता मगर आदित्य किसी की सुनने वाले नहीं थे. उनकी इच्छाशक्ति को ये अंकों की संख्या कमज़ोर ना कर पाई. आदित्य के परिवार के पास कोई खास ज़मीन जायदाद नहीं थी. उन्हें पता था कि उनके आगे बढ़ने का एक मात्र जरिया शिक्षा ही है जिसके दम पर वह अच्छी नौकरी और ज़िंदगी में कामयाबी हासिल कर सकते हैं. शुरुआती दिनों में आदित्य इंजीनियर बनना चाहते थे. उन्होंने कोशिश भी की लेकिन कामयाबी हाथ ना लगी, वे प्रवेश परीक्षा पास ना कर पाए.
कहते हैं हर पिता अपनी ज़िंदगी के अधूरे हिस्से को अपने बेटे द्वारा पूरा होते देखना चाहता है. आदित्य के पिता ने भी कभी सिविल सर्विसेज में जाने का सपना देखा था और इसके लिए तैयारी भी की थी लेकिन वह सफल ना हो सके. उनके कुछ मित्र सफल ज़रूर हुए थे और आदित्य उन्हें अपना आदर्श मानते थे. ऐसे में आदित्य के पिता चाहते थे कि जो सपना वह खुद ना पूरा कर सके वो उनका बेटा पूरा करे. आदित्य के पिता ने उन्हें सिविल सर्विसेज की तैयारी करने के लिए प्रेरित किया.
उन्हें समझाया कि इन अधिकारियों का क्या रुतबा होता है और समाज के बदलाव का सबसे पहला हक़ इन्हें ही मिलता है. पिता की बातों से प्रेरित हो कर आदित्य ने ये संकल्प लिया कि वह सिविल सर्विसेज की तैयारी करेंगे. उनके इस संकल्प के आगे ना तो उनके अंक आए और ना ही वो असफलता जो उन्हें इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा में मिली थी.
30 बार हुए असफल, मगर हार नहीं मानी
वैसे लोग जीत की गाथाएं सुनाते हैं मगर असल में ये गाथा हार की होती है. हर बार की हार आपकी जीत के लिए एक नया रास्ता खोलती है. यह बात सिद्ध की आदित्य ने. 2013 में सिविल सर्विसेज की तैयारी का सपना लिए आदित्य राजस्थान से दिल्ली आ गए और जुट गए अपने सपने को सच करने में. बड़ी बात ये थी कि आदित्य जिन हालातों से गुज़र रहे थे. वहां से निकल कर नया लक्ष्य बनाना और उसकी तरफ बढ़ना आसान नहीं होता. बहुत से लोग टूट जाते हैं और अपने सपनों का त्याग कर कोई छोटी मोटी नौकरी कर लेते हैं.
आदित्य 5 साल के दौरान 30 परीक्षाओं में असफल रहे थे. उन्होंने AIEEE, राज्य प्रशासनिक सेवा, बैंकिंग और केंद्रीय विद्यालय संगठन समेत 30 प्रतियोगी परीक्षाओं दीं लेकिन सफलता एक में भी हासिल ना हो सकी. राजस्थान सिविल सेवाओं के लिए भी आदित्य ने प्रयास किए. दो बार इंटरव्यू राउंड तक भी पहुंचे लेकिन असफलता ही हाथ लगी. दरअसल ये असफलताएं एक तरह से उनके लिए अच्छी भी रहीं. अगर वह इनमें सफल हो जाते तो यहां तक ना पहुंच पाते जहां वो आज हैं.
मगर खुद को मोटी चमड़ी का बताने वाले आदित्य के पास वाकई में गजब की इच्छाशक्ति थी. उन्होंने ठान लिया था कि उन्हें ज़िंदगी में कुछ बड़ा करना है तो बस उसी में लगे रहे. किसी की नहीं सुनी सिवाए अपने मन के और इनका मन इन्हें सिर्फ़ मेहनत करने के लिए प्रेरित करता रहा. यूपीएससी परीक्षाएं तो अच्छे अच्छों के पसीने निकाल देती है.
फिर सोचिए कि ऐसा शख्स जो पहले ही कई प्रवेश परीक्षाओं में असफलता का मुंह देख चुका हो, उसका क्या ही हाल हुआ होगा. लेकिन यहां हाल की परवाह किसे थी. ये शख्स तो सब भूल कर सिर्फ़ तैयारी में जुटा हुआ था. शुरुआती सालों में तैयारी के परिणाम भी आए मगर सफलता ना मिली. आदित्य उन लोगों के लिए भी प्रेरणा हैं जो अंग्रेजी को बहाना बना कर अपनी असफलताओं का ठिकरा इस भाषा के सर मढ़ देते हैं. आदित्य खुद हिंदी मीडियम से पढ़े छात्र हैं लेकिन वे कभी अंग्रेजी से डरे नहीं.
अंग्रेजी को बेहतर करने की पहल आदित्य ने समचारपत्रों से की. शुरुआत में इन्हें एक न्यूज़पेपर खत्म करने में 6 घंटे लग जाया करते थे लेकिन धीरे धीरे सब आसान हो गया. आदित्य ने 2014 में पहली बार यूपीएससी की परीक्षा दी लेकिन ये इतना आसान नहीं था. वह प्रीलिम्स भी क्लियर ना कर पाए. आदित्य ने फिर से अपनी मेहनत बढ़ा दी और अगली बार इसका बहुत अच्छा परिणाम निकला. इस साल उन्होंने पहले प्रीलिम्स तथा उसके बाद मेन्स क्लियर कर लिया लेकिन असफलता ने फिर से साथ नहीं छोड़ा और वे इंटरव्यू में सफल ना हो पाए.
ये साल 2016 था, आदित्य पिछले साल की उपलब्धियों के कारण आत्मविश्वास से भरे हुए थे, लेकिन इस साल यही आत्मविश्वास उनकी यूपीएससी में तीसरी असफलता का कारण बना. इस बार वह मेन्स भी क्लियर ना कर पाए. आदित्य को जल्द ही समझ आ गया कि यहां हर बार नए सिरे से लड़ाई शुरू करनी पड़ती है.
2017 आखिरी साल था आदित्य के लिए इसके बाद उनके लिए सिविल सर्विसेज के दरवाजे बंद होने वाले थे. वह समझ गए थे कि उन्हें अपनी तैयारी का तरीका बदलना होगा. इन असफलताओं के बाद जिस चीज़ ने आदित्य को सबसे ज़्यादा परेशान किया वो था समाजिक दबाव. चार लोगों का समाज हमेशा आदित्य पर नज़र बनाए हुए था.
उनकी असफलताओं के बाद लगातार उन्हें यूपीएससी छोड़ कर कुछ और ट्राई करने की सलाह मिलने लगी. कई बार तो आदित्य को भी इस बात पर संदेह होने लगता कि कहीं वो अपना समय तो बर्बाद नहीं कर लेकिन इतना सब होने के बाद भी उन्होंने खुद को टूटने नहीं दिया. आदित्य ने सोशल मीडिया मीडिया अकाउंट बंद कर दिए, लोगों से संपर्क घटा दिया ताकि उनके जानने वाले उन पर दबाव ना बना सकें. आदित्य ने किसी को ये नहीं बाताया कि वह फिर से तैयारी कर रहे हैं.
इन सबके बीच एक बात अच्छी थी और वो ये कि आदित्य के माता पिता पूरी तरह से उनके साथ थे. वे हमेशा आदित्य की हिम्मत बढ़ाते रहे. इससे ज़्यादा आदित्य को कुछ चाहिए भी कहां था. समाजिक दबाव को खुद से दूर करते हुए आदित्य जुट गए अपनी मेहनत में. तैयारी के दौरान वह 20 घंटे पढ़ाई किया करते थे. इसके अलावा उन्होंने तैयारी की रणनीति में भी बदलाव किया.
पढ़ाई की रूटीन को मजबूत किया, सामान्य ज्ञान पर विशेष ध्यान देना शुरू किया. यूपीएससी जैसी किसी भी परीक्षा में आपके ज्ञान से भी ज़्यादा मायने रखता है समय. आदित्य ने ये बात समझ ली थी तथा वो अब उत्तर देने की टाइमिंग सुधार रहे थे. वह उत्तर लेखन का विशेष तौर से अभ्यास कर रहे थे. इससे उनकी गति में काफ़ी सुधार आया.
आखिरकार आदित्य को सफलता मिल ही गई
कुल मिला कर आदित्य के लिए उस समय उनकी ज़िंदगी का हर रास्ता यूपीएससी तैयारी की तरफ ही जाता था. 2017 में उन्होंने अपनी मेहनत के दम पर यूपीएससी का आखिरी दांव खेला और इसके साथ ही उन्हें इतनी बड़ी जीत मिली कि जिसने उनकी पिछली सभी असफलताओं को ढक दिया. ऑल इंडिया 630वीं रैंकिंग के साथ आदित्य यूपीएससी क्लियर कर चुके थे.
यूपीएससी क्लियर करने के बाद आदित्य ने आईपीएस को चुना. आदित्य को पंजाब कैडर मिला तथा इस समय वह संगरूर के एएसपी के रूप में पदस्थ हैं. आदित्य पिछले साल दिसंबर में पंजाब आए. वह पंजाब के मौजूदा हालातों में बदलाव लाना चाहते हैं तथा यहां के युवाओं को ड्रग्स की भयानक लत से बाहर लाना चाहते हैं.
आदित्य जैसे लोग दुनिया के लिए एक मिसाल हैं. लोग असफलताओं के बाद आत्महत्या तक कर लेते हैं जबकि उन्हें सोचना चाहिए कि हर बार हार एक नया मौका लेकर आती है. आपको बस बिना रुके मेहनत करते रहना है. एक बाद याद रखिए हार जाना बुरा नहीं है लेकिन हार मान लेना बहुत बुरा है. इसीलिए बेशक हारिए मगर हार मत मानिए.