
शिक्षा…गरीब बच्चों के पढ़ाई के लिए तैयार किया ‘द दोस्ती प्रोजेक्ट’…इसके तहत वॉलंटियर्स दोस्त बनकर बच्चों से बातें करते हैं, उन्हें गाइड करते हैं।
ऑनलाइन कक्षाओं के इस दौर में मुश्किल उनकी है, जिनके पास स्मार्टफोन और इंटरनेट की सुविधा नहीं हैं। पर अन्य उत्साही बच्चों-किशोरों और अन्य लोगों ने उनके लिए नई पहल करते हुए आपदा में अवसर निकाल लिए हैं और स्मार्टफोन या इंटरनेट की सुविधा न होने पर फोन पर जरूरतमंद स्टूडेंट व युवाओं के मेंटर बन उनका मार्गदर्शन कर रहे हैं। पढ़ाई में उनकी मदद करने के साथ उन्हें किस्से-कहानियां सुनाकर भी प्रेरित कर रहे हैं।।
दीदी-भैया बन जोड़ रहा ‘द दोस्ती प्रोजेक्ट’
सब जानते हैं कि वैश्विक महामारी का बच्चों पर कितना असर हुआ है। स्कूल बंद। दोस्तों से मिलना खत्म। जिन परिवारों में एक ही स्मार्टफोन था या स्मार्टफोन और इंटरनेट कनेक्शन नहीं था, उससे तमाम बच्चों की पढ़ाई तक छूट गई। बच्चे अकेले और अलग-थलग से पड़ गए। हालांकि, इस मुश्किल को समझते हुए कई स्वयंसेवी संगठन बच्चों के लिए काम कर रहे थे। लेकिन उनका सीधा संवाद उनसे कम ही हो पा रहा था। तभी मुंबई की रिद्धि साह ने सोचा कि क्या हम झुग्गी बस्ती या गरीब तबके के बच्चों के लिए ऐसे दीदी-भैया तैयार कर सकते हैं, जो उनसे सीधे जुड़ सकें हो सकें। फिर नींव पड़ी ‘द दोस्ती प्रोजेक्ट’ की। इसके तहत वॉलंटियर्स दोस्त बनकर 13 से 16 वर्ष के किशोरों से फोन पर (हफ्ते के एक दिन, एक घंटे) बातें करते हैं, उन्हें गाइड करते हैं। पेशे से शिक्षाविद एवं सीआर कंसल्टेंट रिद्धि बताती हैं, ‘हमने स्वयंसेवी संगठनों की मदद से पहले बच्चों को चिह्नित किया। सोशल मीडिया के जरिये वॉलंटियरिंग के इच्छुक लोगों से संपर्क किया, जो उन बच्चों का विश्वास जीतकर, उनका मार्गदर्शन कर सकें। हमने एक पूरा कोर्स भी डिजाइन किया है कि बच्चों से क्या, किस मुद्दे पर और कैसे बात करनी है। हमारी यह योजना सफल रही। फिलहाल, मुंबई के दो इलाकों (पवई एवं कफ परेड) में यह एक पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर चल रहा है। आगे स्थितियां सामान्य होने पर वॉलंटियर्स और बच्चे आमने-सामने भी मिल सकते हैं।’ रिद्धि के अनुसार, उनका मकसद सिर्फ यह है कि बच्चों से बात की जाए, उनका हाल-चाल पूछा जाए कि पूरे दिन या हफ्ते उन्होंने क्या कुछ किया या सीखा। इससे एक बॉन्डिंग डेवलप होती है और बच्चों को मनोबल बढ़ता है।