सपनों का पीछा करना ना छोड़े…नेत्रहीन पूर्णा सुंदरी के संकल्प से दिव्यांगता भी आड़े नहीं आई..जानिए-किस तरह यूपीएससी की परीक्षा पास की है…पूर्णा ने कहा परीक्षा पास करना केवल पहला कदम है. अभी और चुनौतियां मेरा इंतजार कर रही हैं. इससे आगे मैं स्वास्थ्य,शिक्षा और महिला सशक्तीकरण पर काम करना चाहती हूं. इसी से समाज आगे बढ़ेगा

अगर आपने जिंदगी में कुछ करने की ठान ली है तो दिव्यांगता भी आड़े नहीं आ सकती. तमिलनाडु की पूर्णा सुंदरी ने इसे सच कर दिखाया है. जानिए- किस तरह सिर्फ किताबों को सुनकर उसने यूपीएससी की परीक्षा पास की है.

पूर्णा सुंदरी जैसी बेटियां न सिर्फ परिवार बल्‍क‍ि पूरे समाज के लिए एक प्रेरणा हैं. आंखों में रोशनी न होने के बावजूद जिस तरह अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए जोश, दृढ़ संकल्प और कड़ी मेहनत से उन्होंने सफलता पाई है, युवाओं के लिए एक नजीर बन गई हैं.

पूर्णा ने इस साल यूपीएससी परीक्षाओं में 286 वीं रैंक हासिल की है. इसके बाद उन्हें बधाई देने वालों का सिलसिला थम नहीं रहा है. बता दें कि 25 वर्षीय पूर्णा दृष्टिहीन हैं. तैयारी के दौरान उन्हें कई बाधाओं का सामना करना पड़ा. उन्होंने बताया कि उनकी कई ऑडियो फॉर्म में उपलब्ध नहीं थीं. लेकिन उनके परिवार ने उनका जिस तरह से तैयारी में साथ दिया उसी के कारण वो UPSC परीक्षा निकाल पाई हैं.

पूर्णा ने कहा कि सिविल सर्विसेज में यह मेरा चौथा प्रयास है. मैं साल 2016 के बाद से सिविल सेवा एग्जाम की तैयारी कर रही हूं. इसी तैयारी के बल पर इस बार मुझे ऑल इंडिया 286 वीं रैंक मिली है. पूर्णा के पिता एक सेल्स एग्जीक्यूटिव हैं और मां एक होम मेकर हैं. पूर्णा ने कहा कि मेरे मम्मी-पापा दोनाें चाहते थे कि मैं IAS अफसर बनूं. उनके पिता ने उन्हें इसके लिए तैयारी करवाई. वो बताती हैं‍ कि जब मैं 11वीं कक्षा में थी, तभी से पापा ने मेरे मन में यूपीएससी की तैयारी की बात डाल दी थी.

अपनी स्कूली शिक्षा के बाद, पूर्णा कॉलेज के लिए चेन्नई चली गईं. वो बताती हैं कि कॉलेज में उनके प्रोफेसरों ने उन्हें सीखने में मदद की. यही नहीं सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी के लिए कॉलेज लाइब्रेरी को मेरे उपयोगी बनाने के लिए ज्यादा से ज्यादा तैयार किया.

पूर्णा ने बताया, “कॉलेज से मैं चेन्नई में मणिधा नेयम संस्थान गई, ये एक ऐसा मंच था जिसने मुझे खुद को स्थापित करने में मदद की. मैं और मेरे दोस्त सरकारी संस्थान में भी गए और साथ ही अड्यार में भी तैयारी की. मेरे माता-पिता और मेरे दोस्त मेरा लगातार साथ देते है. मैंने आज जो कुछ भी हासिल किया है, उसकी वजह यही लोग हैं. मेरे लिए जो बलिदान किए हैं वो घरवालों ने ही किए हैं.”

अपने सेलेक्शन के बाद पूर्णा अब पूरी ऊर्जा से भरी हैं. वो कहती हैं कि परीक्षा पास करना केवल पहला कदम है. अभी और चुनौतियां मेरा इंतजार कर रही हैं. इससे आगे मैं स्वास्थ्य, शिक्षा और महिला सशक्तीकरण पर काम करना चाहती हूं. इसी से समाज आगे बढ़ेगा. मैं सरकार की योजनाओं को लोगों तक पहुंचाने के लिए अपना सारा प्रयास करूंगी.


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