बचपन में दादी-नानी से सुनी कहानियां किसे याद नहीं होंगी…हमारे जीवन में कहानियों की बेहद ही अहम भूमिका होती है…अंतिम प्रयास से मिल सकती है कामयाबी,पढ़ें ये प्रेरक कहानी

बचपन में दादी-नानी से सुनी कहानियां किसे याद नहीं होंगी। शायद हमारे लिए उस समय कहानियां का मतलब ही दादी-नानी के मनोहर या दिलचस्प किस्सों से होता था। इन कहानियों से हमारे बुजुर्गों ने न जाने कितने ही सबक हमें सिखाए हैं या यूं भी कहा जा सकता है कि हमने कितना ही ज्ञान इन कहानियों से बटोरा है। हमारे जीवन में कहानियों की बेहद ही अहम भूमिका होती है। ऐसा इसलिए क्योंकि कहानियां हमें बहुत कुछ सिखाती हैं। लेकिन आजकल इस भागती-दौड़ती जिंदगी में लोगों के पास इतना समय कहां बचा है कि वो फुसरत के दो पल निकालकर दादी-नानी से किस्से सुन सकें। हालांकि, यह कमी हम आपके लिए कुछ हद तक पूरी कर सकते हैं हम आपके लिए एक ऐसी प्रेरक कहानी लेकर आएं हैं जो आपके जीवन पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकती है। तो चलिए पढ़ते हैं क्या है इस कहानी में:

आखिरी  प्रयास: 

कुछ समय पहले एक प्रतापी राजा था। उसके दरबार में एक बार विदेशी व्यक्ति आया। उसने राजा को एक सुंदर पत्थर उपहार में दिया। राजा उस पत्थर को देखर काफी खुद हुआ। राजा ने राज्य के महामंत्री को वो पत्थर दिया और उससे विष्णु जी की मूर्ती बनवाकर उसे मंदिर में स्थापित करने का काम सौंपा। कार्य को पूरा करने के लिए महामंत्री राज्य के सबसे अच्छे मूर्तिकार के पास गया। महामंत्री ने मूर्तिकार को वह पत्थर दिया और कहा, “महाराज मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ति को स्थापित करना चाहते हैं। इसलिए इस पत्थर से विष्णु जी की मूर्ति 7 दिन में तैयार कर राजमहल पहुंचानी होगी। इसके लिए तुम्हें 50 स्वर्ण मुद्राएं भी दी जाएंगी।”

जैसे  ही मूर्तिकार ने 50 स्वर्ण मुद्राओं की बात सुनी वो बहुत खुश हो गया। जैस ही महामंत्री वहां से गए उसके बाद ही मूर्तिकार ने पत्थर से विष्णु जी की मूर्ति बनाने का कार्य शुरू कर दिया। उसने कुछ औजार निकाले। औजार में एक हथौड़ा था। मूर्तिकार ने हथौड़े से पत्थर पर मारा लेकिन वो पत्थर वैसे का वैसा ही रहा। ऐसे में मूर्तिकार ने पत्थर पर कई बार हथौड़ा चलाया लेकिन पत्थर नहीं टूटा। इसी तरह मूर्तिकार ने 50 बार उस पत्थर पर हथौड़ा मारा। मूर्तिकार ने यह 50 बार अपना अंतिम प्रयास सोचकर ही हथौड़ा चलाया। इसके बाद जैसे ही वो 51वीं बार हथौड़ा चलाने लगा तो यह सोचकर उसने अचानक अपना हाथ पीछे कर लिया कि जब यह पत्थर 50 बार में नहीं टूटा तो अब क्या टूटेगा।

मूर्तिकार ने वह पत्थर लिया और महामंत्री को वापस करते हुए कहा कि यह पत्थर तोड़ना नामुमकिन है। इससे विष्णु जी की मूर्ति नहीं बन सकती है। लेकिन महामंत्री को तो राजा का आदेश हर हाल में पूरा करना था। इसके लिए वो गांव के एक साधारण से मूर्तिकार के पास गया और उसे वो पत्थर सौंप दिया। महामंत्री के सामने ही गांव के मूर्तिकार ने पत्थर पर हथौड़ा मारा। पत्थर एक बार में ही टूट गया। इसके बाद वो मूर्तिकार विष्णु जी की प्रतिमा बनाने में जुट गया। यह देखकर महामंत्री ने सोचा कि अगर पहले वाले मूर्तिकार ने एक आखिरी बार और कोशिश की होती तो वह मूर्ति बनाने में सफल हो जाता और 50 स्वर्ण मुद्राओं का हकदार हो जाता।

सीख: कई बार हम प्रयास किए बिना ही हार मान लेते हैं तो कई बार प्रयास करने पर जब कुछ हाथ नहीं लगता है तो मन मसोस कर रह जाते हैं। ऐसे में इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि  अगर हमें अपने जीवन में सफल होना है या सफलता प्राप्त करनी है तो बार-बार असफल होने के बाद भी प्रयास करना नहीं छोड़ना चाहिए। क्योंकि ऐसा भी हो सकता है कि जिस प्रयास को करने के पहले ही हम मना दें वो ही हमारा आखिरी प्रयास हो और इसी अंतिम प्रयास से हमें कामयाबी प्राप्त हो जाए। 


जवाब जरूर दे 

आप अपने सहर के वर्तमान बिधायक के कार्यों से कितना संतुष्ट है ?

View Results

Loading ... Loading ...


Related Articles