
न्याय की आस और पंच परमेश्वर का फैसला…युवा कलमकार विश्वनाथ देवांगन उर्फ मुस्कुराता बस्तर की कलम से….. सत्य और न्याय की कहानी… *सत्य परेशान हो सकता है*
कहते हैं कि पंच के मुँह से परमेश्वर बोलता है,सबकी निगाहें पंच परमेश्वर पर हैं |
रामपुर गांव इलाके का बड़ा पंचायत | इस गांव के बड़े साहूकार मालगुजार ठाकुर गुलाब सिंह और एक गरीब मोहन के बीच आज पंचायत का महत्वपूर्ण फैसला होने वाला है | साहूकार ने अपना पक्ष पंचायत के समक्ष कई बार रखा था,मोहन के पास कोई सबूत नहीं सिवाय सच बोलने के,पर मामला बहुत ही संगीन होने के कारण पंचायत ने सोंच विचार कर करने के लिए अगली पंचायत बैठक तय कर लिया था |
पूरे गांव में सन्नाटा पसरा हुआ था,मामला यह था कि गांव के मालगुजार ठाकुर गुलाब सिंह की बेटी सुलोचना गांव के गरीब मजदूर किसान के बेटे मोहन से भागकर प्रेम विवाह कर ली | समाज प्रेम विवाह को मान्यता नहीं देता है पर सबकुछ ठीक ठाक था,दोनों सजातीय थे,और दोनों एक दूसरे को बहुत प्यार करते थे जिसकी परिणति विवाह थी |
मामला संगीन इसलिये था कि मालगुजार ठाकुर गुलाब सिंह अमीरी ठाठ परिवार के थे और मोहन गरीब परिवार से था,दोनों में समानता नहीं थी, उपर से बेचारा मोहन के उपर अपनी बेटी सुलोचना से विवाह कर छुपा लेने के जुर्म में झूठा पुलिस रिपोर्ट भी कर दिया था |
सनसनी की तरह फैल गई कि मोहन ने अपनी गर्लफ्रेंड सुलोचना से झूठा प्रेम विवाह करके उसकी इज्जत लूटने के बाद हत्या कर दिया | ऐसी अफवाह उड़ने लगी | परिवार के लोग भी अब मोहन के उपर संदेह करने लगे | कहीं ठाकुर का सामना नहीं कर सकने के कारण ऐसी घटना को अंजाम तो नहीं दिया होगा | मोहन सभी के सामने सफाई देने लगा,रोने बिलखने लगा,पर सत्य को कौन माने और सत्य का तात्कालिक प्रमाण कहां से लाये | मोहन ने ठान लिया की शौच को जाने के कारण यह सब हुआ,उसने तत्काल ही शौचालय भी बना डाला | फिर लोग हंसी उड़ाने ताना देने लगे कि अब किसी शामत अनेवाली है,कि फिर शौचालय बना देने से आ जायेगी क्या,या कोई और फंसने वाली है शौचालय के बनाने से कैसा षडयंत्र कर रहा है | तरह-तरह की बातें,लेकिन मोहन किसी की परवाह न करते हुए,सच का अनुसरण किया,रोज कहीं न कहीं जाकर पता करता ढूंढता,पुलिस भी जान गई कि कोई इतना बड़ा आशिक कैसे हत्या कर सकता है,मोहन को सुलोचना और अपनी सच्चाई पर भरोसा था कि जीत एक दिन मेरी ही होगी | गांव से मोहन और उसके परिवार को हेय दृष्टि की बात होने लगी | मोहन को ठाकुर की गांव में भड़काउपन बातें जिससे गांव से बाहर करने,जिससे मोहन को कुछ-कुछ आहट होने लगी कि दाल में कुछ तो काला है | फिर सामाजिक तिरस्कार के सामने लड़ना किसी महायुद्ध से कम नहीं होता |
समय बीतता गया, पुलिस जांच में जुटी,पुलिस की पूछताछ से मोहन और परिवार हलाकान,परेशान | कहीं कोई कानों कान खबर नहीं,कि सुलोचना कहां गुम हो गई | वो तो शौच के लिए निकली थी,फिर गई तो गई कहां,विवाह होने के महीने भर बाद ही रात को बाहर शौच के लिए निकलने के दौरान ठाकुर गुलाब सिंह ने अपनी बेटी को उठवा कर अपने घर में कैद कर रख दिया था | पुलिस की तस्दीक के बाद जासूसी के बाद पता चला कि सुलोचना को ठाकुर गुलाब सिंह ने अपने तल घर में छिपा रखा है |
गांव के पंचायत में किसी की हिम्मत नहीं कि ठाकुर गुलाब सिंह के खिलाफ कोई एक शब्द भी बोल सके | पुलिस ने सूचना के आधार पर छापेमारी करके ठाकुर की बेटी को तल घर से आजाद कर अपने कब्जे में ले लेकर गई |
पंचायत बैेठी है,सैकड़ों लोग चौपाल पर बैठे हैं पर,ऐसा माहौल है जैसे कोई है ही नहीं | गमगीन और खुशी की मिश्रित अवस्था है | गांव के सरपंच साहब सामने बैठे हैं,ठीक उसी समय पुलिस की गाड़ी सुलोचना को लेकर पंचायत तक पहुचती है |
सरपंच साहब बोले –
सुनिये ठाकुर जी | आपने मोहन को बिना बताये सिर्फ इस बिना पर कि वो आपकी बेटी है,जो कि बालिंग है,उसे चोरी छिपे उठवा कर अपने घर कैद में रखा,और हमें पता चला है कि मोहन को तरह- तरह से प्रताड़ित और अन्य हथकंडे अपनाकर परेशान किया ताकि वो गांव छोड़कर चला जाये | अतएव आपकी बेटी अब मोहन की पत्नी है जिसे मोहन के पास ही होना चाहिए | यही हमारी पंचायत राय है, बाकी इंस्पेक्टर साहब कार्यवाही अमल में लायें |
सभी पंचो ने एक राय से तालियाँ बजाई,पंच परमेश्वर होता है,यही भाव से वहां उपस्थित लोगों ने भी फैसले का स्वागत कर जोरदार तालिंया बजायी |
इंस्पेक्टर साहब, मोहन की ओर इशारा करते हुए –
मोहन,तुम इधर आओ,अपनी पत्नी को लेकर जाओ,अपने घर पर | मोहन खुशी के आंसू रोक नहीं पाया,मोहन को देखकर सुलोचना आकर रोती हुई गले लग गई | फिर दोनों घर की ओर जाने लगे |
इंस्पेक्टर साहब ने कहा –
ठाकुर साहब,आपकी कहानी खत्म तो चलें,अब थाने की ओर |
इंस्पेक्टर साहब की बात सुनते ही –
ठाकुर, इंस्पेक्टर के चरणों में गिर पड़े और माफी मांगी | दुबारा गलती नहीं करने की शर्त के साथ | माफ कर दिया गया | फिर इंस्पेक्टर साहब जाने लगे |
सरपंच और पंचगण उठने लगे जाने लगे |
सुलोचना और मोहन के साथ सारा गांव पीछे-पीछे बाराती की तरह चल पड़ा |
ठाकुर और ठकुराइन भी प्रायश्चित भरी आसुंओ के साथ,भीड़ के साथ हो गए,आज लग रहा था,भगवान के घर देर है अंधेर नहीं,भीड़ में लोग कह रहे थे…, सत्य की जीत होती है |
किसी ने सच कहा है-
सत्य परेशान हो सकता है,पराजीत नहीं |
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*विश्वनाथ देवांगन”मुस्कुराता बस्तर”*
कोंडागांव,बस्तर,छत्तीसगढ़