
नेत्रहीन बहन की सेवा में अपनी पूरी जिंदगी बिता दी और बहन भी ईश्वर से यही प्रार्थना करती है कि हर जन्म में उसे इसी भाई का साथ मिले…नेत्रहीन बहन के लिए भाई का त्याग वाकई प्रेरणादायक है,और उनका रिश्ता भाई-बहन के अटूट रिश्ते की मिसाल है
भाई-बहन का रिश्ता प्रेम, स्नेह और समर्पण का होता है। जब भी बहन को जरुरत पड़े तो भाई उसकी मदद के लिए आए और जब भाई पर कोई विपदा आए तो बहन उसकी मदद करे बस यही उम्मीद इस रिश्ते की नींव होती है। लेकिन अगर कोई भाई अपनी बहन की मदद और सेवा के लिए अपनी पूरी जिंदगी लगा दे तो इसे इस पवित्र रिश्ते की अनूठी मिसाल ही कहेंगे। रक्षाबंधन पर ऐसी ही एक कहानी हम आपको बता रहे हैं जो मध्यप्रदेश के रायसेन जिले में रहने वाली एक नेत्रहीन बहन और उसके मजदूर भाई की है।
बहन की देखभाल के लिए भाई ने नहीं की शादी
भाई-बहन के अटूट रिश्ते की ये कहानी है रायसेन जिले के बाड़ी ब्लॉक के किनगी गांव में रहने वाले धीरू प्रजापति और मुन्नीबाई की। 70 बरस की हो चुकीं बहन मुन्नी बाई बचपन से ही नेत्रहीन हैं। छोटी उम्र में ही माता-पिता का साया मुन्नी बाई और धीरू प्रजापति के सिर से उठ गया था। माता-पिता के गुजरने के बाद नेत्रहीन बहन मुन्नी की पूरी जिम्मेदारी भाई धीरू पर आ गई थी जिसे उन्होंने ताउम्र बखूबी निभाया और उम्र के इस पड़ाव पर भी नेत्रहीन बहन की सेवा कर रहे हैं। भाई धीरू ने बहन की देखभाल में कोई कमी न आए इसलिए उन्होंने शादी तक नहीं की। धीरू उम्र के इस पड़ाव पर भी मजदूरी कर अपना और अपनी बहन का भरणपोषण कर रहे हैं। दोनों एख टूटी फूटी झोपड़ी में रहते हैं और एक दूसरे के सुख दुख के साथी बनते हैं।
मुन्नी बाई कहती हैं भगवान सबको ऐसा भाई दे
नेत्रहीन बहन मुन्नी बाई भी भाई से बहुत प्यार करती हैं और कहती हैं कि भगवान ऐसा भाई सभी बहनों को दें। वो ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहती हैं कि उनकी ईश्वर से एक ही प्रार्थना है कि हर जन्म में उसे धीरू को ही भाई के रूप में मिले। वहीं भाई धीरू का कहना है कि भगवान ने उनकी बहन की आंखों में रोशनी नहीं दी, बचपन में ही माता-पिता का साया भी छीन लिया। ऐसे में नेत्रहीन बहन की देखभाल की जिम्मेदारी उनकी थी जिसे वो आज भी निभा रहे हैं और आगे भी निभाते रहेंगे। नेत्रहीन बहन के लिए धीरू का त्याग वाकई प्रेरणादायक है और उनका रिश्ता भाई-बहन के अटूट रिश्ते की मिसाल है।