क्रो मैंन की दिलचस्प कहानी…कौओं से जोड़ लिया दिल का रिश्‍ता, 10 साल से उन्‍हें खिलाकर ही करते भोजन…

समान्‍यत: कौआ को लोग शातिर पक्षी मानते हैं। शास्‍त्रों के अनुसार उन्‍हें यमराज का दूत भी माना जाता है। ऐसे में उनके साथ कोई दिल का रिश्‍ता जोड़ने की बात शायद ही सोचे। लेकिन बिहार के पश्चिम चंपारण जिला स्थित मनाटांड के ग्रामीण इलाके में एक युवक को कौओं की इतनी चिंता रहती है कि उन्‍हें खिलाए बिना खुद भोजन नहीं करते। यह सिलसिला पिछले 10 वर्ष से चला आ रहा है। कौए भी उन्‍हें पहचान लेते हैं। इलाके के लोग उन्‍हें ‘क्रो मैन’ के नाम से जानते हैं।

घर पर रोटी बनवा कौओं को खिलाते, फिर खुद करते भोजन
मैनाटांड के उमेश साह के पास सुबह तय समय पर कौओं के झ़ुंड का जमा होना देखते बनता है। इसके पहले वे उनके लिए रोटी व अनाज के दाने लेकर तैयार रहते हैं। कोरोना के चलते आर्थिक तंगी है, लेकिन दिल है कि मानता नहीं। घर पर ही कौओं के लिए रोटी बनवाते हैं, फिर उन्‍हें खिलाने के बाद पानी की भी व्यवस्था करते हैं। इसके बाद खुद भोजन करते हैं।

कोरोना व लॉकडाउन के काल में भी चलता रहा सिलसिला
उमेश साह मैनाटांड़ बाजार में एक छोटा सा होटल चलाते हैं। इसी से सात लोगों के परिवार का भरण-पोषण होता है। होटल से इनकी प्रतिदिन की आमदनी एक हजार रुपये है। इसमें से सौ रुपये वे कौओं के भोजन पर खर्च करते हैं। कोरोना संक्रमण के काल में होटल में घाटा हो रहा है, लेकिन कौओं के लिए जुगाड़ तो हो ही जाता है। कहते हैं, 10 साल से कौओं का भोजन दे रहा हूं। सर्दी, गर्मी, बरसात किसी भी मौसम में यह सिलसिला नहीं रुका। फिर कोरोना व लॉकडाउन के दौरान कैसे रोके दें। अभी तो कौओं को भोजन की और जरूरत है।

मां से मिली इसकी प्रेरणा, फिर खुद संभाल लिया काम
उमेश को कौओं को खिलाने की प्रेरणा मां कलावती देवी से मिली। उनकी मां प्रतिदिन सुबह होटल में बचे खाने को कौओं को खिलाती थीं। उस वक्त होटल से उतनी आमदनी नहीं थी, इसलिए कौओं के लिए अलग से खाना नहीं बनता था। कभी-कभी जब होटल में रात का खाना नहीं बचता था, तब कौओं का झ़ुंड दरवाजे पर आकर कांव-कांव करने लगता था। तब मां उनको खाना देने के लिए बेचैन हो जाती थीं। वे बाजार से भूंजा खरीदकर कौओं को खिलाती थीं। बडा़ होकर जब उमेश ने होटल का कारोबार संभाला, तब इस परंपरा को आगे बढ़ाते हुए अलग से कौओं के लिए खाना बनवाने लगे।

लॉकडाउन में होटल बंद होने पर भी करते रहे व्यवस्था
मार्च में लॉकडाउन शुरू होने के बाद विभिन्न जगहों से कौओं के मरने की सूचना आ रही थी। लोग तरह-तरह की बातें कह रहे थे। उमेश का मानना है कि कहना है कि कौओं की मौत किसी बीमारी नहीं, बल्कि भूख से हो रही थी। लॉकडाउन में लोग घरों से निकल नहीं रहे थे। होटल आदि का संचालन भी बंद था। ऐसे में कौओं को भोजन नहीं मिल रहा था। इस वजह से वे मर रहे थे। उमेश कहते हैं कि कोरोना काल में उनका होटल भी बंद था, लेकिन वे कौओं के लिए व्यवस्था कर रहे थे। आज भी ऐसा कर रहे हैं।

कौओं को खिलाने से पितरों के प्रसन्‍न होने की मान्‍यता
उमेश कहते हैं कि शास्त्रों में कौआ को यमराज का दूत कहा गया है। शायद इसलिए लोग अपशगुन मानकर उसे खदेड़ देते हैं। अपनी कर्कश आवाज के कारण भी वे लोगों के कोप का शिकार होते रहते हैं। लेकिन शास्‍त्र यह भी बताते हैं कि पूर्वजों को प्रसन्न करने के लिए कौओं को खाना खिलाना चाहिए। उमेश की बातों से शास्‍त्रों के ज्ञाता आचार्य राकेश सहमत हैं। उनका कहना है कि कौआ को उदंड, धूर्त और चालाक पक्षी माना जाता है। इसकी विविधताओं के कारण काग शास्त्र की रचना हुई है। पितरों के नाम पर कौओं को खाना खिलाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि कौओं को खाना खिलाने से वह पितरों को मिलता है। उनकी स्वाभाविक मौत भी नहीं होती, इसलिए उन्हें यम का दूत माना जाता है।

तेज दिमाग होता यह पक्षी, मददगार की कर लेता पहचान
दिल्ली में पक्षी विज्ञान के छात्र संजय कुमार बताते हैं कि कौओं का दिमाग बहुत तेज होता है। वैज्ञानिक उसे चतुर पक्षी मानते हैं। वे किसी का चेहरा देखकर पता लगा सकते हैं कि वह मददगार है या नहीं, फिर उसी आधार पर अपना व्यवहार करते हैं।


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