
सोशल मीडिया की वजह से लंबे समय से बिछड़ा हुआ परिवार बड़े नाटकीय ढंग से फिर मिल गया…
डिजिटल प्लेटफॉर्म की मदद से बिछड़े हुए लोगो को किस तरह मिलाया जा सकता है,अगर इस बात को समझना है तो 93 साल की पांचू बाई की कहानी से जानिए जिन्हें सोशल मीडिया की वजह से लंबे समय से बिछड़ा हुआ परिवार बड़े नाटकीय ढंग से फिर मिल गया।
मराठी में ही बात करती थीं
लगभग 53 साल पहले पांचू बाई पर मध्यप्रदेश के दमोह गांव में मखुमक्खियों ने हमला कर दिया था। जब नूर खान नाम के एक शख्स ने न सिर्फ उनकी जान बचाई बल्कि उन्हें अपने घर में जगह भी दी। नूर खान के घर में रहते हुए भी पांचू बाई सिर्फ मराठी में ही बात करती थीं।
नूर के परिवार का हिस्सा बन गईं
हालांकि कुछ ही समय में वे नूर के परिवार का हिस्सा बन गईं। परिवार के सब लोग उन्हें मौसी कर कर बुलाने लगे। 2007 में नूर खान इस दुनिया में नहीं रहे। फिर उनके बेटे इसरार और पूरे परिवार ने पांचू बाई की अच्छी देखभाल की। वे उन्हें अपनी दादी मानते थे और उनकी अच्छी केयर भी करते थे।
गूगल की मदद से गांव ढूंढ़ निकाला
एक दिन मोबाइल पर इंटरनेट देखते हुए इसरार ने पांचू बाई से उनके गांव के बारे में पूछा। मराठी में जितना उन्होंने बताया उसे समझते हुए इसरार ने कुछ शब्दों को गूगल किया। कुछ ही देर में इसरार ने पांचू बाई के पैतृक गांव पथरोट को ढूंढ निकाला।
नागपुर अपना इलाज कराने गईं थी
वाट्सएप की मदद से उसने गांव वालों को पांचू बाई की फोटो भेजी।जल्दी ही गांव वालों ने उनके परिवार का पता लगाया और उन तक इसरार का संदेश पहुंचाया। पांचू बाई नूर खान तक किस तरह पहुंची, इस बारे में बताते हुए वह कहती हैं उन्हें बस इतना याद है कि वे नागपुर अपना इलाज कराने गईं थी।
पांचू बाई को अपना परिवार मिला
आखिर 40 साल बाद इसरार की कोशिश से पांचू बाई को अपना परिवार मिल गया। पांचू बाई के गांव से जाने के पहले पूरे गांव ने रोते हुए उन्हें अलविदा कहा। गांव के सभी लोग उनके लिए दुआ कर रहे थे। ये देखकर पांचू बाई को अपने साथ लेने आए उनके पाेते को आश्चर्य हुआ कि अंजान लोगों ने उनकी दादी को इतना प्यार दिया।