बेजुबानों के लिए प्यार भरी दास्तां…स्ट्रीट डॉग्स के लिए बचपन वाला प्यार अब एक जिम्मेदारी बन गया है…पूरा परिवार कर रहा बेजुबानों की देखभाल…

बचपन में ज्यादातर बच्चों को पालतू हों या स्ट्रीट एनिमल, उनसे खेलना और उनको अपनी चीजें खिलाना बहुत अच्छा लगता है। मगर बड़े होने पर जिंदगी की व्यस्तता के बीच बेजुबानों के प्रति उनका यह प्यार और अपनापन कुछ ही बच्चे बरकरार रखते हैं। ऐसे ही कुछ बच्चों में खास हैं, एक निजी कंपनी में एचआर एक्जीक्यूटिव मेघा कपूर जिनके मन में बेजुबानों के लिए बचपन से प्रेम और दर्द था जो आज भी बरकरार है। बचपन में स्कूल से घर आते-जाते वक्त रास्ते में जो भी स्ट्रीट डॉग और उनके बच्चे दिखते उनको अपने टिफिन का खाना खिला देना, तो कभी पॉकेटमनी से उनका पेट भरना।

ऐसा करने से उस वक्त नन्ही मेघा को बहुत खुशी मिलती थी। स्ट्रीट डॉग या किसी भी एनिमल को खाना खिलाना उसे इतना अच्छा लगने लगा कि धीरे-धीरे यह उसकी आदत में शुमार हो गया और उसकी दिनचर्या का हिस्सा बन गया। बेजुबानों के लिए उसका बचपन वाला वह प्यार अब एक जिम्मेदारी भी बन गया है। यहां तक कि अब वह पहले बेजुबानों को खिलाती हैं और फिर खुद खाना खाती हैं। इतना ही नहीं, मेघा के इस नेक काम में उनके छोटे भाई-बहन और माता-पिता भी शामिल हो चुके हैं। उनके परिवार का बेजुबानों के लिए प्यार कोरोना काल में लॉक डाउन के दौरान भी बरकरार रहा।

आलमबाग मेघा कहती हैं कि मुझे याद नहीं है कि मेरे दिल में इनके लिए प्यार कब और कैसे पैदा हुआ। बस, इतना मालूम है कि जब से होश संभाला और समझ आई तब से हमें उनसे प्यार हो गया। मुझे लगा कि जिस तरह जिंदगी के दुख-दर्द और भूख-प्यास को हम इंसान महसूस करते हैं, वैसे ही ये बेजुबान भी करते होंगे। हम तो अपनी भावनाओं को व्यक्त कर देते हैं, मगर ये बेचारे तो बोल भी नहीं पाते। इनको जितना प्यार दो ये उससे कहीं ज्यादा प्यार और वफादारी निभाते हैं। इनको हम इंसानों से सिर्फ प्यार और अपनेपन की चाहत होती है।

परिवार ने दिया साथ
आलमबाग निवासी मेघा कहती हैं, पहले हम लोग राजाजीपुरम में रहते थे। वहां हमारी कॉलोनी में बहुत सारे स्ट्रीट डॉग्स थे। उनको मैं हमेशा खाना खिलाती थी। जब मेरे मम्मी-पापा को पता चला तो वे भी मेरा साथ देने लगे। मेरे स्कूल जाने के बाद मम्मी आसपास के सभी डॉग्स का ख्याल रखती थीं और उनको खाना खिलाती थीं। मुझे देखकर मेरे छोटे भाई-बहन भी मेरा साथ देने लगे। इस तरह मेरा पूरा परिवार बेजुबानों की देखभाल में जुट गया।

चार्ली और छोटू बन गए परिवार के सदस्य
मेघा बताती हैं कि आज से लगभग पांच साल पहले एक छोटा सा डॉगी जो बहुत कमजोर था। कहीं से घूमते हुए हमारे घर आ गया। उसको हमने खाना दिया। उसके बाद से वह रोज घर आने लगा। हम भाई-बहन उसे छोटू कहते थे। मगर वह बहुत कमजोर था और उसका वजन भी बहुत कम था इसलिए मम्मी उसे प्यार से 100 ग्राम कहकर बुलाती थीं। छोटू भी अपने इस नाम को पहचानने लगा था। मम्मी जब गेट पर आकर 100 ग्राम कहकर पुकारती थीं, तो वह कहीं भी होता था, दौड़कर घर आ जाता था। धीरे-धीरे वह परिवार का सदस्य बन गया। इसी तरह एक बार बारिश में भीगता हुआ एक प्यारा सा नन्हा डॉगी हमारे घर आ गया। वह बीमार था, जल्दी से हम लोग उसे डॉक्टर के पास ले गए। उसके बाद उसे हम लोगों ने घर पर ही रख लिया। उसे हम लोग प्यार से चार्ली बुलाने लगे। आज छोटू और चार्ली को हमारे साथ इस तरह रहते हुए देखकर लोगों को यकीन नहीं होता कि वे स्ट्रीट डॉग्स हैं।

जब डॉक्टर को छोटू का पैर काटना पड़ा 
मेघा बताती हैं, करीब चार साल पहले छोटू किसी साइकिल के नीचे आ गया था जिससे उसका पैर बुरी तरह घायल हो गया था। हम सब उसको लेकर डॉक्टर के पास गए। जहां डॉक्टर ने बताया कि छोटू के शरीर में इन्फेक्शन फैलने का खतरा है इसलिए जान बचाने के लिए उसका पैर काटना पड़ेगा। मेरे परिवार ने दिल पर पत्थर रखकर सिर्फ उसकी जान बचाने के लिए डॉक्टर की बात मानकर उसका पैर काटने की अनुमति दे दी। आज वह भले एक पैर खो चुका है, पर स्वस्थ है और हमारे साथ है।


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