
कोरोना संकट हमें बहुत कुछ सीखा रहा…आंतरिक और बाहरी प्रेरणा की जरूरत…सकारात्मकता का दिमाग से क्या है कनेक्शन…खुद से जरूर करें सवाल…
आपने कभी फूलों की महक को दिल से महसूस किया है,सरसराती हुई हवाओं का हमारे साथ चलना,चांद तारे सब कुछ कितना अनोखा है इस संसार में।वर्तमान में मनुष्य की औसत आयु लगभग 70 वर्ष के आस पास होना चाहिए।इस धरती पर हमें अनन्तकाल के लिए नही भेजा गया है।एक निश्चित समय और एक निश्चित उद्देश्य के साथ हम यहां आए है।समस्या वास्तव में पानी की बुलबुला की तरह आती जाती रहती है।आज कोरोना जैसे संकट ने हमे शिक्षा दिया है कि हरेक परिस्थितियों में हमे खुश रहना है और हम हमेशा के लिए इस धरती पर नही है।तो फिर देर किस बात की एक दूसरे की खुशी को शेयर कीजिये और इंसान होने का अपना फर्ज अदा कीजिये।क्योकि यही सकारात्मक ऊर्जा सदैव प्रकृति के करीब रखेगी।
आंतरिक और बाहरी प्रेरणा की जरूरत
अमेरिकी मनोवैज्ञानिक और इमोशनल इंटेलिजेंस के लेखक डैनियल गोलमैन का कहना है कि जीवन में बाहरी और आंतरिक दो तरह की प्रेरणा होती है। बाहरी प्रेरणा पाकर इंसान धन कमाने जैसा काम करता है और आंतरिक प्रेरणा से व्यक्तित्व सुधारने, दूसरों की मदद करने, मानसिक शांति पाने और ज्ञान अर्जित करने या किसी खेल गतिविधि का आनंद उठाने के लिए होता है।
जीवन में सबसे ज्यादा महत्व क्या रखता है?
विशेषज्ञों का मानना है कि कोरोना बीमारी ने लोगों को यह जानने का मौका दिया है कि जीवन में क्या ज्यादा मायने रखता है। ऑस्ट्रेलियाई मनोवैज्ञानिक और न्यूरोलॉजिस्ट विक्टर फ्रैंकल ने चार साल तक निजी शिविरों में प्रताड़ना के बावजूद जीवन जीने का मकसद जिंदा रखा।
उनकी प्रसिद्ध किताब ‘यस टू लाइफ: इन स्पाइट आफ एवरीथिंग’ खतरनाक हालात में भी जीवन जीने की उम्मीद बांधती है। यह किताब बताती है कि जीवन में सबसे ज्यादा क्या मायने रखता है और इसे जीने का सही मतलब क्या है। विक्टर उन्हें जीने का मकसद देते हैं जिन्हें कोई प्रेरणा नजर नहीं आ रही है।
खुद से जरूर करें सवाल
विक्टर का कहना है कि लोगों को उनके जीवन में जो हो रहा है, उसका सामना करना चाहिए। उस घटना को लेकर जानिए कि वो आपके लिए कितनी मायने रखती है और अगर रखती है तो इसके लिए आप क्या कर सकते हैं। अमेरिका के पूर्व सर्जन जनरल और टूगेदर किताब के लेखक डॉ विवेक एच मूर्ति का कहना है कि हमारा बुनियादी महत्व आंतरिक है।
यह दयालुता, करुणा, उदारता और प्रेम के आदान-प्रदान पर आधारित है। उनका कहना है कि दूसरों की सेवा करने से पता चलता है कि हम खुद के लिए कैसा महसूस करते हैं।
सकारात्मकता का दिमाग से क्या है कनेक्शन?
विशेषज्ञों का मानना है कि जब इंसान भले काम करता है तो मस्तिष्क के सर्किट गतिविधि करते हैं जो खुद की भलाई में अहम भूमिका निभाते हैं यानि कि दूसरों की देखभाल खुद के लिए तोहफा है। जिनका मस्तिष्क की प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स के बाएं हिस्से पर भावनात्मक दृष्टिकोण केंद्रित होता है वह ज्यादा सकारात्मक रहते हैं।
प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स इंसान के परोपकारी व्यवहार से सक्रिय होता है ऐसे लोगों के लक्ष्य पूरे होने पर वे झुनझुना सकते हैं। लेकिन उनकी ऊर्जा बनी रहती है और उनमें बाधाओं को पार करने की प्रेरणा आती है। वहीं, जिन लोगों में प्रीफ्रंटल कार्टेक्स का दायां हिस्सा ज्यादा सक्रिय रहता है वह मुश्किलों के सामने आसानी से हार मान लेते हैं। ऐसे लोग भयभीत जोखिम से बचने वाले होते हैं। साथ ही प्रेरणारहित होते हैं।
छोटे लक्ष्य बनाएं और हासिल करें इससे मिलेगी ऊर्जा
संकट काल में लोग हल्के काम को निरर्थक समझने लगते हैं। इससे आनंद खत्म हो जाता है और जीवन निराशा से भर जाता है। लिहाजा दैनिक जीवन में लक्ष्य निर्धारित करने की जरूरत ज्यादा बढ़ जाती है। विशेषज्ञों का कहना है कि आप रोजाना छोटे-छोटे हासिल योग्य लक्ष्य बनाएं। उन्हें पाकर खुशी और ऊर्जा मिलेगी। फिर आप एक लक्ष्य से दूसरे की ओर बढ़ने लगेंगे।