
आत्मनिर्भर दादी विष्णु प्रिया कभी पैसों के लिए झुकी नही है…आज भी एक होटल में रोटियां बनाती है…किसी के ऊपर बोझ न बनकर उतनी ही मेहनत करती है जितना पहले किया करती थी…
कमलेश यादव:जिंदगी की शाम “बुढ़ापा” न केवल चेहरों पर झुर्रियां लेकर आता है,बल्कि हर दिन एक नया चुनौती रहता है।एक उम्र के बाद सिकुड़ने लगता है,सामाजिक जीवन का दायरा।बुजुर्ग हमारे वहजूद का कारण है।आज ऐसी ही 90 वर्षीय दादी विष्णु प्रिया के बारे में जानकर करोड़ो लोगों को खुशी और प्रेरणा मिलेगी क्योकि दादी आज भी एक छोटे से टिपरी(होटल) में जिस तेजी के साथ रोटियां बेलती है जिसे देखने के बाद आपको गर्व होगा इस उम्र में भी दादी आत्मनिर्भर है,किसी के ऊपर बोझ नही है।
आज हम दादी के जीवन की सांझ को आपके साथ साझा कर रहे है,वजह यह है निराश होकर दादी कही पैसे के लिए झुकी नही है।आत्मसम्मान और स्वावलम्बी होने के कारण आज भी उतनी ही मेहनत करती है जितना पहले किया करती थी।बिलिया घटा सीआईटी मोड़ कोलकाता के पास पिछले कई सालों से दादी विष्णु प्रिया अपनी मंद बुद्धि बेटी के साथ इस होटल में काम करती है।होटल के मालिक भी दादी के साथ बड़े प्यार से रहते है।
सामाजिक जीवन में बुजुर्गों के साथ अकेलापन का चुनौती बहुत बड़ी समस्या है,वजह अनेक है।दादी विष्णु प्रिया की मेहनत देखकर लगता है इस उम्र में भी अपने परिवार के लिए कैसे संघर्ष कर रही है।झुकी हुई कमर,नम आंखे समाज और सरकार से ढ़ेरो सवाल करती है।बुजुर्ग दायित्व और जिम्मेदारी है समाज और सरकार दोनों के लिए।इनसे मुह मोड़कर नही जीया जा सकता क्योंकि एक दिन सभी को इस दौर से गुजरना है।जीवन की शाम बुढ़ापा सबकी आनी है।
दादी के हाथ की रोटियां का स्वाद का मजा ही कुछ और है।ऐसे करोड़ो युवा जो नौकरी न मिलने पर परेशान हो जाते है उनके लिए दादी बहुत बड़ा उदाहरण है।आज भी जिस शिद्दत के साथ मेहनत करती है,ऐसा ही अपने काम के प्रति युवाओ में लगन हो और सब्र तो सफलता मिलना निश्चित है।सत्यदर्शनलाइव चैनल की पूरी टीम के तरफ से दादी के इस जज्बे को नमन….
(Special thanks—pankaj singh rathore)
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