
सत्यदर्शन साहित्य….युवा साहित्यकार विश्वनाथ देवांगन”मुस्कुराता बस्तर”की कलम से…अम्बर और धरती के बीच सोमारू और मंगली के प्रेम की अनूठी कहानी…
हिंदी और हल्बी साहित्य में अपने लेखन से लाखों पाठको के अंतर्मन तक पहुचने वाले युवा लेखक विश्वनाथ देवांगन,मुस्कुराता बस्तर के कहानियों में समाज के वास्तविक स्वरूप का दर्शन होता है।लेखन की शैली ऐसा आम लोगो को आसान शब्दो मे समझ आ जाए।
प्यार तो प्यार होता है,पर यह प्यार का नयापन हो जो किसी बंदिश और लालच से परे हो,तो समाज भी सोंचने पर मजबूर हो जाता है,सोमारू और मंगली के प्रेम की नयी दास्तान कहें या बेजुबान अरमान पर है तो प्रेम का ही प्रतिरूप पर आप और हम इस बारे में क्या राय रखते हैं यही कहानी की मूल भावना है..कि सोमारू और मंगली को भी हक है,सच्चे प्रेम का..? बाकी कहानी पर….!*
एक गांव में एक गरीब किसान परिवार का युवक सोमारू शहर के छात्रावास से अपनी कालेज की पढ़ाई पूरी करके गांव लौटा है, गांव की अमराइयों और पास ही छोटे-छोटे झाड़ के जंगलों में घूम रहा है,जैसे इन वादियों में वो किसी को ढूंढ रहा है,उसे गांव बहुत पसंद है,उसका यह लगाव ही उसे कभी-कभी होस्टल से गांव भागकर आने को मजबूर करता था | पर जब से शहर वाली युवती मंगली से मिलकर आया है,जो कि शहर के किसी बड़े घराने की लड़की है,जो पास के ही किसी गांव से शादी होकर शहर आयी है,पर कुदरत की मर्जी के आगे नतमस्तक है,दिखने में तो सामान्य कद काठी की युवती पर एक शालीनता झलकती है,जो किसी भी दृृष्टिकोण से एक सभ्य और शालीन सुशील युवती की छाप छोड़ती है,सोमारू शहर के राज सिनेमाघर में फिल्म देखकर निकल रहा था तभी सोमारू का मोबाईल जेब से मोटरसायकिल की चाबी निकालते वक्त गिर गया और सोमारू को भीड़ में पता ही नहीं चला,जिसे मंगली ने देख लिया और मोबाईल उठाकर सोमारू को लौटा दिया तभी से परिचय हो गया,फिर मंदिर के बाहर पिछली बार जब मिले तो एक दूसरे के मोबाईल नंबर भी ले लिये और मोबाईल से चैटिंग भी होने लगी,पहली बार सोमारू ने शहर के सिनेमा घर के बाहर जब से देख लिया है,तब से उसकी नींद चैन सबकुछ उड़ ही गयी है | हमेशा उसकी यादों में ही खोया-खोया सा रहने लगा है | अब मंगली की हर बातें सोमारू को अच्छे लगने लगे हैं,एक नयी खुशी की आस मिल गयी है,पर सबकुछ गुमसुम सी अंदर ही अंदर हैं,पर मंगली से पिछली जब मिलकर आया है तब से उसकी बेचैनी और बढ़ गई है | मंगली ने बताया कि वो एक विधवा महिला है और सोमारू उसे पसंद न करे,क्योंकि उसकी जिन्दगी अब यहीं तक है,वो परिवार के साथ खुश है | मंगली ने साफ शब्दों में कह दिया- सोमारू,मेरे बारे ज्यादा कुछ मत सोंचो,अपना दिमाग सहीं रखो,मैं बड़े सभ्य परिवार से हूं और मैं अपनी बेटी और बेटा के साथ खुश हूं,मैं इनके सिवा किसी पर ख्याल नहीं रखती,कहते हुए भाव भंगिमा तो ऐसे करवट ले रहे थे कि जुबां पर मजबूरी से निकल रहे हैं,और अंदर ही अंदर कुढ़-कुढ़ यह कह रहे हैं कि मुझे भी जीने का हक है,मैं भी जीना चाहती हूं,औरों की तरह,मेरी पूरी जिन्दगी भरी पड़ी है,मेरी भी सुनिये,ये समाज और ये दुनिया मुझे जीने नहीं देगी मैंने ऐसा किया तो..,कातर..निगाहें,फिर दबी आवाज से बॉय,मैं चलती हूं,कह कर चली जाती है | सोमारू पर सुनकर पहाड़ टूट पड़ा,फिर मंगली का वाट्सअप पर डीपी बदलना,मैचिंग डीपी रखना,बातों-बातों में ही मुस्कुराना,अपना सुख दुख बांटना मन ही मन कई सवाल भी करती हैं | सोमारू स्वयं से कहता है सच कहते हैं प्रेम अंधा होता है,क्या विधवा और क्या युवती,पर प्रेम तो प्रेम होता है | चलते चलते पत्थर के टीले पर अचानक रूक जाता है,पत्थर के टीले पर बैठकर शांत होने की कोशिश करता है,मन में सोंचता है,अब समाज और परिवार क्या सोंचता है,मुझे तो नहीं पता पर मुझे तो यह लगता है कि मुझे सोमारी से प्यार हो गया है | क्या यही प्यार है,यही प्यार है तो फिर प्यार तो सच्चा होता है |
फिर दूर से गांयों की रंभाने की आवाज,बैलों के गले की बजती घंटियां,चरवाहे का गाय…गाय,ओर..हा चिल्लाना,बकरियों का मे…मे…करना और चिड़ियों की चहचहाती कलरवों ने सोमारू के नासूर सवालों पर मरहम लगाने की कोशिश करते रहे | अब सोमारू का मन नहीं लग रहा गांवों में फिर शहर जाने का मन कर रहा है | पर सोमारू के मन का सच तो यह है कि प्यार में पागल सोमारू समाज के उन बंधनों को तोड़कर पागलपुर में जाना चाहता है | जहां बंदिशों को तोड़कर जाने वाला हर वो शख्स या तो समाज को नयी दिशा देने वाला मसीहा बन जाता है,या फिर समाज का तिरस्कृत उपेक्षित स्लमडाग |
फिर सोमारू की चौपाल पर चोंगा लगाये मुखिया दादा जी से बहुत पटती थी,वो पहले ही कह देने वाला था पर हिम्मत नहीं हुई,दादा जी आज चौपाल पर अकेले बैठे थे,और देखते ही सोमारू को अपने पास बुलाकर हाल चाल पूछने लगे,सोमारू आज आखिर अपने मन की बात दिल की आवाज,कह दिया,दादा जी बड़े गुणी व्यक्ति थे,वो सारा माजरा समझ गये,वो भी जानते हैं कि समाज की कुछ बुराइयां नासूर बन गई हैं,फिर भी मुंह खोलें तो समाज में फजीहत और सम्मान गिरने का भय,फिर सोमारू को ढाढस बांधते समझाते हैं,, *आज यही सारे सवाल हजारों लोगों के मन में हैं,जिन्हें बोलने,लिखने की या तो जहमत नहीं उठाई जाती हैं,या फिर बोलने,लिखने वाला तौहीन का शिकार हो जाता है | फिर एक सुसंस्कृत समाज तो जोड़ता है तोड़ता नहीं |*
सोमारू मुखिया दादाजी की बातों का मतलब समझ गया और हजारों अनकहे सवालों के जवाब मिल गये फिर उठकर घर को चलने लगा |
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*विश्वनाथ देवांगन”मुस्कुराता बस्तर”*
कोंडागांव,बस्तर,छत्तीसगढ़
मोबाइल:07999566755
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