
ब्लड कैंसर से जूझते हुए भी उन्होंने कभी हार नहीं मानी बल्कि पूरी ताकत और दृढ़ संकल्प के साथ लोगों की मदद करती रहीं…. बाल संरक्षण आयोग की सदस्य श्रीमती संगीता गजभिये की प्रेरक कहानी
कमलेश यादव: परिस्थितियां कैसी भी हों, जीवन के प्रति सकारात्मक सोच रखने वाले लोग अपना रास्ता स्वयं बना लेते हैं। छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव की रहने वाली श्रीमती संगीता गजभिये की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। पिछले सात सालों से ब्लड कैंसर जैसी बीमारी से जूझने के बावजूद उन्होंने कभी हार नहीं मानी बल्कि पूरी ताकत और दृढ़ निश्चय के साथ लोगों की मदद में जुटी हैं। छत्तीसगढ़ राज्य बाल संरक्षण आयोग की सदस्य के रूप में बाल हित में बेहतरीन काम कर रही हैं। उनका मानना है कि जीवन में कोई भी चुनौती असंभव नहीं है।
श्रीमती संगीता गजभिये ने सत्यदर्शन लाइव को बताया कि जिंदगी बदलने वाला वो किस्सा कुछ यूं था , बचपन से ही सेवा के बीज अंकुरित होने लगे थे, जब भी मैं असहाय और बेसहारा लोगों को देखती थी तो उनकी मदद करने के बारे में सोचती थी। ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद मैंने कुछ ऐसा करने के बारे में सोचा जिससे मैं आर्थिक रूप से मजबूत हो सकूं और दूसरों की भी मदद कर सकूं। अपने हुनर को निखारने के लिए मैंने सिलाई, कढ़ाई और ब्यूटी पार्लर का प्रशिक्षण लिया। मुझमें शुरू से ही नेतृत्व का गुण था। धीरे-धीरे मैंने खुद को एक समाजसेवी के रूप में स्थापित कर लिया।
वह आगे कहती हैं कि विवाह के बाद मेरे पति ने भी मेरे सपनों को पंख दिए। उन्होंने हमेशा मेरा हौसला बढ़ाया। मैं गांव-गांव जाकर दिव्यांग लोगों को इकट्ठा करती थी और उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाने में मदद करती थी। फिर हमने गांव की महिला समूहों को सक्रिय करके उनमें उम्मीद की किरण जगाई। आज भी मैं शराबबंदी और नशाखोरी जैसी तमाम सामाजिक बुराइयों के खिलाफ खड़ी हूं। मैंने बच्चों के अधिकारों के लिए भी आवाज उठाई हैं।
गौरतलब है कि, श्रीमती संगीता गजभिये को जब ब्लड कैंसर का पता चला। एक पल के लिए तो वे स्तब्ध रह गईं और उन्हें लगा कि अब सब कुछ खत्म हो गया है, लेकिन भगवान को कुछ और ही मंजूर था। कहते है, सफलता दर्द की कोख से ही जन्म लेती है, उन्होंने खुद को रिचार्ज किया और एक नई ऊर्जा से आगे बढ़ी। संगीता जी कहती है कि, अगर मैं इन चुनौतियों का सामना कर सकती हूं, तो मैं दूसरों के जीवन में भी बदलाव ला सकती हूं।
बाल संरक्षण आयोग से जुड़ने के बाद उन्होंने बच्चों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी। उन्होंने कई स्कूलों में अभियान चलाकर बच्चों को POCSO (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम) के प्रावधानों के बारे में जागरूक किया। उनके प्रयासों से न सिर्फ़ बच्चे अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हुए, बल्कि समाज में इन मुद्दों पर एक नई सोच भी पैदा हुई।
जीवन में सफल होने का मतलब क्या है? दूसरों की हर संभव तरीके से मदद करना ही सफलता है। संगीता जी आज लाखों लोगों के लिए प्रेरणास्रोत हैं। उनका जीवन यह साबित करता है कि संघर्ष चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो, अगर हिम्मत और लगन है तो सफलता जरूर मिलेगी।
संगीता जी का जीवन उनके संघर्षों और नवाचारों से भरा हुआ है। उन्होंने बाल संरक्षण से जुड़ी नीतियों को बेहतर बनाने के लिए कई महत्वपूर्ण सुझाव दिए, जिससे बच्चों का जीवन सुरक्षित और बेहतर बनाया जा सकें। उनकी सबसे बड़ी प्रेरणा उनकी असाधारण इच्छाशक्ति है। वह हर दिन अपनी बीमारी से लड़ती हैं, लेकिन कभी भी इसका असर अपने काम पर नहीं पड़ने देतीं।
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