बस्तर: मसालों का नया केंद्र…किसान वैज्ञानिक डॉ. त्रिपाठी ने विकसित की अद्भुत काली मिर्च प्रजाति…भारत को गौरवान्वित करने वाली यह सफलता एक नए युग की शुरुआत है

रायपुर : कभी नक्सली हिंसा के लिए कुख्यात बस्तर अब “हर्बल और स्पाइस बास्केट” के रूप में दुनिया का ध्यान आकर्षित कर रहा है। यह बदलाव किसान वैज्ञानिक डॉ. राजाराम त्रिपाठी के अथक प्रयासों का परिणाम है। कोंडागांव के डॉ. त्रिपाठी ने 30 वर्षों के शोध से काली मिर्च की एक नई प्रजाति, ‘मां दंतेश्वरी काली मिर्च-16 (MDBP-16)’, विकसित की है, जो कम सिंचाई और सूखे क्षेत्रों में भी औसत से चार गुना अधिक उत्पादन देती है।

राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त
यह किस्म भारतीय मसाला अनुसंधान संस्थान (IISR), कोझिकोड, केरल द्वारा मान्यता प्राप्त है और भारत सरकार के प्लांट वैरायटी रजिस्ट्रार में पंजीकृत होने वाली इकलौती प्रजाति है। बस्तर जैसे क्षेत्र में इसे सफलतापूर्वक विकसित करना न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि पूरे देश के लिए गौरव की बात है।

100 वर्षों तक उत्पादन देने वाली काली मिर्च
डॉ. त्रिपाठी की यह प्रजाति सागौन, बरगद, पीपल, महुआ, और इमली जैसे पेड़ों पर चढ़कर उगाई जा सकती है। खास बात यह है कि यह पौधा 100 वर्षों तक उत्पादन देता है। गुणवत्ता के मामले में यह प्रजाति देशभर में सबसे बेहतर साबित हुई है। बाजार में इसकी भारी मांग है, और यह अन्य काली मिर्च प्रजातियों की तुलना में अधिक मूल्य प्राप्त कर रही है।

बस्तर से वैश्विक बाजार तक
डॉ. त्रिपाठी की यह प्रजाति वर्तमान में देश के 16 राज्यों और बस्तर के 20 गांवों में उगाई जा रही है। सरकारी मान्यता मिलने के बाद इस खेती में तेजी आने की उम्मीद है। उन्होंने कहा, “भारत अपने मसालों के लिए सदियों तक सोने की चिड़िया कहलाता था। अगर मसालों और जड़ी-बूटियों पर ध्यान दिया जाए, तो भारत फिर से अपना खोया गौरव हासिल कर सकता है।”

प्रधानमंत्री से मार्गदर्शन की उम्मीद
अपनी उपलब्धि से उत्साहित डॉ. त्रिपाठी जल्द ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात करेंगे और इस प्रजाति को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रोत्साहित करने के लिए मार्गदर्शन प्राप्त करेंगे। उनका सपना है कि बस्तर की यह नई पहचान भारत को मसालों की दुनिया में फिर से अग्रणी बनाए।

नवाचार और आत्मनिर्भरता की मिसाल
बस्तर से आई यह खबर न केवल कृषि वैज्ञानिकों बल्कि हर किसान के लिए प्रेरणा है। यह सिर्फ एक काली मिर्च की कहानी नहीं, बल्कि संघर्ष, नवाचार और आत्मनिर्भरता का प्रतीक है। 2025 में यह उपलब्धि भारतीय कृषि क्षेत्र को नई दिशा देने का वादा करती है। बस्तर से भारत को गौरवान्वित करने वाली यह सफलता एक नए युग की शुरुआत है।


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