
मां के संकल्प के आगे नियति भी झुक गई…. 29 साल से बिस्तर पर पड़े 95% दिव्यांग बेटे को बना दिया मशहूर चित्रकार
कमलेश यादव : माँ सिर्फ एक शब्द नहीं है, वह स्वयं ईश्वर है जो निःस्वार्थ भाव से जीवन को पोषित करती है। मां की ममता असंभव को भी संभव बनाने की क्षमता रखती है। आज हम बात करेंगे छत्तीसगढ़ के कुरुद की रहने वाली मां अहिल्या साहू की, जिन्होंने अपने बीमार बेटे की सेवा में एक-दो नहीं बल्कि 29 साल समर्पित कर दिए। माँ अहिल्या साहू की मेहनत की बदौलत दिव्यांग बसंत साहू देश के जाने-माने चित्रकार के रूप में मशहूर हो गए हैं। 95% दिव्यांगता जिसमें गर्दन के नीचे का शरीर का हिस्सा बिल्कुल भी काम नहीं करता। कभी खुद की जिंदगी से उम्मीद खो चुके बसंत साहू आज दूसरों के लिए प्रेरणा बन गए हैं। उनकी पेंटिंग्स को देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी सराहा गया है।
कभी हिम्मत न हारने वाले बसंत साहू ने सत्यदर्शन लाइव को बताया कि 15 सितंबर 1995, दिन शुक्रवार को सड़क दुर्घटना में मेरी रीढ़ की हड्डी में चोट लग गई थी। मेरे शरीर में कोई हरकत नहीं थी । डॉक्टरों ने कहा था कि मैं ज़्यादा दिनों तक ज़िंदा नहीं रह पाऊँगा। भविष्य की कल्पना करके रूह कांप जाती थी । कि , मैं अब सामान्य जीवन नहीं जी पाऊँगा यह सोचकर बार-बार बेहोश हो जाता था। नियति से यही सवाल करता कि आखिर मेरे साथ ये क्या हो गया। मैंने तो ठीक से अभी जीना भी शुरू नहीं किया है।
उस समय मेरी उम्र सिर्फ़ 23 साल थी और मैं ज़रूरतमंदों की मदद करता था। दुर्घटना के बाद सभी मेरी सेवा करने लगे। मेरी आँखों से आँसू बहते थे लेकिन मेरे पास इस स्थिति को स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। मैं एक महीने तक सेक्टर 9 बीएसपी अस्पताल भिलाई में रहा। ज़िंदगी और मौत के बीच ईश्वर ने कुछ और ही तय कर रखा था। मैं खुद अपने आपको समाप्त करना चाहा लेकिन मेरी माँ का चेहरा मेरे सामने आ जाता।
असंभव को संभव बनाने की शक्ति केवल आत्मविश्वास और दृढ़ संकल्प में ही निहित है। सच्ची हिम्मत और लगन से हर चुनौती का सामना किया जा सकता है। भले ही मेरी उंगलियाँ हिलने में असमर्थ हैं, फिर भी मैंने अपनी कल्पना को रंगों के माध्यम से कैनवास पर उकेरा है। आज, आपकी प्रार्थनाओं और माँ के आशीर्वाद से, मैं 2024 में साँस ले रहा हूँ।
अपने जीवन के इस लंबे सफर में मैं कई बार मौत के करीब पहुंचा हूं, लेकिन मेरी माँ की दुआओं की वजह से ही यमदूत को खाली हाथ लौटना पड़ा। आज मैं जो कुछ भी हूं, वो सब मेरी मां की वजह से हैं । मां को ब्रेस्ट कैंसर हुआ था लेकिन वह जल्दी ठीक हो गई और अपने लाडले को जीवन रूपी प्यार दे रही हैं। कभी कभी मुझे लगता है कि, जीवन की खूबसूरती और उसकी कीमत का सही एहसास तभी संभव है, जब हम किसी मुश्किल दौर से गुजरते हैं। मैंने करीब से जाना है कि जीवन का हर पल कितना कीमती है।
मैं बस्तर के नक्सल प्रभावित इलाकों में जाकर प्रतिभाशाली बच्चों को पेंटिंग सिखाता रहा हूँ। आज बसंत फाउंडेशन एक ऐसा संगठन बन गया है जिसका उद्देश्य जरूरतमंदों की मदद करना है। बसंत फाउंडेशन द्वारा प्रतिभाशाली बच्चों को पेंटिंग सिखाना एक सराहनीय पहल है। इस प्रयास से सैकड़ों बच्चे उत्साहपूर्वक कला सीख रहे हैं। हमें यह बताते हुए खुशी हो रही है कि हमारी क्लास के चार बच्चों का चयन खैरागढ़ संगीत विश्वविद्यालय में हुआ है, जो उनकी मेहनत और आपके सहयोग का प्रमाण है।
मेरा निरंतर प्रयास है कि अपने कला के माध्यम से आज के युवा पीढ़ी को सृजनात्मकता की प्रेरणा दूं। मेरी पेंटिंग्स छत्तीगढ़ी लोक कला ,सामाजिक जागरण और आध्यात्मिकता के विषयों पर आधारित होती हैं।बसंत फाउंडेशन के द्वारा चलाए जा रहे आर्ट ट्रेनिंग और समर कैंप के सहारे आज कई बच्चे कला की बारीकियां सीखकर स्वयं को तराश रहें हैं। मेरे द्वारा बनाई गई छत्तीसगढ़ लोक संस्कृति पर आधारित पेंटिंग देश विदेश के कई प्रतिष्ठानों में लगा हुआ है।
बसंत साहू जी आगे कहते है कि, मेरे लिए सबसे बड़ा संबल मेरी माँ, अहिल्या साहू, बनीं। पिछले 29 साल से, वो बिना थके, बिना रुके मेरी देखभाल कर रही हैं। वो ममता, सेवा और त्याग का सजीव उदाहरण हैं। जब सबने सोचा कि मेरी ज़िन्दगी अंधेरे में डूब जाएगी, माँ ने अपने संकल्प और प्यार से मेरे लिए एक नया रास्ता तैयार किया। मेरी ज़िन्दगी की यह कहानी सिर्फ मेरी नहीं, बल्कि हर उस माँ की है, जो अपने बच्चों के लिए किसी भी कठिनाई का सामना करने के लिए तैयार रहती है। माँ, तुम मेरी प्रेरणा हो, और तुम्हारे बिना मैं कुछ भी नहीं हूँ।