
साल के 365 दिनों में वह 365 लोगों को प्रेरणादायक पत्र लिखते हैं और उन्हें जिंदगी जीना सिखाते हैं…बहुमुखी प्रतिभा के धनी 70 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता नरेंद्र तायवाड़े, जिन्होंने लोगों के जीवन में आशा की किरण जगाने का काम किया है
कमलेश यादव : साल के 365 दिनों में वह 365 लोगों को प्रेरणादायक पत्र लिखते हैं और उन्हें जिंदगी जीना सिखाते हैं। वह उन लोगों से बैठकर बात करते हैं जो उदास और परेशान हैं। उन्होंने कहा ” मैं अपनी 7 दशकों की जीवन यात्रा का अनुभव लोगों के साथ साझा करता हूं, अगर वह किसी के काम आए”। हर परिस्थिति में वह संवाद कर लोगों के दिलों में जगह बना लेते हैं। जी हां, हम बात कर रहे हैं बहुमुखी प्रतिभा के धनी 70 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता नरेंद्र तायवाड़े की, जिन्होंने हजारों लोगों के जीवन में आशा की रोशनी देने का काम किया है।
14 मार्च 1955, हर दिन की तरह उस दिन भी सूरज निकला हुआ था समय की रफ्तार भी ठीक वैसी ही थी जैसे कि आज…पेड़ों की पत्तियां, सरसराती हवाओं के साथ मदमस्त होकर झूम रही थी,जब नरेंद्र तायवाड़े का जन्म हुआ । उस वक्त आज की संस्कारधानी राजनांदगाँव तहसील हुआ करता था ।उनकी शिक्षा बी.ए. तक कंप्लीट हुई हैं। वे कहते हैं कि इस शहर की धड़कन मुझसे जुड़ी है और शब्दों के माध्यम से प्रस्फुटित होते रहती है ।
बैंक में रहें अधिकारी
बैंक में अपनी विभिन्न भूमिकाएँ निभाते हुए उन्होंने अपना काम पूरी ईमानदारी से किया। 1977 से 2017 तक वह भूमि विकास बैंक से लेकर सेंट्रल को-ऑपरेटिव बैंक में अकाउंटेंट, सुपरवाइजर और ब्रांच मैनेजर के पद पर रहे। कवर्धा, डोंगरगढ़ खैरागढ़ ,चौकी,मोहला, मानपुर जैसे दूरस्थ जगहों में अपनी सेवाएं दी हैं।
पत्र लेखन मंच का निर्माण
पत्रों के माध्यम से लोगों में आशा की किरण जगाना तथा समाचार पत्रों के माध्यम से सामाजिक परिवेश के विभिन्न पहलुओं से अवगत कराना ही मुख्य प्राथमिकता रही है। अखबारों में स्वास्थ्य और सकारात्मकता से जुड़ी बातों को कटिंग करके उनके द्वारा डायरी बनाया गया है. वे आकाशवाणी से भी नियमित रूप से पत्र-व्यवहार करते रहे हैं।
सेवा कार्यो में भी समर्पित
शहर के विभिन्न सेवाभावी लोगों और संस्थाओं के साथ मिलकर उन्होंने समाजसेवा का कार्य जारी रखा है। गर्मी में पानी उपलब्ध कराना हो या जरूरतमंदों को भोजन उपलब्ध कराना, वह हमेशा सक्रिय रहते हैं। नशे से दूर रहने के लिए किसी आंदोलन का हिस्सा बनना हो या पर्यावरण बचाने की बात, वे पूरे दिल से सेवा को अपना धर्म मानते हैं।
जिंदगी क्षणिक है
वे हंसते हुए कहते है कि,बातों ही बातों में वक्त कैसे गुजर जाते है पता ही नही चलता…जब दिन महीनों में, महीने साल में बदलते हैं, इसका एहसास उम्र के एक पड़ाव पर आने से होता है। एकांत में बैठकर स्वयं का मूल्यांकन करता हूँ कि मैंने अपनी जिंदगी में क्या खोया और पाया। मैं यही कहना चाहूंगा कि समय के साथ चले क्योकि समय ही सब कुछ है। और जरूरी भी नही है कि आपके साथ हमेशा अच्छा हों हरेक परिस्थितियों में खुद को तैयार रखने वाला ही सफल व्यक्ति कहलाता हैं।
रिटायरमेंट के बाद भी
उनकी दिनचर्या सुबह 4 बजे शुरू होती है. अक्सर लोग सोचते हैं कि रिटायरमेंट के बाद वे चुपचाप बैठ जाएंगे, लेकिन श्री नरेंद्र तायवाड़े जी खाली बैठने वालों में से नहीं हैं। उन्होंने कई संस्थानों में अपनी सेवाएं दी हैं. वर्तमान में वह शहर के एक प्रतिष्ठित निजी अस्पताल में फार्मेसी जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। नौकरी से बचे समय में वह पत्र लिखकर अपनी भावनाएं व्यक्त करते हैं।
व्यस्त रहों,मस्त रहों पर अस्त व्यस्त न रहों । स्वस्थ रहना है तो साइकिल चलाओ और पैदल चलो, के संदेश को अपने जीवन में उतारकर लोगों को जागरूक करने वाले श्री नरेंद्र तायवाड़े का जीवन अपने आप में एक खुली किताब की तरह है। उनका मानना है कि अनुशासन और प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर रहने से जीवन आसान हो जाता है। सत्यदर्शन लाइव ऐसे व्यक्तित्व के विचारों को नमन करता है।