
स्कूल की दीवारों पर उकेरी गईं पाठ्यक्रम और संदेश देने वाली तस्वीरें… ट्रेन के डिब्बों में बच्चे सीखते हैं क-ख-ग, एक टीचर ने बदल दी स्कूल की सूरत
गोपी साहू . आदिवासी बहुल इलाके में एक शिक्षक ने प्राइमरी स्कूल का कायाकल्प कर दिया. उन्होंने सीमित संसाधनों में बदलाव किया. साथ ही साथ टापूओं पर रहने वाले बच्चों को फर्राटेदार अंग्रेजी बोलना सिखाया और हिंदी, गणित सहित अन्य विषयों का ज्ञान दिया. मध्यप्रदेश के खंडवा के एक गांव में स्थित प्राइमरी स्कूल की दीवारों पर चित्र बनाए गए हैं. इन चित्रों में अलग-अलग विषय समझाए गए हैं. जिससे बच्चों की पढ़ाई में रुचि बढ़ गई है.
गौरतलब है कि,खंडवा जिले के आदिवासी बहुल इलाके खालवा में मछौंडी गांव है. यहां के प्राइमरी स्कूल में कक्षा पहली से लेकर पांचवी तक 91 विद्यार्थी पढ़ते हैं. यह बच्चे गांव के आसपास लगे टापूओं से पढ़ाई करने आते हैं।प्राइमरी स्कूल के टीचर महेंद्र सिंह पवार बताते हैं कि स्कूल में पढ़ाना चुनौती भरा था. पहले यहां सिर्फ एक कक्षा हुआ करता था, जिसमें बच्चों का बैठना मुश्किल था. इसके बाद इस समस्या का समाधान निकालने की कोशिश की.
शिक्षक महेंद्र सिंह ने बताया कि स्कूल के कैंपस में स्थित मुर्गी पालन केंद्र का कक्षा मिला. इसे दुरूस्त कराकर वहां छोटा सा पुस्तकालय बनाया. जिसका नाम राइट टू रीड रखा. इसके बाद एक कक्षा और बनवाया गया तो उसकी छत गलत डल गई. उसे तुड़वाकर टीन की छत डाली गई.स्कूल के कक्षा बन जाने के बाद भी परेशानियां खत्म नहीं हुई थी. गांव में असामाजिक तत्व परेशान करते थे. इसके बाद जब स्कूल की दीवारों पर पाठ्यक्रम और संदेश देने वाले चित्रों उकेरे तब से राहत है. बच्चों को संस्कृत के श्लोक, नर्मदा अष्टक, प्रदेश के संभागों के नाम, जिलों की जानकारी कंठस्थ हो गई है.
यहां पढ़ने वाले बच्चे नवोदय विद्यालय और विशिष्ट शालाओं की परीक्षाओं में चयनित हो रहे हैं. शिक्षक का उद्देश्य है कि यहां बच्चे डॉक्टर, इंजीनियर बनें और देश सेवा करें. अब बच्चों ने अपनी भविष्य के लिए लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर दिया है.स्कूल का वातावरण बच्चों के लिए फ्रेंडली हुआ तो उनकी उपस्थिति बढ़ी और सीखने में उनकी रुचि बढ़ी है. यहां के वातावरण से बच्चों के माता-पिता भी खुश हैं. अभिभावकों का कहना है कि हमने कभी सोचा नहीं था कि हमारे छोटे से गांव के स्कूल का कायापलट हो जाएगा.