रंगोत्सव से
बासंती रंग सा मन हो,
मां सी करूणा हो चितवन।
राम-रहीम समरसता हो,
एंथोनी-बादल के मन भी,
शांति हो लुंबिनी शिष्य सा,
नमामि दुक्कणम सा जीवन।
जय भारत-जगत बसता हो,
धम्म का मार्ग प्रकटता हो,
देवभूमि के माटी का रंग,
छिटक पड़े जैसे उजले तन।
बिखरे मस्त मोहक रंग से,
धवल पुष्प सा उर निश्छल।
बन जाओ गोकुल से तुम,
हम बन जाएं मधुवन।
महक उठे हैं,बसंत के रंग,
धूम मचायें हैं कलरव,
हम हो जाएं छिटकते रंग,
तुम बन जाओ छरहरे बदन।
रंग-रंग में मिल जाएं तुम-हम,
मन-उर रंग-बिरंगी,
भीग जाएं कुर्ता-चोली।
स्नेह जलध के तुम मेरे हो,
आओ मन-मस्त मगन मीत,
हम सब मिलकर मनायें होली।
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