वुमन बेस्ड स्टोरी:बहन आख़िर क्यों रो रही थी:औरत का शरीर एक मंदिर है और उसका गर्भ श्रद्धा का केंद्र,पढ़िए इस कहानी में

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मैंने आज कुछ अच्छा किया…

सुमंत यादव:सपनों का मैं शहज़ादा,अपनी धुन में मदमस्त खोया था कि अचानक मां की आवाज़ कानों में पड़ी- बस अपने सपनों में ही खोया रहेगा या जागेगा भी!

मेरे सपनों की तो जैसे हवा ही निकाल दी मां ने। अपनी दुनिया से बाहर आकर मैंने मां से कहा- मां मंज़िल उन्हें मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है। मेरी डायलॉग बाज़ी को सुनकर मां के चेहरे पर मुस्कान आई और फ़िर प्यार से उन्होंने कहा- ओ मेरे सपनों के राजा, अपने सपनों की दुनिया की सैर करने नहीं जाएगा!

मां ने ऐसा कहा ही था कि पिताजी मां को आवाज़ लगाने लगे- तुम्हारी चाय भी तुम्हारे लाडले की तरह ही है क्या, सपनों वाली!

मां ने तुरन्त जवाब देते हुए कहा- आई। मां मेरे कमरे से चली गई और मैं पिताजी की बातों पर हंसने लगा। जल्दी जल्दी मैंने कपड़े पहने और अपने सपनों की दुनिया की सैर करने निकल पड़ा। मेरा मतलब है- गार्डन जाना, जो मेरी आदत में शुमार था। मैंने अपनी बाइक उठाई और उस पर सवार होकर, कुछ ही देर में गार्डन पहुंच गया।

मन में तो जैसे नई तरंगे उठ रही थी, जवानी का नया जोश हिलोरे मार रहा था। बस अपनी उम्मीद को पंख लगाने मैं बगीचे के अंदर चला गया। मैं कुछ गुनगुनाता, कुछ अठखेलियां करता जा रहा था, कि अचानक मेरे कानों में वो रोने की आवाज़ आई। वो रोने की आवाज़ जैसे कोई मुझे बुला रही हो, कुछ कहना चाहती हो, जैसे उसे मेरा ही इंतज़ार है।

मैं तो बस उस आवाज़ का ही हो गया और जिधर से वो आ रही थी उस ओर अपना चेहरा घुमा लिया। देखा तो थोड़ी दूर में ही अपने चेहरे पर हाथों को फेरे, मोती जैसे आंसू अपनी आंखों में भरी लड़की नज़र आई। मन कह रहा था उससे रोने का कारण पूछूं, लेकिन मैं ठहरा शर्मिला, संकोची। बात करने के लिए भी तो हिम्मत चाहिए ना। अपने स्वभाव को नज़रअंदाज़ करते हुए, मेरे पैर उसकी ओर बढ़ने लगे। डर भी लग रहा था कि कहीं मेरे गालों पर उसके हाथों का निशान ना पड़ जाए और कोई मेरे गाल की लालिमा को देख ख़ुशी और अचरज का चेहरा न बनाने लगे। ख़ैर, जैसे-तैसे मैं उसके पास पहुंचा, वो बस अपना चेहरा नीचे झुकाए हुए थी और मेरे पहले शब्द थे- क्या हुआ?

उसने अपनी आंखों के सामने से हाथ हटाकर मुझे ऐसे देखा जैसे वो मेरी मदद चाहती है, लेकिन दूसरे ही पल उसकी आंखों में गुस्सा उतर आया और उसने कहा- जाओ यहां से, मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो।

मुझे बुरा लगा, लेकिन मैं डटा रहा और उसकी आवाज़ सुनकर ना जाने मुझे लगा कि बात की जा सकती है। मैंने अपनी आवाज़ को थोड़ा नरम किया और उससे कहा- आख़िर बात क्या है? अब शायद उसे भी यकीन हो गया था कि मैं इंसान भला हूं। उसने सकुचाकर अपने आंसू पोंछते हुए कहा कि- क्या आपका फ़ोन मिल सकता है, कॉल करने के लिए!

दूसरी बात में ही सीधा फ़ोन मांगना, जैसे लोगों की कही बातें मुझे याद आ गई। किसी लड़की को फ़ोन मत देना, वरना वो तेरा सारा बैलेंस ख़त्म कर जाएंगी! फोन देना मतलब अपने पैर में कुल्हाड़ी मारना! वगैरह-वगैरह। फ़िर भी इन सब बातों को टालते हुए, मैंने बिना कुछ कहे उसे अपना फ़ोन दे दिया।

उसने फ़ोन पर किसी का नंबर डाला और फ़ोन को कान से लगाया। मैं भी पास ही खड़ा था, इतने में फ़ोन से आवाज आई- द पर्सन यू आर कॉलिंग इज नॉट रिचेबल! वो आवाज़ मैंने सुनी और इतनी देर में लड़की के चेहरे का भाव भी बदल गया।

उसने निराश होकर फ़ोन मुझे दिया और कहा- क्या आप मेरी मदद कर सकते हैं? मुझे तो जैसे यही सुनना था, मैंने भी तपाक से उसकी बातों का जवाब देते हुए कहा- कहिए क्या समस्या है आपकी और मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूं? उसने राहत की सांस ली और कहा- पहले आप बैठ जाइए, फ़िर मैं बताती हूं।

बगीचे में जो सीमेंट की बैठने वाली कुर्सी बनाई जाती है, वो उसी पर बैठी थी और मैं भी उसके कहने पर उससे थोड़ी दूरी बनाते हुए बैठ गया। मुझे उसके चेहरे में अपनी बहन नज़र आ रही थी, तो मैंने उससे प्यार से पूछा- बहन आख़िर क्यों रो रही थी? जब मैंने उसे बहन कहा तो उसकी नजरों में भी मेरे लिए एक आशा जगी और संकोच भरी नज़रों से उसने कहा- भईया मेरे कपड़े ख़राब हो गए हैं! क्या आप पास के मार्केट से मेरे लिए कुछ ला सकते हैं?

उसके ऐसा कहते ही मैं समझ गया कि बात बहुत गंभीर है, जो हर किसी से नहीं कही जा सकती। क्योंकि हमारे सभ्य समाज में वैसी बातें करना शर्म लाज को बेचने जैसी बात होती है। मेरा इशारा है- मासिक धर्म की तरफ़।

उसके कहते ही मैंने उससे कहा कि- क्या तुमने किसी से भी मदद मांगने की कोशिश की? तो उसने बताया कि- जो लोग सामने से गुज़र रहे हैं, वो देखते तो ज़रूर हैं। लेकिन पास आकर कुछ कहने की हिम्मत नहीं करते। ऐसे में मैं उनसे कैसे मदद मांगती! मैंने उसको ढाढस बंधाया और कहा कि- तुम चिंता मत करो, कुछ देर यहीं बैठो, मैं तुम्हारी मदद करता हूं।

उसे ऐसा कहकर मैं कदमों को धीरे-धीरे आगे बढ़ाते और नज़रों में खोज का भाव लिए चलने लगा। कुछ ही दूरी पर मुझे एक मेडिकल शॉप नज़र आई। मैंने वहां जाकर सेनेटरी पैड की मांग की, तो वहां सेवा दे रही लड़की ने मुझे बड़े आश्चर्य के भाव से देखा, लेकिन वो मुझे कुछ कह नहीं पाई और मैंने उसे पैड का पैसा दिया और वहां से निकल पड़ा।

पैड लेकर मैं गार्डन में पहुंचा और उससे कहा- बहन ये लो और यहीं के वॉशरूम में जाकर चेंज कर लो। उसने मुझसे कहा- भईया मेरे कपड़े ख़राब हो गए हैं और ऐसी हालत में मैं चल कर जाऊंगी, तो अच्छा नहीं लगेगा।

उसकी बातों को सुनकर मेरे मन में आशा निराशा के बादल उमड़ने लगे, लेकिन मैंने अपने आपको संभालते हुए अपनी शर्ट निकाल दी और उसे देते हुए कहा कि- बहन ये लो इससे तुम्हें वॉशरूम पहुंचने में आसानी होगी।

उसने मेरा शर्ट लिया और अपने शरीर को कवर करते हुए वॉशरूम की ओर जाने लगी, लेकिन तभी उसने पलटकर मेरी ओर देखा और मुस्कान भरी नज़रों से आवाज दी- धन्यवाद भईया! मेरे चेहरे पर उसके शब्दों से एक सुकून का भाव आ गया और मैंने कह दिया- बहन मदद के लिए धन्यवाद नहीं करते और वो चली गई।

चूंकि मैंने तो उसको अपनी शर्ट दे दी थी, तो मैं बनियान में हो गया और अब उसी हालत में मुझे घर भी जाना था। मैं गार्डन से बाहर आया और अपनी बाइक से घर की ओर रवाना हुआ।

मैं गाड़ी चलाते-चलाते अपने मोहल्ले में दाख़िल हुआ, तो सभी मेरी ओर बड़े ही विस्मय के भाव से देखने लगे। मैं घर पहुंचा, तो सबने मुझे देखकर ख़ुसूर फुसुर शुरू कर दी। जैसे ही मैंने गाड़ी रोकी, सामने खड़ी मेरी बहन ने मुझ पर तंज कसते हुए कहा- कहां से झगड़ा होकर आ रहे हो? शर्ट भी फाड़ दी! मैं उसके सवाल का जवाब कैसे दूं, मुझे कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था! मैं उसकी बातों को टालते हुए अंदर गया।

मेरी आंखों के सामने बस उसी बहन का चेहरा घूम रहा था। इतने में पानी और चाय लिए मेरी दूसरी बहन कमरे में आई और बोली- भाई शर्ट कहां है आपकी? मैंने पानी और चाय लेकर उससे कहा- एक लंबी कहानी है, तुझे फ़ुर्सत में बताऊंगा। उसने कहा- अभी बताओ, नहीं तो मैं मां को बता दूंगी! मैंने कहा- अच्छी बात है, जा सबको बुला ला। शैतान की नानी, तू नहीं मानेगी!

मेरे ऐसा कहते ही वो घर में ढिंढोरा पीटने लगी। मां जल्दी आओ, भाई कहानी सुनाने वाले हैं! मां और एक बहन को साथ लेकर वो मेरे कमरे में आ गई।

अब तीनों का एक ही सवाल- जल्दी सुनाओ क्या हुआ? मैंने पानी पी लिया था और अब चाय का एक सिप लेते हुए मैंने कहा- मुझे चैन से चाय पीने दोगे या पीते-पीते बताऊं!

सबने कहा- पीते-पीते बताओ। मैंने अपनी सांसो को अंदर खींचते हुए बोलना शुरू किया- एक बहन गार्डन में मिली थी, जिसके कपड़े ख़राब हो गए थे, तो मैंने उसे अपनी शर्ट दे दी! यही तो कहानी है मेरे शर्ट की!

दोनों बहनें बोल पड़ीं- ये भी कोई कहानी है और झुंझलाते हुए दोनों बाहर चली गईं, सिर्फ़ मां मेरे पास रुक गई। मां को तो मेरे इशारे के बारे में पता चल गया था, तो उसने मुझसे कहा- बेटा आज तुमने बहुत अच्छा काम किया है।

मैंने कहा- मां तुम समझ गई, मेरे कहने से पहले ही! मां ने कहा- बेटा मैंने तुझे जन्म दिया है और तेरी रग रग से वाकिफ़ हूं। सुन! औरत का शरीर एक मंदिर है और उसका गर्भ श्रद्धा का केंद्र।

मां की बातें सुनकर मुझे बहुत उत्साह महसूस हो रहा था और फ़िर मैंने उसी उत्साह में मां से पूछा- मां जब आप ऐसा बोल रही हो, तो बाकी सब इस बारे में बात क्यों नहीं करते? क्यों लड़कियों और महिलाओं को उनके मुश्किल दिनों में बहुत अजीब तरीके से देखा जाता है?

मां ने मुझे बड़े प्यार से समझाते हुए कहा- हमारा समाज आज तक इसी तर्ज़ पर चलता आया है। हम सच्चाई जानकर भी अनजान बने बैठे हैं, लेकिन जिस दिन तुम जैसा सब सोचने लगेंगे, तो उस दिन बात करना भी शुरू कर देंगे!

इतना कहकर मुझे गले लगाकर मां मेरे कमरे से चली गई। मां की बातें मेरे मन में गूंज रही थी, मैं सुकून महसूस कर रहा था कि मां ने मुझे समझा और मेरे दिल से बस एक ही आवाज़ आ रही थी- मैंने आज कुछ अच्छा किया!

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