सात समंदर पार दुबई में भी लोग चखेगें लंगड़ा आम का स्वाद,पहली खेप रवाना…जानिए लंगड़ा आम का नाम लंगड़ा कैसे पड़ा…

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वाराणसी के लंगड़े आम का नाम सामने आते ही स्वाद चखने के लिए मन मचल जाता है। बनारस के आम की मिठास अब विदेश में भी धूम मचाएगा। मिर्जामुराद क्षेत्र के भिखारीपुर गांव में रेलवे लाइन के किनारे स्थित बगीचा से गुरुवार की शाम पहली बार बनारसी लंगड़ा आम की खेप दुबई के लिए भेजी गई। कमिश्नर दीपक अग्रवाल ने निर्यात के लिए बनारस से वातानुकूलित मालवाहन को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया।बगीचे में पहुंचे कमिश्नर ने लंगड़ा आम को हाथ में लेकर देखने के साथ ही बाग मालिक संग बैठकर बातचीत भी की। उन्होंने कहा कि वाराणसी का आम विदेश जाना एक अच्छी पहल है। यह भविष्य में कितना कारगर साबित होगा अब आने वाला समय बताएगा।

लंगड़ा आम का नाम लंगड़ा कैसे पड़ा
बनारस का लंगड़ा आम पूरे उत्तर भारत में प्रसिद्ध हैं। करीब 250 से 300 साल पुरानी बात है जब एक व्यक्ति ने आम खाकर उसका बीज घर के आंगन में लगा लिया। पेड़ के आम जब मीठे व गूदे से भरे आने लगे तो लोगों को भाने लगा। उस पेड़ को लगाने वाला व्यक्ति लंगड़ा कर चलता था इसलिए गांव के लोग उसे लंगड़ा कहते थे। इस वजह से धीरे-धीरे आम की उस किस्म का नाम लंगड़ा ही पड़ गया। हालांकि इस आम की किस्म देश भर में मिलती है लेकिन बनारस के लंगड़़े आम की बात ही कुछ और है। देश में 1500 किस्म के आम मिलते हैं, लेकिन इन सबमें लंगड़े आम का कोई तोड़ नहीं। मई से अगस्त के बीच आने वाले इस आम का रंग हरा या हल्का पीला होता है।

मिर्जामुराद के भिखारीपुर गांव निवासी काश्तकार व प्रगतिशील किसान शार्दूल विक्रम चौधरी उर्फ शीलू सिंह का घर से कुछ दूर रेलवे लाइन के किनारे 52 बीघहवा नाम से प्रसिद्ध आम का पुश्तैनी बगीचा है। इस समय बगीचे में 525 आम के पेड़ हैं।उन्होंने बताया कि विदेश में दशहरी आम की तो डिमांड है, पर बनारसी लंगड़ा आम का डिमांड बनाने के लिए पहली बार बनारस से आम पीएम के आदर्श गांव जयापुर की जया सीड्स प्रोडूसर कंपनी द्वारा भेज रहा हूं। बगीचा में सुबह से ही करीब 25 आदमी आम तोड़ने में लगे रहे। प्रशिक्षण देकर आम तोड़वाया।

उसके बाद दो एसी मालवाहन पर तीन टन लंगड़ा व दशहरी आम लदवाकर अपने निजी खर्च के जरिए सड़क मार्ग से लखनऊ भेज रहा हूं। लखनऊ के पैक हाउस में आम की ग्रेडिंग व पैकेजिंग के बाद इसे निर्यातक (एक्सपोर्टर) अपने खर्च से हवाई मार्ग से दिल्ली फिर दुबई ले जाएगा। मार्केट रेट वही तय होगा। शीलू सिंह का मानना है कि प्रयास किया गया है, अगर सफल रहा तो विदेशों में भी बनारस के लंगडा आम की डिमांड बढ़ेंगी और भविष्य का रास्ता खुलेगा।

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