सफरनामा…मैं पेज हूं,मैं तोड़ी हूं,मैं डारा आरू मीरी हूँ,लंगोटी से सना,बीहड़ में बना,प्रीत की डोरी हूँ ….मैं_मुस्कुराता_बस्तर_हूँ…

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कमलेश यादव,कोंडागांव:- बस्तर के रीति-रिवाज,भाषा
बोली,वेश भूषा और संस्कृति की अपनी एक अलग कहानी है।आज हम बात करेंगे ऐसे ही शख्सियत के विषय मे जिसके धड़कनों में बस्तर बसता है।कोंडागांव जिला मुख्यालय से नारायणपुर रोड पर महज 06 किमी की दूरी में बसा गांव भीरागांव(ब), जहां विश्वनाथ देवांगन जी रहते हैं, विश्वनाथ देवांगन को बस्तर के अलावा कुछ सूझता ही नही है। यहां की भाषा,बोली,और संस्कृति को अपने जिंदगी का अभिन्न अंग बना लिए हैं। बस्तर की वास्तविक परिस्थितियों का मूल्यांकन अपने शब्दों के जरिये लोगों तक पहुचाने का प्रयास कर रहे हैं। कुछ कर गुजरने की तमन्ना और जूनूनी इच्छाशक्ति से ये शख्स विश्वनाथ देवांगन से मुस्कुराता बस्तर कब बने पता ही नहीं चला। आज पूरी दुनिया में अपनी बेहतरीन लेखन शैली व युवा सृजनशील सोंच की धमक से मुस्कुराता बस्तर के रूप में एक नई पहचान दिलाई है |

बचपन की अमिट यादें,आज भी मन को तरोताजा करती हैं। प्रकृति के सान्निध्य में ही पला-बढ़ा,पिताजी श्री दशरू राम देवांगन ने संस्कार की शिक्षा दी।वही माताजी श्रीमती जानकी देवांगन ने प्रकृति के साथ कैसे जीया जाए यह शिक्षा देते हुए जिंदगी का पाठ पढ़ाया है। बस्तर की वादियों से,पहाड़ो से,अल्हड़ झरनों से,नित नए चीज सीखते हुए बस्तर का प्रखर आवाज देश-दुनिया तक पहुचाने का छोटा सा प्रयास है।

साहित्य का कोई उत्तराधिकारी नहीं होता यह तो वो साधना है जो योग्य है,उसी को प्राप्त होता है। बस्तर में मानव सभ्यता के पुराने निशान और आस्था के स्तम्भ धार्मिक स्थलों ने ही गुरु बनकर साहित्य में मार्गदर्शन किया है।
*मैं_मुस्कुराता_बस्तर_हूँ* कविता, बस्तर की अनसुने पहलू की जीवंत चित्रण है। जिसे पढ़कर समझा जा सकता है कि बस्तर के दर्द को बयां करते हुए भी मुस्कुराता बस्तर है। वैसे तो कई अन्तर्राष्ट्रीय व राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में हिन्दी,हल्बी,छत्तीसगढ़ी,भाषाओं में लिखित कविता,कहानी,गीत,लघुकथा,कहानी,यात्रा वृतान्त,आदि का प्रकाशन हो चुका है। अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में शोध पत्र का प्रस्तुतिकरण,अमेरिका यू.एस.ए. के पत्रिकाओं में नियमित कई बार कविताएं प्रकाशित,क्षेत्रीय फिल्मों,एल्बमों के लिये गीत रचनाएं,दुरदर्शन और आकाशवाणी से रचनाओं का प्रसारण हुआ है। पसंदीदा साहित्यकार लाला जगदलपुरी और जयशंकर प्रसाद की कविताएं प्रेरणा के पुंज रहे हैं |

बस्तर की जीवनशैली शोध का विषय रहा है। यहां के भोले-भाले लोगों के लिए यहा की भौगोलिक परिस्थितियों के अनुकूल लघु-कुटीर उद्योग की स्थापना नहीं की जाती है। जंगलों के बिना इस धरती की कल्पना भी नहीं किया जा सकता फिर ऐसी कोई तकनीक ईजाद नहीं हो सकता जिसमे सड़क के लिए वृक्षो को काटने की जरूरत ही न पड़ें।यहां के जीवन स्तर के सुधार में अभी बहुत काम करना पड़ेगा।विश्वनाथ जी की कविताएं में बस्तर का वास्तविक भाव देखने को मिलता है।

कुदरत ने बस्तर को अपने बेशकीमती संसाधनों से नवाजा है। आद्योगिक और पूंजीवादी विकास के चलते कई लोगों की नजर आदिवासियों की पुश्तैनी जल,जंगल और जमीन पर पड़ने लगी है..आदिवासी सदियों से ही प्रकृति के पूजक रहे हैं लेकिन अब उनके आराध्य जंगल और पहाड़ कौड़ियों की मोल बिकने लगे है और इन जंगलों व पहाड़ो को लगातार उजाड़ा और खोदा जा रहा है। ऐसा ही रहा तो वह दिन दूर नहीं जब बस्तर एक इतिहास बनकर न रह जाए।बस्तर की पीड़ा बस्तरिया ही समझ सकता है।

विश्वनाथ देवांगन ने बस्तर की साहित्यिक यात्रा के साथ ही अनेक मंचो ने सम्मान से नवाजा है जिसमे मुख्यतः 1) युवा रत्न सम्मान-2) यंग क्रिएटर अवार्ड,3)लोक असर सम्मान,4) तुलसी अलंकरण सम्मान,5)अग्निशिखा अवार्ड,6) डॉ.अंबेडकर समता अवार्ड,7) रचनाकार सम्मान,8)साहित्य मनीषी सम्मान,9)सारस्वत सम्मान,10)नीरज साहित्य श्री सम्मान,11)बस्तरपाति उज्जवल सम्मान 12)अटल साहित्य गौरव अवार्ड 2019
व कई मंचो ने सृजनात्मक कार्यों के लिये सम्मानित किया है।

बस्तर के माटी के लिए यह नवयुवक विश्वनाथ देवांगन  अपने प्रखर आवाज के साथ अपनी कविताओं,कहानियों,लघुकथाओं शोध के माध्यम से लोगो को जागरूक कर रहा है। हिन्दी,
हल्बी,छत्तीसगढ़ी,भाषाओं मे लेखन में पारंगत होने के साथ ही एक संवेदनशील उम्दा व्यक्तित्व के धनी हैं। जो दूसरों की मदद के लिए तत्पर रहता है। हमे गर्व है कि बस्तर के माटीपुत्र की कुछ संक्षिप्त जानकारियां आप तक पहुंचा कर हमारे टीम का हिस्सा बनाया है, विश्वनाथ देवांगन से मुस्कुराता बस्तर बने इस युवा हस्ताक्षर को सत्यदर्शन चैनल की ओर से उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनाएँ…..

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